
राधा कृष्ण फोटो
🌸 जब श्रीकृष्ण ने राधा से अंतिम बार विदा ली – एक अनकही लीला
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राधा-कृष्ण — प्रेम का प्रतीक, पर अधूरा क्यों?
श्रीकृष्ण और राधा का नाम साथ में लिया जाता है। वे एक-दूसरे के पर्याय हैं, फिर भी उनका विवाह नहीं हुआ। यह बात हमेशा लोगों को उलझन में डालती है।
क्या आप जानते हैं, राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाक़ात वृंदावन में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र में हुई थी?
और उससे भी महत्वपूर्ण — वहाँ श्रीकृष्ण ने राधा से विदा ली थी।
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युद्ध के बीच प्रेम का आह्वान
महाभारत युद्ध से पहले कुरुक्षेत्र में एक विशेष दिन था — जब श्रीकृष्ण ने युद्ध रोककर एक भव्य धर्म सम्मेलन आयोजित किया। वहाँ हजारों लोग उपस्थित थे — मुनि, ऋषि, ब्राह्मण, राजाओं और रानियों से लेकर आम जन तक।
इन्हीं में एक स्त्री भी थी — साधारण वेश में, मौन, किन्तु आंखों में गहरा समर्पण।
वह थीं — राधा।
श्रीकृष्ण उन्हें देखते ही पहचान गए। उन्होंने सभा छोड़ दी और राधा के पास पहुँचे।
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राधा ने क्या पूछा?
राधा मुस्कराईं, पर उनकी आंखों में नमी थी।
उन्होंने धीरे से पूछा:
> “कृष्णा , क्या तुम्हें कभी मेरा स्मरण आता है?”
“क्या तुम्हारे महल की दीवारें, कभी मेरे गीत गाती हैं?”
श्रीकृष्ण शांत थे।
कुछ क्षण बाद बोले:
> “राधे, मैंने तुम्हें कभी छोड़ा ही नहीं।
मैं गीता में जो उपदेश देता हूँ, वह भी तुम्हारी भक्ति से जन्मा है।”
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फिर राधा ने वह प्रश्न पूछा – जो कोई नहीं पूछता
राधा ने अपनी आंखें श्रीकृष्ण की आंखों में डालीं और पूछा:
> “तो फिर, तुमने मुझसे विवाह क्यों नहीं किया?”
इस प्रश्न ने श्रीकृष्ण को मौन कर दिया।
फिर वे बोले:
> “राधे, विवाह संसार की मर्यादा है।
लेकिन हमारा संबंध आत्मा का मिलन है — जिसे कोई विधि नहीं बाँध सकती।
विवाह दो शरीरों का संयोग है, परंतु हम तो एक ही चेतना के दो रूप हैं।”
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राधा का उत्तर — श्रीकृष्ण भी भावुक हुए
राधा मुस्कराईं और बोलीं:
> “तो क्या प्रेम का प्रमाण केवल साथ रहना होता है?
क्या विरह में प्रेम नहीं होता?”
कृष्णा ने कहा:
> “नहीं राधे।
विरह में ही तो सबसे गहरा प्रेम होता है —
जब शरीर साथ न हो, पर आत्मा सदा एक हो।”
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अंतिम मिलन – अंतिम संदेश
वह क्षण धीरे-धीरे विदाई की ओर बढ़ रहा था।
राधा जानती थीं — यह उनकी और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात है।
उन्होंने कृष्णा से कहा:
> श्रीकृष्ण, जब लोग मुझे ताने देंगे कि मैंने तुम्हारा साथ नहीं पाया,
तो मैं क्या कहूँगी?”
श्रीकृष्ण ने उनके चरण स्पर्श किए और बोले:
> “तुम कहोगी —
‘जिसे पूरी दुनिया चाहता है, वह मुझे चाहता था।'”
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राधा का अंत और कृष्ण की आंखों से बहा अश्रु
राधा ने श्रीकृष्ण को देखा, एक अंतिम बार।
उनकी आँखें बंद हुईं।
कुछ पलों में, उनकी आत्मा शरीर से मुक्त हो गई।
श्रीकृष्ण मौन खड़े रहे।
कोई मंत्र नहीं बोला, कोई चिता नहीं जली।
बस हवा में राधा का नाम गूंजता रहा —
“राधे… राधे…”
श्रीकृष्ण की आंखों से अश्रु बह चले।
वह ईश्वर जो कभी नहीं रोया, आज एक प्रेमिका के लिए रोया।
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यह कथा मुख्य शास्त्रों में क्यों नहीं है?
क्योंकि यह कथा मन की भाषा में लिखी गई थी, ग्रंथों की भाषा में नहीं।
यह वृंदावन के बृजवासियों, दक्षिण भारत के भक्तों, और बंगाल के राधा-तत्व साधकों की स्मृति में बसी हुई है।
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इस कथा से क्या सीख मिलती है?
क्रम प्रेम की सीख
1 सच्चा प्रेम हमेशा त्याग करता है।
2 हर मिलन को विवाह की मोहर नहीं चाहिए। आत्मा का संबंध सर्वोच्च होता है।
3 विरह में जो प्रेम टिकता है, वही शाश्वत होता है।
4 श्रीकृष्ण लीला पुरुष नहीं, वे हर भाव को अनुभव करते हैं।
5 राधा सिर्फ प्रेमिका नहीं, स्वयं भक्ति का स्वरूप हैं।
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क्या श्रीकृष्ण
राधा को भूल पाए?
नहीं।
हर जपमाला में “राधे कृष्णा ” का उच्चारण होता है, कभी “कृष्ण राधे” नहीं।
राधा आगे हैं — क्योंकि प्रेम पहले आता है, ईश्वर बाद में।
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