
🕉️ भूमिका भगवान गणेश और मूषक की वफादारी की कहानी
भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को “विघ्नहर्ता” और “सिद्धिदाता” कहा गया है। हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाती है। उनके वाहन के रूप में हम प्रायः एक चूहे को देखते हैं, जिसे ‘मूषक’ कहा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि भगवान गणेश को चूहा ही क्यों पसंद आया? और क्या उनके पास कोई दूसरा वाहन नहीं था? आज हम आपको एक अनसुनी और कल्पनात्मक कथा सुनाने जा रहे हैं — जिसमें भगवान गणेश एक नए वाहन की तलाश में निकलते हैं।
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🌄 कहानी की शुरुआत: देवताओं की सभा में
एक दिन स्वर्गलोक में सभी देवताओं की एक सभा हुई थी। भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव, इंद्र, कार्तिकेय और अन्य सभी उपस्थित थे। विषय था — “नवाचार और आधुनिकता”। सभी देवता अपने-अपने वाहनों की बात कर रहे थे।
इंद्रदेव ने अपने ऐरावत हाथी की शक्ति बताई,
कार्तिकेय ने अपने मोर की गति,
और विष्णु ने गरुड़ की दिव्यता।
तभी भगवान गणेश हँसते हुए बोले,
“मित्रों, मेरा मूषक सबसे बुद्धिमान और चपल है।”
देवता मुस्कुराए — “गणेश जी, आधुनिक युग में यह मूषक वाहन थोड़ा पुराना सा नहीं लगता? क्यों न आप भी एक नया वाहन चुनें?”
गणेश जी ने सोचा, “शायद ये बात सही हो। क्यों न मैं भी एक यात्रा पर निकलूं — एक नए, तेज़, बुद्धिमान और साहसी वाहन की तलाश में?”
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🌍 वाहन खोज की शुरुआत
अगले ही दिन, भगवान गणेश पृथ्वी पर यात्रा के लिए निकले। उन्होंने मूषक से कहा — “प्रिय मित्र, मैं एक नई खोज पर निकल रहा हूं, लेकिन तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे।”
पहला पड़ाव — जंगल का सिंह
गणेश जी एक घने जंगल में पहुंचे। वहाँ उन्हें एक शक्तिशाली सिंह मिला, जो अकेला रहता था।
गणेश जी ने कहा, “हे सिंहराज, क्या तुम मेरे वाहन बनोगे?”
सिंह गर्जना करता हुआ बोला, “मैं जंगल का राजा हूं, मुझे किसी का वाहन बनना शोभा नहीं देता।”
गणेश जी मुस्कराए, “राजा वही होता है जो दूसरों की सेवा करे।”
सिंह शर्मिंदा होकर चुप हो गया, लेकिन विनम्रता उसके स्वभाव में नहीं थी, और गणेश जी आगे बढ़ गए।
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🐎 दूसरा पड़ाव — तेज़ दौड़ता घोड़ा
वे एक पहाड़ी गांव पहुंचे जहाँ एक सुंदर, सफेद घोड़ा था जो बहुत तेज़ दौड़ सकता था।
गणेश जी ने पूछा, “क्या तुम मेरे साथ चलोगे?”
घोड़ा खुश होकर बोला, “अगर मैं तुम्हारे साथ रहूं, तो मुझे उड़ने की शक्ति मिलेगी?”
गणेश जी बोले, “शक्ति सेवा से मिलती है, मांगने से नहीं।”
घोड़ा उदास हुआ, लेकिन उसने मना कर दिया। गणेश जी आगे बढ़े।
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🐍 तीसरा पड़ाव — नागराज का अभिमान
अब गणेश जी एक रहस्यमय गुफा में गए जहाँ नागराज वासुकि तपस्या कर रहे थे।
गणेश जी ने निवेदन किया, “हे वासुकि, तुम अत्यंत शक्तिशाली हो। क्या तुम मेरा वाहन बनना चाहोगे?”
नागराज बोले, “मैं नागलोक का राजा हूं, मैं किसी का वाहन नहीं बन सकता।”
गणेश जी बोले, “तो फिर तुम्हारा ज्ञान किस काम का, अगर उससे सेवा न हो?”
वासुकि चुप हो गया। गणेश जी ने प्रणाम किया और आगे चल दिए।
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🐵 चौथा पड़ाव — वानर वीर हनुमान
अब भगवान गणेश पहुंचे एक मंदिर के पीछे वाले जंगल में, जहाँ वानर समुदाय रहता था। वहाँ हनुमान जी स्वयं ध्यानमग्न थे।
गणेश जी ने आदरपूर्वक कहा, “हे वीर हनुमान, तुममें शक्ति, बुद्धि और समर्पण है। क्या तुम मेरे वाहन बनोगे?”
हनुमान मुस्कराए — “हे गणपति, मैं तो स्वयं तुम्हारा सेवक हूं, पर वाहन बनना मेरे लिए शोभा नहीं। लेकिन मैं तुम्हें एक सुझाव देता हूं — लौट जाओ जहाँ से निकले थे।”
गणेश जी ने पूछा, “मतलब?”
हनुमान बोले, “जो सच्चा साथी होता है, वो केवल शक्ति से नहीं, समर्पण, प्रेम और धैर्य से चुना जाता है।”
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🐀 लौटते समय चमत्कार
गणेश जी वापस लौटे, और देखा — उनका प्रिय मूषक एक नदी किनारे जाल में फंसा हुआ है। एक शिकारी उसे पकड़ने आया था। मूषक अपने प्राणों की परवाह किए बिना गणेश जी को पुकार रहा था।
गणेश जी दौड़ते हुए आए और अपने परशु से शिकारी का जाल काट दिया।
मूषक बोला — “प्रभु, आपने मुझे क्यों बचाया? आप तो नया वाहन खोजने गए थे…”
गणेश जी बोले —
“मैंने सारा संसार घूमा, पर **तुम्हारे जैसी वफादारी, निष्ठा और समर्पण कहीं नहीं मिला। तुम ही मेरे असली साथी हो। तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं।”
मूषक की आंखें भर आईं।
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🙏 कथा का सार
भगवान गणेश ने समझ लिया कि शक्ति, गति और आकार महत्वपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन सच्चा साथी वही है जो संकट में साथ दे, बिना शर्त प्रेम करे और समर्पित हो।
इसलिए आज भी भगवान गणेश मूषक को अपना वाहन मानते हैं। वह चूहा कोई साधारण प्राणी नहीं — वह दृढ़ता, विश्वास और सेवा का प्रतीक है।
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🪔 निष्कर्ष: क्यों महत्वपूर्ण है यह कथा?
यह कथा हमें सिखाती है:
1. बाहरी शक्ति से ज़्यादा जरूरी होती है निष्ठा।
2. जो साथ निभाए, वही सच्चा साथी होता है।
3. अहम छोड़कर विनम्रता अपनाना ही ईश्वर का मार्ग है।
4. छोटे दिखने वाले प्राणी भी बड़े कार्य कर सकते हैं।
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