
🪔 “जिसे दुनिया त्याग दे, उसे ईश्वर अपनाते हैं।” — श्रीकृष्ण
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🟢 भूमिका
श्रीकृष्ण की लीलाएँ अनंत हैं। हम सबने मथुरा, वृंदावन, कुरुक्षेत्र और द्वारका की कहानियाँ सुनी हैं। पर आज जो आप पढ़ने जा रहे हैं, वह कथा कहीं किसी पुराण में नहीं, बल्कि एक श्रद्धालु के हृदय में रची-बसी सच्चाई है — जब द्वारका के एक गरीब बालक की पुकार स्वयं कृष्ण ने सुनी और जीवन बदल दिया।
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🌾 कथा की शुरुआत: भीख मांगता बालक
यह कहानी द्वारका के एक छोटे से गाँव “रूपनगर” की है। वहाँ का एक 10 वर्षीय बालक — “गणु” — बचपन से ही अनाथ था। माँ-बाप की मृत्यु के बाद वह मंदिरों और गलियों में भीख माँग कर गुज़ारा करता। चेहरे पर मासूमियत थी और हृदय में बस एक ही विश्वास — “भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे माता-पिता हैं।”
हर रोज़ वह द्वारकाधीश मंदिर के बाहर बैठता और कहता:
> “कृष्णा! अगर तू सच में है, तो एक दिन मेरे सामने आना… मुझसे बात करना।”
लोग उसे पागल कहते, लेकिन गणु रोज़ श्रीकृष्ण से संवाद करता जैसे वे सामने बैठे हों।
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🕉️ गणु का नियम: भक्ति में अडिग
गणु हर सुबह मंदिर की सफाई करता। वह कहता,
> “ये मेरे कृष्ण का घर है, अगर मैं उनका बेटा हूँ, तो मुझे घर साफ रखना चाहिए।”
वह खुद भूखा रहता लेकिन मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे गायों और पक्षियों को रोज़ दाना डालता। लोग उसकी भक्ति देखकर भाव-विभोर हो जाते, पर उसकी गरीबी और झुग्गी वैसी ही बनी रही।
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✨ चमत्कार की शुरुआत
एक दिन गणु बीमार हो गया। बुखार इतना तेज़ कि वह हिल भी नहीं पा रहा था। मंदिर नहीं जा पाया।
उस रात वह ज़मीन पर बुखार में तड़प रहा था, तभी अचानक उसकी झोपड़ी के अंदर तेज़ प्रकाश फैला। एक सुगंध आई — चंदन और तुलसी की।
और फिर…
एक नीले रंग का सुंदर पुरुष — पीताम्बर पहने, मोर मुकुट लगाए, हाथ में बांसुरी और आँखों में करुणा लिए — प्रकट हुआ।
गणु ने आँखें खोलीं और कहा:
> “कृष्णा… तू सच में आया है?”
भगवान मुस्कुराए और बोले:
> “गणु, जो प्रेम सच्चा हो, वहाँ मुझे आने से कोई नहीं रोक सकता।”
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🌿 संवाद: कृष्ण और गणु
गणु (कांपते हुए):
“भगवान, मुझे क्या चाहिए? मैंने तो कभी कुछ माँगा भी नहीं।”
कृष्ण (सिर सहलाते हुए):
“तू माँग नहीं रहा, तू प्रेम कर रहा है। मैं माँगने वालों को देता हूँ, लेकिन प्रेम करने वालों को अपनाता हूँ।”
गणु:
“क्या अब मैं रोज़ आपको देख पाऊँगा?”
कृष्ण:
“मैं तुझमें ही बस गया हूँ, गणु। अब जब भी तू प्रेम करेगा — वो मैं हूँ, जब सेवा करेगा — वो मैं हूँ। तेरा हर कर्म, मेरी पूजा होगी।”
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🏵️ अगले दिन गाँव में चमत्कार श्रीकृष्ण का
सुबह गाँव वालों ने देखा — गणु की झोपड़ी से सुगंध आ रही थी। गणु अब पूरी तरह स्वस्थ था। उसका चेहरा प्रकाशमान था और उसके हाथों में एक नया चंदन-माला था — जो वह कभी खरीद नहीं सकता था।
लोगों ने पूछा — “ये कहाँ से मिला?”
गणु मुस्कुराया और बोला:
> “मेरे कृष्ण आए थे… उन्होंने मुझे छूकर ठीक किया और कहा — मैं तुझमें ही हूँ।”
लोग पहले हँसे, फिर कई वृद्धों ने मंदिर में जाकर भक्ति की।
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👑 गणु बना द्वारका का सेवक
कई वर्षों बाद, मंदिर के पुजारी ने उसे द्वारकाधीश मंदिर में सेवा के लिए रख लिया। गणु न केवल सफाई करता, बल्कि भक्तों को प्रसाद भी बाँटता और हर किसी से कहता:
> “अपने कृष्ण को कभी दूर मत समझो। बस मन से पुकारो, वे आते हैं।”
धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैल गई। श्रद्धालु उससे आशीर्वाद लेने आने लगे।
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🔱 अंतिम लीला: श्रीकृष्ण का अंतिम वचन
80 वर्ष की आयु में गणु को एक बार फिर वही सुगंध महसूस हुई। वह जान गया — “मेरे प्रभु आ गए।”
वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ गया, आँखें बंद की और देखा — वही नीला प्रकाश, वही बांसुरी।
कृष्ण बोले:
> “गणु, अब समय है। तू मेरा रूप बन गया है। चलो, अब लौट चलें।”
गणु ने अंतिम बार श्रीकृष्ण का नाम लिया — “श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे…”
और शरीर छोड़ दिया।
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🌟 कथा का संदेश
श्रद्धा में शक्ति है: गणु के पास न धन था, न शिक्षा, लेकिन उसकी श्रद्धा श्रीकृष्ण को खींच लाई।
भगवान का रूप कोई भी हो सकता है: गरीब, अनपढ़, अनजान — पर मन से सच्चा।
सेवा ही सच्चा धर्म है: गणु ने दिखाया कि मंदिर की सफाई भी श्रीकृष्ण की पूजा है।
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