
भगवान शिव की अनसुनी रहस्यमयी कहानी
हिमालय की तपोभूमि में कुछ अद्भुत घटा
बहुत पुरानी बात है, जब हिमालय की तलहटी में एक निर्जन और गुप्त स्थान था — जहाँ कोई साधारण मानव कभी नहीं पहुँचा। वहाँ भगवान शिव अपनी गहन समाधि में लीन थे। समय थम-सा गया था। उनके चारों ओर प्रकृति शांत थी, न तो कोई पत्ता हिलता, न ही कोई पक्षी चहकता।
उसी समय, एक रहस्यमयी योगी प्रकट हुए। उनके शरीर से दिव्य तेज निकल रहा था। उन्होंने वर्षों तक एक ही मुद्रा में तप किया था। यह कोई सामान्य योगी नहीं थे — उन्होंने अपने तप से ऐसी सिद्धियाँ अर्जित कर ली थीं कि अब वे स्वयं को ईश्वर के समकक्ष समझने लगे थे।
—
अहंकार की परीक्षा
जब योगी को यह ज्ञात हुआ कि पास ही भगवान शिव समाधि में हैं, तो उनके भीतर एक विचित्र भावना जागी — “यदि मैं सच्चा ब्रह्मज्ञानी हूँ, तो शिव को मेरी उपस्थिति का अनुभव अवश्य होगा।”
उन्होंने अपनी तेज ऊर्जा का संचार किया और एक दिव्य प्रकाश के रूप में भगवान शिव के समक्ष प्रकट हुए। भगवान शिव ने समाधि तोड़ी और अपनी शांत दृष्टि उस योगी पर डाली।
योगी बोले,
> “हे महादेव, मैं आपके समकक्ष हूं। मेरी तपस्या और साधना भी कम नहीं। यदि आप परम हैं, तो मुझे परखिए।”
शिव मुस्कुराए, लेकिन मौन रहे।
—
3 प्रश्नों की चुनौती
योगी ने शिव से कहा,
> “यदि आप साक्षात ईश्वर हैं, तो मेरे तीन प्रश्नों का उत्तर दीजिए। यदि उत्तर नहीं दे पाए, तो आप मुझे स्वीकार करें।”
भगवान शिव शांत भाव से बोले,
> “पूछो योगी।”
प्रश्न 1:
> “ऐसा क्या है जिसे कोई जान नहीं सकता, लेकिन उसे सब महसूस करते हैं?”
प्रश्न 2:
> “कौन-सा कार्य ऐसा है जो कोई कर नहीं सकता, लेकिन फिर भी सब उसे करना चाहते हैं?”
प्रश्न 3:
> “यदि आत्मा अमर है, तो मृत्यु का भय क्यों?”
—
शिव के उत्तर और दिव्य रहस्य
भगवान शिव मुस्कराए। उनकी दृष्टि इतनी शांत और गहराई से भरी थी कि पूरा वातावरण स्थिर हो गया।
उत्तर 1:
> “योगी, वह है — ‘प्रेम’। प्रेम को कोई पूर्णतः जान नहीं सकता, परंतु हर जीव उसका अनुभव करता है — माँ की ममता, भक्त का भक्ति भाव, या सृष्टि का सौंदर्य — यह सब प्रेम ही है।”
उत्तर 2:
> “वह कार्य है — ‘पूर्ण नियंत्रण’। कोई भी अपने मन, संसार, या मृत्यु पर पूर्ण नियंत्रण नहीं कर सकता, लेकिन सब उसकी चेष्टा करते हैं।”
उत्तर 3:
> “मृत्यु का भय ‘अहंकार’ से उत्पन्न होता है। आत्मा को मृत्यु का भय नहीं होता, लेकिन ‘मैं’ नामक जो भ्रम है — उसे खोने का भय ही मृत्यु का भय बन जाता है।”
—
योगी का अहंकार भस्म हुआ
भगवान शिव के उत्तरों ने उस योगी की चेतना को झकझोर दिया। उसने देखा कि जिस ‘मैं’ को वह परम समझ रहा था, वह केवल एक छलावा था। उसके रोम-रोम से अश्रुधारा बह निकली।
वह शिव के चरणों में गिर पड़ा और बोला:
> “हे त्रिनेत्रधारी, मैं स्वयं को ही देखता रहा — लेकिन आज आपकी दृष्टि में मुझे सच्चा दर्शन हुआ।”
भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा:
> “जिस दिन साधक ‘मैं’ को छोड़कर ‘तू ही तू’ का भाव अपना लेता है, वहीं से सच्चा योग आरंभ होता है।”
—
फिर कभी नहीं दिखा वह योगी
उस दिन के बाद उस योगी को कभी किसी ने नहीं देखा। कहते हैं कि वह शिव की कृपा से अदृश्य हो गया और ब्रह्मज्ञान की उस अवस्था में विलीन हो गया जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता।
—
क्या सच्चा ज्ञान शब्दों से परे होता है?
यह कहानी सिर्फ रहस्य नहीं, बल्कि एक गहरी सीख भी है —
जहाँ अहंकार खत्म होता है, वहीं ईश्वर का साक्षात्कार आरंभ होता है।
शिव केवल बाहर नहीं, हमारे भीतर भी विराजते हैं — जब हम मौन होते हैं, शुद्ध होते हैं।
—
✅ कहानी से मिलती शिक्षा (Moral of the Story)
क्रम शिक्षा
1 सच्चा ज्ञान विनम्रता से आता है, अहंकार से नहीं।
2 प्रेम को महसूस किया जा सकता है, समझा नहीं जा सकता।
3 मृत्यु से डरना आत्मा की नहीं, अहंकार की पहचान है।
4 योग साधना का अंतिम लक्ष्य ‘मैं’ को त्यागना है।
5 ईश्वर की परीक्षा लेना मूर्खता है — उन्हें अनुभव करना ही तप है।
यह भी पढ़े भगवान कृष्ण ने राधा से क्यूँ ली एक अंतिम विदा https://divyakatha.com/2465-2-कृष्ण-की-राधा-एक-अनसुनी-ग/
— देखे शिव के अनोखे भक्त के चमत्कार https://www.youtube.com/watch?v=5eWtEi5yzGc