
रामायण के बाद अयोध्या की कहानी
प्रस्तावना
रामायण का समापन तब होता है जब श्रीराम रावण का वध करके माता सीता को अयोध्या लेकर आते हैं। इसके बाद वे अयोध्या का राज्य संभालते हैं और “रामराज्य” की स्थापना होती है। लेकिन असली कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। उत्तरकांड और पुराणों में अयोध्या के भविष्य, सीता माता के वनवास, लव-कुश के जन्म और श्रीराम के अंत तक का विस्तृत वर्णन मिलता है।
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रामराज्य की शुरुआत
अयोध्या लौटने के बाद श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। अयोध्या नगरी को ऐसे सजाया गया मानो इंद्रलोक पृथ्वी पर उतर आया हो। प्रजा ने अपने प्रिय राजा का स्वागत दीपों और पुष्पवर्षा से किया।
रामराज्य का स्वरूप अनोखा था:
प्रजा दुखरहित और भयमुक्त हो गई।
किसी को बीमारी, अकाल या अन्याय का सामना नहीं करना पड़ा।
धरती पर धर्म की मर्यादा स्थापित हुई।
हर व्यक्ति अपने कर्तव्य और धर्म का पालन करता था।
वर्षा समय पर होती थी, फसलें लहलहाती थीं।
अयोध्या उस समय स्वर्ग के समान नगर बन चुका था।
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सीता माता का वनवास
कुछ वर्षों तक सब कुछ शांति से चलता रहा। लेकिन एक दिन अयोध्या में एक धobi ने अपनी पत्नी पर संदेह करते हुए कहा –
“मैं श्रीराम की तरह अपनी पत्नी को घर में नहीं रख सकता, जो रावण के घर में रही हो।”
यह बात जब श्रीराम तक पहुँची तो वे दुखी हो गए। भले ही सीता माता ने अग्निपरीक्षा दी थी, लेकिन प्रजा की शंका उनके लिए असहनीय थी।
राजधर्म और प्रजाहित के लिए उन्होंने कठोर निर्णय लिया — सीता माता को वनवास देना पड़ा।
गर्भवती सीता को लक्ष्मण जी की देखरेख में वन भेजा गया। वहाँ वे ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगीं।
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लव और कुश का जन्म
वाल्मीकि आश्रम में सीता माता ने जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया — लव और कुश।
वाल्मीकि ऋषि ने दोनों को वेद, धनुर्वेद, राजनीति और शास्त्रों का गहन ज्ञान दिया।
लव-कुश अत्यंत पराक्रमी और तेजस्वी बने।
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अश्वमेध यज्ञ और लव-कुश का पराक्रम
कुछ समय बाद श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। नियम के अनुसार यज्ञ का घोड़ा विभिन्न राज्यों में छोड़ा गया। जो राजा उस घोड़े को पकड़ता, उसे युद्ध करना पड़ता।
लव-कुश ने भी उस घोड़े को पकड़ लिया और उसे अपने आश्रम में बाँध दिया।
जब श्रीराम की सेना इसे लेने आई तो लव-कुश ने पराक्रम दिखाते हुए शत्रुओं को पराजित कर दिया।
वे स्वयं लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न तक से भिड़ गए।
अंत में स्वयं श्रीराम युद्धभूमि में आए।
तभी ऋषि वाल्मीकि ने प्रकट होकर बताया कि ये दोनों सीता और राम के पुत्र हैं।
अयोध्या में पुनः उल्लास फैल गया।
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सीता माता का पृथ्वी में विलीन होना
जब सत्य सामने आया तो श्रीराम ने सीता माता को अयोध्या आने का आग्रह किया।
लेकिन माता सीता अब और अपमान सहना नहीं चाहती थीं।
उन्होंने धरती माता से प्रार्थना की –
“हे धरती माँ! यदि मैं सदैव शुद्ध रही हूँ, तो मुझे अपनी गोद में समा लो।”
तुरंत ही पृथ्वी फटी और एक दिव्य सिंहासन निकला।
धरती माता ने सीता को अपने साथ समा लिया।
पूरा अयोध्या शोकाकुल हो गया।
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श्रीराम का वैकुंठ गमन
सीता माता के पृथ्वी में विलीन होने के बाद श्रीराम ने कई वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन किया।
लेकिन उनका हृदय शोकग्रस्त था।
अंततः उन्होंने सरयू नदी के तट पर जाकर जल समाधि ली और विष्णुलोक में अपने वास्तविक रूप भगवान विष्णु के रूप में प्रकट हुए।
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अयोध्या का भविष्य
श्रीराम के वैकुंठ गमन के बाद लव और कुश ने अयोध्या का शासन संभाला।
लव ने श्रावस्ती को अपनी राजधानी बनाया।
कुश ने कुशावती (कुशीनगर) को अपनी राजधानी बनाया।
अयोध्या धीरे-धीरे साधारण नगर बन गई। समय के साथ यह तीर्थ बन गया जहाँ लोग राम के चरणों का स्मरण करते हुए दर्शन करने आने लगे।
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निष्कर्ष
रामायण के बाद अयोध्या की कहानी हमें यह सिखाती है कि धर्म और मर्यादा के लिए भगवान राम ने व्यक्तिगत सुखों का त्याग किया।
अयोध्या केवल एक नगर नहीं, बल्कि आदर्श शासन और धर्मनिष्ठा का प्रतीक बन गई।
आज भी “रामराज्य” शब्द का प्रयोग आदर्श शासन के रूप में किया जाता है।
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