
सृष्टि निर्माण से पहले की कथा: ब्रह्माण्ड की शुरुआत से पहले का रहस्य
परिचय: सृष्टि निर्माण से पहले क्या था?
सृष्टि का निर्माण हमारे ब्रह्माण्ड का प्रारंभ है, लेकिन सृष्टि निर्माण से पहले की कथा सोचने, समझने और जानने योग्य एक गहरा रहस्य है।
जब न तारा था, न आकाश, न जल और न कोई जीवन, तब क्या था? इस लेख में हम प्राचीन शास्त्रों, पुराणों, और विज्ञान के दृष्टिकोण से जानेंगे सृष्टि से पहले की वह स्थिति, जो आज तक रहस्य बनी हुई है।
1. सृष्टि निर्माण से पहले की स्थिति – शून्य और अनंत
सृष्टि निर्माण से पहले का समय एक ऐसा काल था जब कुछ भी दृश्य नहीं था।
न कोई समय था, न कोई गति। केवल एक अनंत, निर्विकार और शाश्वत चेतना का अस्तित्व था। यह वह अवस्था है जिसे शून्यता या शून्य अवस्था कहा जाता है।
वेद और उपनिषदों में इसे “अव्यक्त” कहा गया है – वह जो अभी प्रकट नहीं हुआ है। इसे “ब्रह्म” की स्थिति कहा जाता है, जो अनंत और सर्वव्यापी है।
“नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासद्रजो न तत्वतो
अभावोऽपि कल्पनो यत् तेन त्यो नास्मि स्त देव किमु हविषः”
(ऋग्वेद 10.129)
इसका अर्थ है कि सृष्टि निर्माण से पहले न अस्तित्व था, न अनस्तित्व। सब कुछ एक अनिर्वचनीय स्थिति में था।
2. वेद और पुराणों में सृष्टि निर्माण से पहले की कथा
ऋग्वेद का नासदीय सूक्त
ऋग्वेद का यह सूक्त सृष्टि के रहस्य की खोज में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
यह सूक्त कहता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक रहस्यमय, अप्रकट चेतना से हुई।
न कोई भगवान था, न कोई देवता, न कोई शक्ति। केवल एक रहस्यमय दैवीय ऊर्जा थी।
विष्णु पुराण की कथा
विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि निर्माण से पहले केवल जलरूपी नारायण थे।
उन्हीं में से अवतरित होकर ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया। जल और अनंत अंधकार की गहराई में यह चेतन सत्ता थी।
शिव पुराण में प्रलय और सृष्टि
शिव पुराण में बताया गया है कि सृष्टि निर्माण से पहले महाशून्य और महाशक्ति अस्तित्व में थे।
इस शून्य से ही पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) उत्पन्न हुए और सृष्टि आरंभ हुई।
3. विज्ञान के दृष्टिकोण से सृष्टि निर्माण से पहले
Big Bang सिद्धांत की शुरुआत
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड की शुरुआत लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले Big Bang (महाविस्फोट) से हुई।
लेकिन Big Bang से पहले का समय क्या था? यह वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा प्रश्न बना हुआ है।
Big Bang से पहले की संभावनाएँ
सिंगुलैरिटी (Singularity): सब कुछ एक अनंत संकुचित स्थिति में था।
क्वांटम वैक्यूम (Quantum Vacuum): एक ऊर्जा-भरपूर लेकिन खाली स्थान जहां से ब्रह्माण्ड ने जन्म लिया।
साइक्लिक ब्रह्माण्ड: ब्रह्माण्ड बार-बार बनने और नष्ट होने की प्रक्रिया में है।
विज्ञान ने जो खोजे की हैं, वे उस प्राचीन वेदों और पुराणों के दार्शनिक दृष्टिकोण के काफी करीब हैं।
4. दार्शनिक दृष्टिकोण: अस्तित्व और शून्य का संगम
भारतीय दर्शन में शून्य को नकारात्मक नहीं, बल्कि सृजनात्मक ऊर्जा माना गया है।
अद्वैत वेदांत कहता है कि ब्रह्म और संसार एक ही हैं, और सृष्टि अदृश्य से दृশ্য की यात्रा है।
“पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात्पूर्णमुदच्यते”
मतलब ब्रह्म ही पूर्ण है, और उसी से यह संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई।
शून्य से पूर्ण की यात्रा, यही है असली सृष्टि निर्माण।
5. सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया की कथा
पुराणों के अनुसार सृष्टि निर्माण के तीन मुख्य चरण होते हैं:
ब्रह्म का अनाहुत ध्यान – जिसमें ब्रह्म अनंत में लीन होता है।
वह शक्ति का रूप धारण करता है – जिससे ऊर्जा और तत्व प्रकट होते हैं।
तत्वों का संयोग और सृष्टि का निर्माण – जब पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) बनते हैं।
यह प्रक्रिया ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की तीन प्रमुख शक्तियों के साथ जुड़ी हुई है:
ब्रह्मा = सृजन
विष्णु = पालन
शिव = प्रलय
6. मानव जीवन में सृष्टि निर्माण की कथा का महत्व
सृष्टि निर्माण की कथा यह सिखाती है कि हर शुरुआत से पहले एक शून्यता होती है,
जो नई संभावनाओं का द्वार खोलती है।
यह हमें जीवन के उतार-चढ़ाव को समझने और स्वीकार करने की शक्ति देती है।
अंधकार के बाद प्रकाश, शून्यता के बाद सृष्टि, यह भावना हमें निराशा से बाहर निकालती है।
सृष्टि निर्माण से पहले की स्थिति
8. निष्कर्ष
सृष्टि निर्माण से पहले केवल शून्यता और अनंत चेतना थी। वही ब्रह्माण्ड की जड़ है।
वेद और पुराण हमें बताते हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक अद्भुत और दिव्य प्रक्रिया है, जो आज भी रहस्य ही बनी हुई है।
आधुनिक विज्ञान भी इस प्रश्न के उत्तर की खोज में निरंतर व्यस्त है।
इस कहानी को समझना, मानव जीवन में भी गहरी आध्यात्मिक सीख लेकर आता है — कि हर अंत एक नई शुरुआत है, और हर खाली स्थान एक नई सृष्टि के लिए तैयार है।
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