
savitri satyavan katha
प्रस्तावना – जब प्रेम बन जाए तपस्या
भारतीय संस्कृति में सावित्री और सत्यवान की कथा को “पतिव्रता धर्म”, भक्ति, और सच्चे प्रेम की मिसाल माना जाता है। यह कहानी न केवल एक स्त्री के साहस को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रेम और बुद्धि से मृत्यु जैसी अंतिम शक्ति को भी जीता जा सकता है। ये एक सच्ची कहानी है
सावित्री का जन्म और गुण
राजा अश्वपति की तपस्या
मद्र देश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान ब्रह्मा की तपस्या की। कई वर्षों बाद, उन्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने सावीत्री रखा — क्योंकि उन्होंने यह कन्या सावित्री देवी के आशीर्वाद से पाई थी।
विशेषताएँ
सावीत्री बचपन से ही:
सुंदर, शांत और बुद्धिमती थीं
वे वेद, शास्त्र और राजनीति की ज्ञाता थीं
समाज सेवा और ध्यान में रुचि रखती थीं
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सत्यवान से विवाह – भविष्यवाणी को स्वीकारना
सत्यवान की पहचान
एक दिन, सावित्री वन में घूमते हुए एक तपस्वी युवक से मिलीं – वही थे सत्यवान। वे एक वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, जिनका राज्य और नेत्र दोनों छिन चुके थे।
सावीत्री ने तय कर लिया कि वे सत्यवान से ही विवाह करेंगी।
नारद मुनि की चेतावनी
जब राजा अश्वपति ने नारद मुनि से परामर्श लिया, तो उन्होंने कहा:
> “सत्यवान तो योग्य है, परंतु केवल एक वर्ष जीवित रहेगा।”
पर सावित्रि अडिग रहीं:
> “धर्म के रास्ते पर चलना मेरा निर्णय है। एक बार जिसे अपना लिया, उसे कभी नहीं छोड़ सकती।”
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वनवास में जीवन और तपस्या
सेवा का जीवन
विवाह के बाद, सवित्री ने सास-ससुर की सेवा, सत्यवान के साथ मिलकर कुटिया की देखभाल और पूजा-पाठ में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
मृत्यु तिथि के तीन दिन पूर्व
जब उस भविष्यवाणी की तिथि निकट आई, तब सावित्री ने तीन दिन का उपवास और मौन व्रत लिया।
उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन ईश्वर से प्रार्थना करती रहीं कि उनके पति की रक्षा हो।
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मृत्यु का दिन – जब यमराज सामने आए
सत्यवान की तबीयत बिगड़ना
उस दिन सत्यवान लकड़ियाँ काटने के लिए वन गए। सावीत्री भी उनके साथ गईं। अचानक सत्यवान को चक्कर आया और वे गिर पड़े। सावित्री ने उन्हें गोद में ले लिया — और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।
यमराज का आगमन
तभी वहां यमराज प्रकट हुए और सत्यवान के प्राण लेकर चल पड़े। सावीत्री ने यमराज का पीछा करना शुरू कर दिया।
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यमराज से संवाद – धर्म का प्रभाव
पहला वरदान
यमराज ने कहा:
> “तुम धर्म की बात करती हो, मैं प्रसन्न हूँ। मांगो, क्या चाहती हो?”
सावित्री ने कहा:
> “मेरे ससुर को उनका राज्य और दृष्टि पुनः प्राप्त हो।”
यमराज ने स्वीकार किया।
दूसरा वरदान
> “मेरे पिता को सौ पुत्रों का सौभाग्य मिले।”
यह भी स्वीकार हुआ।
तीसरा वरदान
> “मुझे सत्यवान से सौ पुत्रों का वरदान दो।”
अब यमराज चौंक गए। वे बोले:
> “तुमने तो पति को छोड़कर वरदान माँगा था, पर अब बिना सत्यवान के सौ पुत्र कैसे?”
सावित्री मुस्कराई और बोली:
> “तो अब आप मेरे पति को वापस दीजिए।”
यमराज हारे और सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
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परिणाम – धर्म और प्रेम की विजय
सत्यवान जीवित हुए
द्युमत्सेन को राज्य और नेत्र वापस मिले
अश्वपति को पुत्र प्राप्त हुए
सावित्री ने भविष्यवाणी को पलट दिया
> 💬 यह कहानी बताती है कि स्त्री केवल एक पत्नी नहीं, बल्कि शक्ति और संकल्प की प्रतिमा है।
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सावित्री व्रत – आज भी जीवित परंपरा
भारत के कई राज्यों में महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं — अपने पति की लंबी उम्र के लिए।
वह बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और यह व्रत सावित्री जैसी पतिव्रता धर्म और समर्पण की प्रतीक बन गया है।
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FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सावित्री ने यमराज से क्या मांगा?
तीन वरदान माँगे: ससुर का राज्य और नेत्र, पिता को पुत्र, और स्वयं को सौ पुत्र — जिससे उन्हें सत्यवान को वापस करना पड़ा।
सत्यवान की मृत्यु क्यों निश्चित थी?
यह पूर्व-निर्धारित भविष्यवाणी थी, जिसे नारद
मुनि ने बताया था।
वट सावित्री व्रत किस दिन रखा जाता है?
सावित्री की पूरी कहानी आप youtube पर भी देख सकते है =https://www.youtube.com/watch?v=qMAnPoyTyaI
यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन उत्तर भारत में और पूर्णिमा को महाराष्ट्र आदि राज्यों में रखा जाता है।
वीर अभिमन्यु की कहानीhttps://divyakatha.com/%e0%a4%85%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%81-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%b9-%e0%a4%95%e0%a5%80/
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