
ऋषि विश्वामित्र की चमत्कारिक कथा – गायत्री मंत्र का रहस्य
परिचय
भारत की ऋषि परंपरा अनोखी और अनुपम रही है। यहाँ केवल देवताओं की पूजा नहीं होती, बल्कि ऋषियों और मुनियों को भी उतना ही आदर दिया जाता है। इसका कारण यह है कि ऋषि केवल धार्मिक अनुष्ठानों के मार्गदर्शक नहीं थे, बल्कि वे समाज सुधारक, ज्ञान के स्रोत और अद्भुत शक्तियों के धनी भी थे।
इन्हीं में से एक महान ऋषि थे – विश्वामित्र। वे पहले एक क्षत्रिय राजा थे, लेकिन अपने असाधारण संकल्प और तपस्या के कारण उन्होंने ऐसा मुकाम हासिल किया कि देवता भी उन्हें प्रणाम करने लगे।
ऋषि विश्वामित्र का सबसे बड़ा योगदान था गायत्री मंत्र की रचना। यह मंत्र आज भी समस्त मानव जाति के लिए शक्ति, ज्ञान और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है।
आइए जानते हैं उनकी पूरी कथा विस्तार से –
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राजा विश्वरथ का जीवन
बहुत समय पहले महिष्मति नगरी में राजा विश्वरथ राज्य करते थे। वे पराक्रमी, शूरवीर और धर्मप्रिय थे। उनकी सेना विशाल थी और उनका प्रभाव चारों दिशाओं में फैला हुआ था।
लेकिन राजशक्ति होने के बावजूद उनके भीतर एक जिज्ञासा हमेशा बनी रहती थी – क्या कोई शक्ति ऐसी भी है जो राजशक्ति से बड़ी हो?
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महर्षि वशिष्ठ से भेंट
एक दिन राजा विश्वरथ शिकार के लिए अपने सैनिकों के साथ वन में गए। वहाँ उनकी भेंट हुई महर्षि वशिष्ठ से। वशिष्ठ ने उन्हें आदरपूर्वक आश्रम में आमंत्रित किया।
आश्रम में भोजन की व्यवस्था करने के लिए वशिष्ठ ने अपनी कामधेनु गाय नंदिनी को आदेश दिया। आश्चर्यजनक रूप से उस एक गाय ने राजा और उनकी पूरी सेना के लिए स्वादिष्ट भोजन तैयार कर दिया।
राजा यह देखकर दंग रह गए।
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टकराव की शुरुआत
राजा ने वशिष्ठ से कहा –
“ऋषिवर, यह अद्भुत गाय मुझे दे दीजिए। इससे मेरी सेना का भरण-पोषण हो सकेगा।”
महर्षि वशिष्ठ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया –
“राजन, यह गाय मेरे यज्ञ और तप के लिए है। इसे मैं किसी को नहीं दे सकता।”
राजा को यह अपमान लगा। उन्होंने बलपूर्वक गाय को ले जाने का प्रयास किया।
लेकिन जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, वशिष्ठ ने अपने तपोबल से पूरी सेना को नष्ट कर दिया।
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राजा का संकल्प
इस घटना ने राजा विश्वरथ को गहरे तक झकझोर दिया। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया –
“यदि तपोबल इतना महान है कि यह राजशक्ति को पराजित कर सकता है, तो मुझे भी यही मार्ग अपनाना होगा। मैं भी तप करूँगा और ऋषि बनूँगा।”
इसी क्षण से राजा ने अपना राजपाट त्याग दिया और कठोर तपस्या आरंभ की।
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कठोर तपस्या
राजा विश्वरथ ने वर्षों तक हिमालय की गुफाओं में तप किया।
कभी वे सूर्य की ओर मुँह करके खड़े रहते,
कभी वर्षा और तूफान को सहते,
कभी केवल हवा और जल पर जीवनयापन करते।
उनकी तपस्या इतनी प्रखर थी कि देवताओं का भी ध्यान उनकी ओर गया।
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देवताओं की परीक्षा
देवताओं को भय हुआ कि कहीं विश्वरथ अपनी तपस्या से अत्यधिक शक्ति प्राप्त न कर लें। इसलिए उन्होंने कई बार उनकी तपस्या भंग करने का प्रयास किया।
1. अप्सराओं को भेजा गया।
सुंदर अप्सराएँ नृत्य करतीं और उन्हें मोहित करने का प्रयास करतीं।
लेकिन विश्वरथ अपने संकल्प में अडिग रहे।
2. मोह-माया के दृश्य दिखाए गए।
देवताओं ने उन्हें राजसिंहासन, ऐश्वर्य और सुख का माया-जाल दिखाया।
परंतु विश्वरथ विचलित नहीं हुए।
3. असुरों द्वारा भय दिखाना।
असुरों ने उन्हें डराने की कोशिश की, लेकिन उनके संकल्प ने हर भय को परास्त कर दिया।
विश्वामित्र की उपाधि
हजारों वर्षों की तपस्या के बाद देवताओं ने स्वयं उन्हें मान्यता दी और कहा –
“अब से तुम केवल राजा विश्वरथ नहीं, बल्कि विश्वामित्र हो – अर्थात् विश्व के मित्र।”
गायत्री मंत्र की रचना
अपनी तपस्या के अंतिम चरण में विश्वामित्र ने ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना। उन्होंने देखा कि सूर्य की किरणें ही संपूर्ण सृष्टि की ऊर्जा का स्रोत हैं।
इसी दिव्य अनुभूति से उनके भीतर एक मंत्र जन्मा –
गायत्री मंत्र।
यह मंत्र सूर्य की ऊर्जा, ज्ञान और आत्मबल का प्रतीक है।
कहा जाता है कि जब यह मंत्र पहली बार उनके मुख से प्रकट हुआ, तो पूरा ब्रह्मांड प्रकाश से भर गया।
देवता, गंधर्व, अप्सराएँ सभी आनंदित हो उठे।
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गायत्री मंत्र का महत्व
गायत्री मंत्र को मंत्रों की जननी कहा जाता है। इसका अर्थ है –
हम उस परम दिव्य प्रकाश की उपासना करें,
जो हमारी बुद्धि को सही दिशा दे,
और हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए।
आज भी यह मंत्र हिंदू धर्म का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना जाता है।
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देवताओं का सम्मान
देवताओं ने विश्वामित्र से कहा –
“ऋषि, आपने मानव जाति को सबसे बड़ा उपहार दिया है। गायत्री मंत्र उनके जीवन को प्रकाशित करेगा और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाएगा।”
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इस कथा से सीख
1. सच्ची शक्ति तप और संकल्प में है, राजशक्ति में नहीं।
2. असफलताएँ ही सफलता की नींव रखती हैं।
3. धैर्य और संयम से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
4. गायत्री मंत्र केवल धार्मिक मंत्र नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है।
निष्कर्ष
ऋषि विश्वामित्र की यह कथा हमें यह सिखाती है कि यदि मनुष्य ठान ले, तो वह अपने भाग्य को स्वयं बदल सकता है।
राजा से ऋषि बने विश्वामित्र का जीवन इस बात का प्रमाण है कि संकल्प और तपस्या के बल पर मनुष्य देवताओं से भी महान बन सकता है।
उनकी सबसे बड़ी देन गायत्री मंत्र है, जो आज भी हर प्राणी को प्रकाश, शक्ति और ज्ञान प्रदान करता है।
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