
विष्णु भक्त प्रहलाद कथा
विष्णु भक्त प्रहलाद कथा
📖 कहानी शुरू करते हैं:
भक्त प्रह्लाद की अमर कहानी — भक्ति और विश्वास की शक्ति
भारत की पौराणिक कथाओं में बहुत सी कहानियाँ हैं, लेकिन भक्त प्रह्लाद की कथा एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है जो हमें यह सिखाती है कि सच्चे विश्वास और भक्ति के सामने कोई भी शक्ति नहीं टिक सकती। यह कहानी केवल एक राजा और उसके पुत्र की नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी अमर कथा है जो हमें आज भी सच्चाई, भक्ति और धैर्य का मार्ग दिखाती है।
📜 कहानी की पृष्ठभूमि:
यह कहानी उस समय की है जब असुरों का राजा हिरण्यकशिपु पूरे संसार पर राज कर रहा था। वह अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी था। उसने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वह न तो मनुष्य द्वारा मारा जाएगा, न पशु द्वारा, न दिन में, न रात में, न घर के अंदर और न बाहर। इस वरदान के कारण वह स्वयं को अजर-अमर समझने लगा।
हिरण्यकशिपु ने घोषणा कर दी थी कि पूरे राज्य में केवल उसी की पूजा होगी। जो भी भगवान विष्णु या किसी अन्य देवता की पूजा करेगा, उसे कठोर दंड मिलेगा।
लेकिन उसके घर में ही एक ऐसा दीपक जल रहा था जो उसकी अंधेरी सत्ता को चुनौती देने वाला था — उसका अपना पुत्र प्रह्लाद।
🧒 प्रह्लाद – विष्णुभक्त बालक:
प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसकी माता कयाधु ने जब उसे गर्भ में धारण किया था, तब वह नारद मुनि के आश्रम में रहती थीं। वहीं प्रह्लाद ने आध्यात्मिक ज्ञान को ग्रहण किया।
जब प्रह्लाद बड़ा हुआ, तो उसके मुख से हमेशा “नारायण नारायण” ही निकलता था। वह अपने साथियों को भी भगवान विष्णु की भक्ति का पाठ पढ़ाता था।
यह बात हिरण्यकशिपु को बिलकुल भी पसंद नहीं थी।
👿 हिरण्यकशिपु का क्रोध और अत्याचार:
जब हिरण्यकशिपु को यह पता चला कि उसका पुत्र विष्णु भक्त है, तो उसने उसे बहुत बार समझाया, डराया, धमकाया, लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति से कभी डिगा नहीं।
तब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मरवाने के कई प्रयास किए:
उसे हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवाया
विषधर नागों के बीच फेंकवाया
ऊँचे पहाड़ से गिरवाया
विषिला औषधियाँ पिलाई
यहाँ तक कि राक्षसों से हमला भी करवाया
लेकिन हर बार, भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की।
🔥 होलिका दहन – पहली असफलता:
हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के पास वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती। योजना बनाई गई कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठेगी। लेकिन हुआ इसके विपरीत — प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन होलिका खुद जलकर राख हो गई।
इसी घटना की स्मृति में आज भी होलिका दहन मनाया जाता है।
🙏 प्रह्लाद की अंतिम परीक्षा:
अब हिरण्यकशिपु क्रोधित होकर स्वयं प्रह्लाद को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने एक दिन सिंहासन पर बैठकर प्रह्लाद से पूछा —
“कहाँ है तेरा भगवान? क्या वो इस स्तंभ में है?”
प्रह्लाद ने शांत स्वर में उत्तर दिया,
“हाँ, भगवान हर जगह हैं — इस स्तंभ में भी।”
हिरण्यकशिपु ने उस स्तंभ को पूरी शक्ति से लात मारी।
🦁 नरसिंह अवतार का प्रकट होना:
जैसे ही स्तंभ टूटा, उसमें से भगवान विष्णु का नरसिंह रूप प्रकट हुआ — आधा सिंह और आधा मनुष्य।
न वह पूरी तरह मनुष्य थे, न पूरी तरह पशु।
उन्होंने हिरण्यकशिपु को न घर में मारा, न बाहर, बल्कि द्वार की देहली पर।
न दिन में मारा, न रात में, बल्कि संध्या समय।
और न किसी हथियार से मारा, बल्कि अपने नाखूनों से।
इस प्रकार ब्रह्मा का वरदान भी अक्षुण्ण रहा और अधर्म का अंत भी हुआ।
🌺 कथा से मिलने वाली शिक्षा:
प्रह्लाद की यह अमर कहानी हमें सिखाती है —
सच्ची भक्ति और विश्वास से कोई भी संकट छोटा बन जाता है।
जब दुनिया आपके खिलाफ हो, तब भी अपने ईश्वर पर भरोसा रखो।
बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में जीत सच्चाई की होती है।
📌 निष्कर्ष:
भक्त प्रह्लाद की यह कथा केवल धार्मिक नहीं है, यह एक आध्यात्मिक चेतना है। यह एक संदेश है उन सभी के लिए जो जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं — कि अगर विश्वास सच्चा हो, तो भगवान हर जगह हैं, हर पल हमारे साथ हैं।