
कलियुग और राजा परीक्षित की कहानी
प्रस्तावना
भारतीय धर्मग्रंथ केवल पूजा-पाठ या आस्था का साधन नहीं, बल्कि मानव जीवन के गहरे सत्य और भविष्य की दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण और भविष्य पुराण में खास तौर पर कलियुग का विस्तृत वर्णन है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि कैसे कलियुग की शुरुआत हुई, इसके लक्षण क्या हैं और मानव जीवन इस युग में कैसा होगा।
आज हम विस्तार से राजा परीक्षित और कलियुग के प्रवेश की कहानी पढ़ेंगे। यह कथा न केवल रोचक है बल्कि आज के समय में भी पूरी तरह प्रासंगिक है।
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पृष्ठभूमि – महाभारत के बाद का समय
महाभारत युद्ध में जब कौरव वंश समाप्त हुआ तो पांडव वंश का राजसिंहासन आगे बढ़ा।
अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह उत्तरा से हुआ और उनसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ – परीक्षित।
महाभारत युद्ध में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन उनके गर्भस्थ पुत्र को भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से बचाया था।
यही बालक बड़े होकर राजा परीक्षित बने और हस्तिनापुर की गद्दी संभाली।
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राजा परीक्षित का स्वभाव
वे न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ शासक थे।
प्रजा उनकी बहुत प्रशंसा करती थी क्योंकि वे हर जगह धर्म की रक्षा करते और अधर्म का नाश करते।
वे पांडवों के वंशज होने के कारण धर्म, नीति और भक्ति में दृढ़ थे।
कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, धर्म की रक्षा के लिए कोई न कोई महान आत्मा जन्म लेती है। राजा परीक्षित भी ऐसे ही शासक थे।
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कलियुग का प्रवेश
एक बार राजा परीक्षित अपने घोड़े पर सवार होकर राज्य का निरीक्षण कर रहे थे।
तभी उन्होंने एक आश्चर्यजनक दृश्य देखा –
एक धर्मराज बैल का रूप धारण किए केवल एक ही पैर पर खड़े थे।
पास ही पृथ्वी माता गाय का रूप धारण कर रो रही थीं।
एक नीच व्यक्ति (कलि) उन्हें लाठी से मार रहा था।
राजा परीक्षित ने तलवार खींचकर पूछा –
“हे पापी! तू कौन है? बैल और गाय पर अत्याचार करने का साहस कैसे किया?”
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धर्मराज और पृथ्वी माता का संवाद
धर्मराज (बैल) बोले –
“राजन, मैं धर्म हूँ। पहले सत्ययुग में मैं चार पैरों पर स्थिर था – सत्य, दया, तप और दान।
त्रेतायुग में एक पैर टूट गया।
द्वापरयुग में दो पैर टूट गए।
और अब कलियुग में मैं केवल एक ही पैर पर खड़ा हूँ – सत्य।
यह जो पापी है, यह कलियुग है। यह धीरे-धीरे मेरे इस अंतिम पैर को भी तोड़ देगा।”
गाय (पृथ्वी माता) बोलीं –
“हे राजन! मैं धरती हूँ। पहले सत्ययुग और त्रेतायुग में मेरा सम्मान था।
अब इस कलियुग में पाप, अधर्म और अन्याय बढ़ेंगे। मैं दुखी हूँ कि मेरे ऊपर अन्याय और पाप का बोझ बढ़ता जा रहा है।”
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राजा परीक्षित और कलि का संवाद
राजा परीक्षित ने तुरंत तलवार उठाई और कलि को मारने चले।
कलि डरकर उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला –
“हे राजन! मुझे मत मारिए। मेरा समय आ चुका है। शास्त्रों के अनुसार अब कलियुग का आरंभ होना ही है।
यदि आप मुझे मार देंगे तो समय चक्र रुक जाएगा। कृपा करके मुझे कहीं रहने की जगह दीजिए।”
राजा परीक्षित ने सोचा और बोले –
“तुझे मेरे राज्य में रहने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन धर्म के नियमों के अनुसार मैं तुझे कुछ विशेष स्थान दूँगा जहाँ तू रह सके।”
उन्होंने कलि को चार स्थान दिए –
1. जुआ (द्यूत)
2. मद्यपान (शराब)
3. अधर्मिक काम (स्त्रियों का दुरुपयोग)
4. हिंसा और पशु हत्या
लेकिन कलि ने प्रार्थना की –
“हे राजन! इन चार जगहों पर ही रहना कठिन होगा। कृपा करके मुझे पाँचवाँ स्थान भी दें।”
राजा परीक्षित ने कहा –
“ठीक है, तुझे पाँचवाँ स्थान देता हूँ – सोना (धन और लालच)।
जहाँ-जहाँ सोना होगा, वहाँ तू निवास कर सकेगा।”
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कलियुग के पाँच निवास स्थान
इस प्रकार कलियुग को पाँच स्थान मिले –
1. जुआ
2. शराब
3. स्त्रियों का दुरुपयोग
4. हिंसा
5. सोना (धन और लालच)
इसी कारण से आज हम देखते हैं कि जहाँ-जहाँ ये पाँच चीजें हैं, वहाँ पाप और अधर्म बढ़ता है।
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राजा परीक्षित का श्राप और भागवत कथा
इस घटना के कुछ समय बाद एक ऋषि के पुत्र ने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया कि वे सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से मृत्यु को प्राप्त होंगे।
मृत्यु से पहले राजा परीक्षित ने अपना राज्य छोड़ दिया और गंगा किनारे जाकर संत शुकदेव जी से भागवत कथा सुनी।
सात दिन तक उन्होंने पूरी कथा सुनी और मोक्ष को प्राप्त हुए।
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कलियुग के लक्षण (भागवत और भविष्य पुराण अनुसार)
1. धन ही सबकुछ होगा – व्यक्ति की पहचान उसके चरित्र या ज्ञान से नहीं, बल्कि धन से होगी।
2. संतान का विद्रोह – बच्चे माता-पिता की अवज्ञा करेंगे।
3. झूठ और पाखंड – झूठ बोलना सामान्य हो जाएगा।
4. प्रकृति का असंतुलन – अकाल, बाढ़ और महामारी बार-बार होंगी।
5. धर्म का पतन – धर्म केवल नाम मात्र रहेगा।
6. भक्ति का महत्व – कलियुग में केवल भक्ति और भगवान का नाम ही मोक्ष का मार्ग होगा।
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कलियुग का अंत और कल्कि अवतार
भविष्य पुराण और विष्णु पुराण में बताया गया है कि जब कलियुग अपने चरम पर पहुँचेगा, तब धर्म पूरी तरह समाप्त हो जाएगा।
तभी भगवान विष्णु कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे।
वे श्वेत घोड़े पर सवार होकर आएँगे।
उनके हाथ में चमकती तलवार होगी।
वे अधर्मियों का नाश करेंगे और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।
इसके बाद फिर से सत्ययुग का प्रारंभ होगा और चक्र ऐसे ही चलता रहेगा।
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शिक्षा और संदेश
👉 यह पूरी कहानी हमें यह सिखाती है कि कलियुग के दोषों से बचने का एकमात्र उपाय है –
जुआ, शराब, हिंसा और लोभ से दूर रहना
सच्चाई और भक्ति को अपनाना
भगवान का नाम स्मरण करना
सेवा और दान करना
कलियुग भले ही कठिन हो, लेकिन इसमें मोक्ष पाना सबसे आसान है।
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निष्कर्ष
राजा परीक्षित और कलियुग की यह कथा हमें याद दिलाती है कि समय चाहे जैसा भी हो, धर्म और भक्ति कभी न छोड़नी चाहिए।
कलियुग के पाँच दोषों से दूर रहकर और भगवान का स्मरण करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
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