
भगवान कृष्ण और मय दानव की रहस्यमयी गाथा
भूमिका: भगवान कृष्ण की लीलाओं का एक अनसुना अध्याय
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन जितना रोमांचकारी था, उतना ही रहस्यमयी भी। उनकी बाल लीलाएं, युद्ध कौशल, राजनीति, प्रेम और भक्ति से जुड़ी हजारों कहानियाँ प्रचलित हैं। लेकिन कुछ ऐसी भी कथाएँ हैं, जो बहुत कम लोगों ने सुनी हैं। ऐसी ही एक कथा है — मय दानव और कृष्ण की रहस्यमयी भेंट की।
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कौन था मय दानव?
मय दानव, असुरों का महान शिल्पकार था। उसने स्वर्ग की तरह वैभवशाली नगर और भवन बनाए थे। उसकी कला में इतनी शक्ति थी कि वह अपनी रचनाओं को जीवंत कर सकता था। मय का संबंध शुकाचार्य और शुक्राचार्य की विद्या से भी था। वह अग्निदेव का भक्त था और वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता उसे बिना कारण नहीं मार सकते।
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द्वारका का निर्माण: अद्भुत नगरी का रहस्य
जब भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया, तो उन्होंने समुद्र के भीतर एक नगरी बसाने का विचार किया। यही नगरी थी — द्वारका। किंवदंती है कि भगवान कृष्ण ने द्वारका के निर्माण के लिए मय दानव को आमंत्रित किया।
मय दानव और कृष्ण की पहली मुलाकात
मायावी शक्तियों से संपन्न मय दानव, पहले कृष्ण से भयभीत था। परंतु कृष्ण ने उसे आश्वासन दिया कि वह केवल शांति चाहता है और उसकी कला की सराहना करता है। मय ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया, और समुद्र के गर्भ में दिव्य नगरी द्वारका का निर्माण किया — जो सोने, चांदी, रत्नों और चमत्कारी वास्तुशिल्प से भरपूर थी।
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भगवान शिव का अदृश्य संबंध
इस कथा में एक रहस्यमयी मोड़ तब आता है जब मय दानव निर्माण कार्य से पहले भगवान शिव की साधना करता है। वह चाहता था कि उसकी रचना अमर रहे। शिव प्रसन्न होकर वरदान देते हैं कि जब तक इस नगरी में धर्म की स्थापना होगी, यह कभी नष्ट नहीं होगी।
इसीलिए द्वारका, एक ऐसा नगर बना — जो देवताओं, ऋषियों और राक्षसों तीनों की सहभागिता से उत्पन्न हुआ।
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भगवान कृष्ण की परीक्षा
मय दानव की एक बेटी थी — “मायावती” — जो अत्यंत रूपवती और बुद्धिमान थी। उसने कृष्ण को देखकर उन्हें अपना पति मान लिया। यह जानकर मय दानव ने उसे रोका नहीं, बल्कि स्वयं भगवान कृष्ण की परीक्षा लेनी चाही।
एक भ्रमित करने वाली रचना
मय ने द्वारका के भीतर एक “मायामहल” का निर्माण किया — जिसमें प्रवेश करने वाला व्यक्ति समय और चेतना खो बैठता था। कृष्ण वहां गए, और उन्होंने स्वयं को एक सामान्य मनुष्य की तरह अनुभव किया। कुछ पल के लिए उन्हें अपने ईश्वरत्व का भान नहीं रहा।
लेकिन कृष्ण, योगेश्वर थे। उन्होंने अपनी चैतन्यता को पुनः जाग्रत किया और उस माया को भेद दिया। यह देखकर मय दानव ने उन्हें “लीलाधर” की उपाधि दी।
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मायावती का विवाह
इस कथा का अगला अध्याय और भी अद्भुत है। मायावती, जो कृष्ण की भक्त बन चुकी थी, उसे रुक्मिणी और सत्यभामा ने सम्मानपूर्वक अपनी बहन माना। किंवदंती है कि मायावती को कृष्ण ने एक गुप्त स्थान पर एक “शक्ति तीर्थ” की रक्षक बना दिया, जहाँ केवल सिद्ध योगी ही जा सकते थे।
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द्वारका का भविष्य और मय का अंत
जब महाभारत समाप्त हुई और कृष्ण ने पृथ्वी पर अपनी लीला समाप्त करने का निर्णय लिया, तब मय दानव ने कृष्ण से अंतिम भेंट की। कृष्ण ने मय को आशीर्वाद दिया कि उसकी कला तब तक जीवित रहेगी जब तक लोग सच्चे भाव से निर्माण में लगे रहेंगे।
द्वारका के डूबने की भविष्यवाणी भी यहीं से जुड़ी थी — जब धर्म घटेगा और भोग बढ़ेगा, तब नगरी समुद्र में समा जाएगी।
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गुप्त मंदिर और वर्तमान संकेत
कई विद्वान मानते हैं कि गुजरात के समुद्र में पाए गए प्राचीन खंडहर — मय दानव के बनाए द्वारका के ही हैं। आज भी समुद्र के भीतर मौजूद संरचनाएँ इस रहस्य को जीवित रखती हैं। यह आज भी रहस्य है
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निष्कर्ष: भगवान कृष्ण की हर लीला, केवल कथा नहीं — एक संदेश है
मय दानव की यह कथा हमें सिखाती है कि कला, भक्ति और विनम्रता के सम्मिलन से कितना कुछ संभव है। भगवान कृष्ण केवल एक योद्धा नहीं थे, वे हर क्षेत्र के “सारथी” थे — चाहे वह युद्ध हो, प्रेम हो, निर्माण हो या विनाश।
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