
“वायु पुराण की रहस्यमयी कहानी”)
भूमिका
हिन्दू धर्म में पुराणों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनमें देवताओं, ऋषियों और ब्रह्मांड की गूढ़ गाथाएँ दर्ज हैं। इन्हीं पुराणों में से एक है वायु पुराण, जिसे “वायवीय ग्रंथ” भी कहा जाता है। यह न केवल वायु देवता की महिमा का वर्णन करता है बल्कि सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय और पुनः सृष्टि जैसे अद्भुत रहस्यों को भी उजागर करता है।
आज हम आपको वायु पुराण की एक अनसुनी, चमत्कारी और रहस्यमयी कथा सुनाने जा रहे हैं, जो न केवल भक्तों के मन को आलोकित करती है बल्कि यह भी समझाती है कि ब्रह्मांड में वायु देव का महत्व कितना गहन है।
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आरंभ – ब्रह्मांड में निस्तब्धता
एक समय ऐसा था जब सम्पूर्ण ब्रह्मांड मौन था। न दिन था, न रात। न आकाश में तारे थे, न दिशाओं में कोई स्वर। केवल एक असीम शून्य था, जिसमें ना कोई गति थी और ना ही जीवन।
ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना में रत थे, परंतु बार-बार उनकी सृष्टि स्थिर हो जाती। उन्होंने पर्वत बनाए, नदियाँ बनाई, अग्नि उत्पन्न की, परंतु गति और प्राण के बिना सब कुछ जड़ सा था।
ब्रह्मा जी ने गहन ध्यान में जाकर यह सोचा –
“जीवन तो है, परंतु उसमें स्पंदन कहाँ है? गति कहाँ है? सांस कहाँ है?”
तभी उनकी अंतरात्मा में एक स्वर गूँजा –
“हे ब्रह्मा! जब तक वायु का प्रादुर्भाव नहीं होगा, तब तक तुम्हारी सृष्टि जीवित नहीं हो पाएगी।”
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वायु देव का प्राकट्य
ब्रह्मा जी ने अपने तप से एक तेजस्वी शक्ति को उत्पन्न किया। वह शक्ति प्रकाश से भी अधिक तेजस्वी, अग्नि से भी अधिक प्रखर और अमृत से भी अधिक शीतल थी।
वह थे — वायु देव।
उनका प्राकट्य होते ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड में हलचल मच गई। स्थिर जल लहराने लगा, पर्वतों के ऊपर बादल मंडराने लगे, वृक्ष झूमने लगे और जड़ पदार्थों में भी जीवन का संचार होने लगा।
ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर बोले –
“वत्स! तुम इस सृष्टि की प्राणशक्ति बनोगे। जब तक वायु का संचार रहेगा, तब तक जीवन संभव होगा। तुम प्राण कहलाओगे और हर जीव की श्वास में समाए रहोगे।”
वायु देव ने विनम्रता से उत्तर दिया –
“हे ब्रह्मदेव! यदि मेरा अस्तित्व प्रत्येक जीव में रहेगा, तो यह मेरा सौभाग्य होगा। मैं सबके प्राण बनकर रहूँगा, परंतु अदृश्य होकर, ताकि कोई अहंकार न जन्म ले।”
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वायु पुराण का रहस्य – प्रलय और पुनः सृष्टि
वायु पुराण में वर्णन है कि जब प्रलय आता है तो अग्नि, जल और आकाश सब नष्ट हो जाते हैं, परंतु वायु और आकाश शाश्वत रहते हैं।
प्रलय के समय जब सब कुछ जलमग्न हो जाता है, तब केवल वायु ही भगवान नारायण के साथ शेष रहती है। वायु ही प्राण को संभाले रहती है और पुनः जब नई सृष्टि का आरंभ होता है, तो वायु ही उसे गति देती है।
कथा कहती है कि जब एक बार प्रलय आया, तब पूरी धरती जल के महासागर में डूब गई। उस समय केवल वायु देव ही थे, जिन्होंने उस अमर जल में भी प्राण का संचार बनाए रखा।
भगवान विष्णु ने भी वायु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा –
“हे वायु! जब तक तुम हो, तब तक यह ब्रह्मांड श्वास लेता है। जब तुम रुक जाओगे, तब यह ब्रह्मांड निस्तब्ध और मृत हो जाएगा।”
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वायु देव और भगवान शिव का संवाद
वायु पुराण का सबसे अद्भुत प्रसंग है जब वायु देव स्वयं भगवान महादेव के पास जाते हैं और उनसे ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने का प्रयास करते हैं।
वायु देव ने कहा –
“हे महादेव! आप ही परमेश्वर हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि यह सृष्टि कहाँ से आई और अंततः कहाँ जाएगी?”
महादेव मुस्कुराए और बोले –
“हे वायु! यह जगत माया है। यह आता है और जाता है, परंतु तुम शाश्वत हो। तुम्हारे बिना कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता। जब प्रलय होगा, तब भी तुम्हारा अस्तित्व रहेगा, क्योंकि तुम ही प्राण हो, और प्राण ही आत्मा का साथी है।”
महादेव ने आगे कहा –
“तुम्हें यह वरदान है कि जो भी जीव ध्यान और साधना में तुम्हें स्मरण करेगा, वह रोगों और मृत्यु के भय से मुक्त रहेगा।”
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कथा का विस्तार – वायु देव और हनुमान जी
वायु पुराण में वायु देव का सबसे अद्भुत रूप है उनका पुत्र हनुमान।
हनुमान जी जन्म से ही दिव्य शक्तियों से संपन्न थे, क्योंकि वे वायु देव के अंश थे। जब वे बाल्यकाल में सूर्य को फल समझकर निगलने चल पड़े, तो समस्त लोकों में हाहाकार मच गया।
यह घटना यह दर्शाती है कि वायु देव का तेज हनुमान जी में किस प्रकार प्रवाहित था।
देवताओं ने हनुमान को अनेक वरदान दिए और वायु देव गर्व से बोले –
“मेरा यह पुत्र न केवल पृथ्वी पर राम भक्त के रूप में पूजित होगा, बल्कि युगों-युगों तक भक्तों के दुःख हरता रहेगा।”
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दार्शनिक संदेश
इस कथा का संदेश स्पष्ट है –
1. वायु ही प्राण है – जब तक वायु है, तब तक जीवन है।
2. अहंकार छोड़ो – वायु सर्वत्र है, परंतु अदृश्य है। यही सच्चा त्याग है।
3. भक्ति और ध्यान में वायु की साधना – प्राणायाम और श्वास की साधना से ही आत्मा का साक्षात्कार होता है।
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निष्कर्ष
वायु पुराण की यह कथा हमें बताती है कि ब्रह्मांड में सबसे गहन और रहस्यमयी शक्ति वायु ही है।
देवता भी उसकी महिमा का गुणगान करते हैं, और भगवान शिव स्वयं वायु को शाश्वत मानते हैं।
हर जीव की श्वास में वायु देव का वास है। जब हम प्राणायाम करते हैं, तो वस्तुतः हम वायु देव का ध्यान करते हैं। यही कारण है कि वायु पुराण की कथाएँ जीवन के हर क्षण में प्रेरणा देती हैं।
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