
भगवान विष्णु के 6वें अवतार – परशुराम की कहानी
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🪔 परशुराम की अनसुनी कहानी – भगवान विष्णु का क्रोधी अवतार
जानिए भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम की रहस्यमयी और चमत्कारी कहानी। इस लेख में पढ़ें परशुराम की उत्पत्ति, क्रोध, युद्ध, तपस्या और उनके अमरत्व की रोमांचक कथा।
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🔱 परशुराम: वह अवतार जो क्रोध में भी धर्म स्थापित करता है
भगवान विष्णु जब-जब धरती पर अधर्म और अत्याचार बढ़ते हैं, तब-तब वे किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। उनके छठे अवतार परशुराम को “क्रोध का प्रतीक” और “क्षत्रियों का संहारक” माना जाता है। यह कहानी उस अवतार की है जो धर्म की रक्षा के लिए अपने ही कुल के विरुद्ध खड़ा हो गया।
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🧬 परशुराम का जन्म: ब्राह्मण कुल में योद्धा का अवतरण
भगवान परशुराम का जन्म भृगु ऋषि के वंशज ऋषि जमदग्नि और रेणुका के घर हुआ। उनका जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था, लेकिन वे क्षत्रियों से भी अधिक युद्ध-कौशल में निपुण थे। यही कारण है कि उन्हें “ब्राह्मण और क्षत्रिय का अद्भुत मिश्रण” कहा गया।
उनका मूल नाम राम था, लेकिन जब उन्होंने शिव से परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त किया, तब से वे परशुराम कहलाए।
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🔥 परशुराम की तपस्या और भगवान शिव से अस्त्र प्राप्ति
बहुत कम उम्र में ही परशुराम को यह आभास हो गया था कि उन्हें कोई विशेष उद्देश्य के लिए जन्म मिला है। उन्होंने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने उन्हें अद्वितीय युद्ध कौशल, परशु (कुल्हाड़ी) और अमरत्व का आशीर्वाद दिया।
इस समय से परशुराम न सिर्फ ब्राह्मण, बल्कि धार्मिक योद्धा बन चुके थे, जिनका उद्देश्य अधर्मी क्षत्रियों का नाश करना था।
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⚔️ हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन से युद्ध
कहानी तब रोमांचक मोड़ लेती है जब हैहय वंश का राजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन अपने घमंड और बल के कारण ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचता है। वहां के दिव्य गाय कामधेनु को देखकर वह उसे बलपूर्वक छीन लेता है।
परशुराम को जब यह बात पता चलती है, तो वे क्रोधित होकर अकेले ही सहस्त्रार्जुन के महल पहुंचते हैं और उसे युद्ध में परास्त कर उसका वध कर देते हैं। यह पहला मौका था जब परशुराम का क्रोध सातवें आसमान पर था।
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💥 पिता का वध और 21 बार क्षत्रियों का संहार
सहस्त्रार्जुन के पुत्र अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए ऋषि जमदग्नि के आश्रम पर हमला करते हैं और परशुराम के पिता की निर्दयता से हत्या कर देते हैं।
इस घटना ने परशुराम को भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे पूरे भारतवर्ष से अधर्मी क्षत्रियों का नाश करेंगे।
उन्होंने एक नहीं, दो नहीं, 21 बार पूरी पृथ्वी से क्षत्रियों का संहार किया, और उनका रक्त बहाकर पृथ्वी को पवित्र किया।
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🛕 पश्चाताप और पृथ्वी दान
इतने संहार के बाद जब उनके मन में ग्लानि उत्पन्न हुई, तो उन्होंने अपने पापों के प्रायश्चित के लिए एक विशाल यज्ञ किया। उस यज्ञ में उन्होंने पूरी पृथ्वी को दक्षिणा के रूप में ऋषियों को दान कर दिया।
इसके बाद उन्होंने महेंद्र पर्वत पर जाकर तपस्या की और एकांत जीवन व्यतीत करने लगे।
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🧙 परशुराम और राम का मिलन
त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने जनकपुरी में भगवान शिव का धनुष तोड़ा, तब परशुराम वहां उपस्थित हुए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि कोई भी इस धनुष को तोड़ सकता है।
उन्होंने श्रीराम से युद्ध का आह्वान किया, लेकिन जब श्रीराम ने भी अपना पराक्रम दिखाया, तब परशुराम समझ गए कि ये विष्णु के ही अगले अवतार हैं।
उन्होंने श्रीराम को अपना शस्त्र और ज्ञान सौंप दिया और फिर हिमालय की ओर चले गए।
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🛡️ कलियुग में भी जीवित हैं परशुराम
परशुराम एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो अमर हैं। उन्हें चिरंजीवी माना गया है।
ऐसा कहा जाता है कि वे कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने के लिए पुनः प्रकट होंगे।
आज भी अनेक लोग मानते हैं कि परशुराम हिमालय के किसी दिव्य स्थल पर तपस्या में लीन हैं।
🙏 परशुराम के संदेश और महत्व
परशुराम का जीवन हमें सिखाता है कि:
धर्म की रक्षा के लिए क्रोध भी आवश्यक हो सकता है।
अधर्म चाहे किसी कुल में हो, उसका विनाश निश्चित है।
ज्ञान, तप और शक्ति का संतुलन ही सच्चा धर्म है।
📚 निष्कर्ष
परशुराम की कहानी केवल एक क्रोधी योद्धा की गाथा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे अवतार की कथा है जो अपने ही कुल के विरुद्ध जाकर धर्म की स्थापना करता है।
वे भगवान विष्णु के उन रूपों में से हैं जिनके अंदर असीम शक्ति, अनंत ज्ञान, और दृढ़ संकल्प का समावेश है।
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