
भगवान बर्बरीक की रहस्यमयी और अद्भुत कहानी
महाभारत के सबसे बलशाली योद्धा बर्बरीक की कथा
बर्बरीक कौन थे?
बर्बरीक महाभारत के एक ऐसे योद्धा थे, जिनके पास असीम शक्ति थी। वे भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। यद्यपि उन्हें महाभारत युद्ध में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होने दिया गया, फिर भी उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि स्वयं श्रीकृष्ण ने उन्हें ‘महाभारत के महानतम दानी’ के रूप में प्रतिष्ठित किया।
उनका दूसरा प्रसिद्ध नाम है श्री श्याम या खाटू श्याम, जिनकी आज राजस्थान के खाटू नगर में लाखों भक्त पूजा करते हैं।
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बर्बरीक की जन्म कथा
घटोत्कच, जो स्वयं एक शक्तिशाली राक्षस योद्धा थे, ने अहिलावती नाम की नाग कन्या से विवाह किया। उनके पुत्र का नाम बर्बरीक रखा गया। बचपन से ही बर्बरीक में अपार शक्ति थी। उनके गुरु स्वयं भगवान शिव थे, और उन्हें भगवान शंकर से तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे।
ये तीन बाण इतने शक्तिशाली थे कि बर्बरीक कहता था —
“मेरे ये तीन बाण ही काफी हैं पूरी पृथ्वी को जीतने के लिए।”
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तीन बाणों की दिव्यता
बर्बरीक के पास तीन अद्भुत बाण थे:
1. पहला बाण: जिस पर भी निशाना लगाया जाए, वह उसे चिह्नित कर देता था।
2. दूसरा बाण: जो सभी शत्रुओं को नष्ट कर देता था, जिन्हें पहले बाण ने चिह्नित किया हो।
3. तीसरा बाण: सभी शस्त्रों और बाणों को पुनः बर्बरीक के तरकश में वापस खींच लाता था।
इसके साथ ही उनके पास भगवान अग्नि से प्राप्त एक ऐसा धनुष था जिससे वे इन बाणों का प्रयोग कर सकते थे।
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युद्ध में शामिल होने की प्रतिज्ञा
जब महाभारत का युद्ध निश्चित हुआ, तब बर्बरीक ने अपनी माता से कहा कि वे इस युद्ध में अवश्य भाग लेंगे। उनकी माता ने उनसे वचन लिया कि वे केवल उस पक्ष में लड़ेंगे जो हार रहा हो।
बर्बरीक ने वचन दे दिया —
“मैं सदैव उस पक्ष का साथ दूंगा जो कमज़ोर होगा।”
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बर्बरीक का कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान
युद्ध के दिन बर्बरीक ने अपने घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। उनके साथ उनका दिव्य धनुष और तीन अमोघ बाण थे।
जैसे ही वे युद्ध स्थल के पास पहुँचे, श्रीकृष्ण ने उन्हें देखा और सोचा:
“यह योद्धा यदि युद्ध में उतरेगा, तो संतुलन ही बिगड़ जाएगा।”
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श्रीकृष्ण और बर्बरीक की भेंट
श्रीकृष्ण साधारण ब्राह्मण का वेश धरकर बर्बरीक के पास पहुँचे और पूछा:
“हे वीर, तुम कौन हो और इस युद्धभूमि में क्या करने आए हो?”
भगवान बर्बरीक ने विनम्रता से उत्तर दिया:
“मैं घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हूँ। युद्ध देखने और भाग लेने आया हूँ।”
श्रीकृष्ण ने उनकी शक्ति को समझते हुए पूछा:
“तुम्हारे पास केवल तीन बाण हैं, क्या तुम इतने में युद्ध जीत सकते हो?”
भगवान बर्बरीक ने कहा:
“एक बाण ही पर्याप्त है, तीन तो बस अतिरिक्त हैं।”
श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा लेनी चाही और कहा:
“यदि तुम्हें पेड़ की सारी पत्तियाँ भेदनी हों तो कैसे करोगे?”
बर्बरीक ने पहला बाण चलाया, जिसने सभी पत्तियों को चिह्नित किया। कृष्ण ने एक पत्ती अपने पैर के नीचे छिपा दी।
दूसरा बाण चला और सभी पत्तियों को भेद दिया — यहां तक कि वह पत्ती भी कृष्ण के पैर के नीचे से निकल गई।
श्रीकृष्ण तब समझ गए कि यह योद्धा अद्वितीय है।
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श्रीकृष्ण ने माँगा बर्बरीक का शीश
अब एक कठिन निर्णय श्रीकृष्ण ने लिया। उन्होंने बर्बरीक से कहा:
“तुम्हारा युद्ध में जाना निष्पक्षता को बिगाड़ देगा। इसलिए मैं तुम्हारा बलिदान मांगता हूँ।”
भगवान बर्बरीक ने मुस्कुराकर कहा:
“यदि यही धर्म है, तो मैं शीश देने को तैयार हूँ।”
और उन्होंने अपनी तलवार से स्वयं अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया।
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भगवान बर्बरीक ने देखा पूरा महाभारत युद्ध
श्रीकृष्ण ने भगवान बर्बरीक के शीश को एक ऊँचे टीले पर रखा और वरदान दिया:
“तुम पूरे महाभारत युद्ध को देखोगे। तुम्हारी दृष्टि निष्पक्ष होगी।”
युद्ध समाप्त होने के बाद, पांडवों ने पूछा —
“इस महायुद्ध में सबसे बड़ा योद्धा कौन था?”
भगवान बर्बरीक का उत्तर आया:
“यह युद्ध केवल श्रीकृष्ण के संकेत पर हुआ। उन्होंने ही सब करवाया।”
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खाटू श्याम का जन्म
श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कहा:
“तुम कलियुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे — ‘श्याम’ के नाम से।”
आज राजस्थान के खाटू में स्थित है श्री खाटू श्यामजी का प्रसिद्ध मंदिर, जहां करोड़ों श्रद्धालु शीश नवाते हैं।
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भगवान बर्बरीक से जुड़ी चमत्कारी मान्यताएँ
1. मनोकामना पूर्ति: खाटू श्यामजी के मंदिर में सच्चे दिल से मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं।
2. वीरता का प्रतीक: युद्धभूमि में निष्पक्षता, शक्ति और बलिदान का अनूठा उदाहरण।
3. दानी और भक्तवत्सल: बर्बरीक को सबसे बड़ा दानी कहा गया है — जिन्होंने अपना शीश तक दान कर दिया।
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भगवान बर्बरीक की कहानी से क्या सीख मिलती है?
शक्ति का अहंकार न करें।
धर्म के मार्ग पर बलिदान भी आवश्यक हो तो पीछे न हटें।
सच्चे निर्णय वे होते हैं जो पूरे समाज के लिए हितकारी हों।
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निष्कर्ष
भगवान बर्बरीक की कथा एक वीर, ज्ञानी, और निस्वार्थ योद्धा की गाथा है। उनका बलिदान हमें याद दिलाता है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी हमें अपने सबसे प्रिय चीज़ों का त्याग भी करना पड़ता है।
आज वे भगवान श्री श्याम के रूप में पूजे जाते हैं — प्रेम, बलिदान और भक्ति के प्रतीक के रूप में।
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