
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
भूमिका
हिंदू धर्म में सत्य को परम धर्म माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराण सभी सत्य की महिमा का गुणगान करते हैं। शिव पुराण में एक अत्यंत रोचक प्रसंग मिलता है, जो हमें यह शिक्षा देता है कि असत्य चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः पराजित होता है और केवल सत्य ही विजय प्राप्त करता है। यही प्रसंग आगे चलकर “सत्यमेव जयते” के रूप में भारत की पहचान भी बना।
यह कथा भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु से जुड़ी है और यह सिद्ध करती है कि शिव ही आदि और अनंत हैं।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
कथा की पृष्ठभूमि
प्राचीन काल में एक बार ब्रह्मा और विष्णु में विवाद हो गया।
ब्रह्मा जी कहने लगे – “मैं ही सृष्टि का आदि कारण हूँ। मेरे बिना कुछ भी अस्तित्व में नहीं है।”
विष्णु जी बोले – “नहीं, मैं ही पालनहार और परमेश्वर हूँ। समस्त जगत मेरे अधीन है।”
दोनों में इतना बड़ा विवाद हुआ कि देवगण और ऋषि-मुनि भी असमंजस में पड़ गए कि कौन श्रेष्ठ है। तभी ब्रह्मांड में एक अद्भुत घटना घटी।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
अग्नि-स्तंभ का प्रकट होना
अचानक आकाश में एक अनंत अग्नि-स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ।
वह इतना विराट था कि उसकी चमक से दिशाएँ प्रकाशमान हो गईं।
ब्रह्मा और विष्णु दोनों चकित रह गए।
वे समझ ही नहीं पाए कि यह कौन-सी शक्ति है।
तभी आकाशवाणी हुई – “जो इस अग्नि-स्तंभ का अंत खोज लेगा, वही सृष्टि का आदि और अनंत कहलाएगा।”
यह सुनकर ब्रह्मा जी ऊपर की ओर उड़ चले और विष्णु जी नीचे की ओर चल पड़े।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
विष्णु जी का प्रयास
विष्णु जी ने वराह (सूअर) का रूप धारण किया और नीचे की ओर जाने लगे।
उन्होंने हजारों वर्षों तक इस अग्नि-स्तंभ का अंत ढूँढने का प्रयास किया।
वे गहराई तक जाते रहे, लेकिन अंत कहीं भी दिखाई नहीं दिया।
अंततः विष्णु जी थककर समझ गए कि यह शक्ति असीमित है।
विष्णु जी लौट आए और स्वीकार कर लिया –
“हे अनंत स्तंभ! मैं आपका अंत नहीं खोज पाया। आप ही अनादि और अनंत हैं।”
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
ब्रह्मा जी का असत्य
अब ब्रह्मा जी की बारी थी।
वे हंस रूप में आकाश की ओर उड़ चले।
लाखों वर्षों तक उड़ते रहे, परंतु उन्हें ऊपर की सीमा नहीं मिली।
इसी बीच उन्हें एक केतकी पुष्प (केंदुकमल) मिला, जो उस अग्नि-स्तंभ से गिर रहा था।
ब्रह्मा जी ने उससे कहा –
“तुम मेरे साक्षी बन जाओ और कह देना कि मैं अग्नि-स्तंभ के अंत तक पहुँच गया हूँ।”
केतकी पुष्प ने उनकी बात मान ली।
ब्रह्मा जी लौटकर विष्णु जी से बोले –
“मैं ऊपर तक पहुँच गया और वहाँ यह पुष्प मिला। यह मेरा साक्षी है।”
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
भगवान शिव का प्रकट होना
यह असत्य सुनकर अचानक उस अग्नि-स्तंभ से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए।
वे अत्यंत क्रोधित थे। उन्होंने ब्रह्मा जी की ओर देखा और बोले –
“हे ब्रह्मा! तुम सृष्टिकर्ता हो, तुम्हें धर्म का पालन करना चाहिए था। लेकिन तुमने झूठ का सहारा लिया। सत्य को छुपाकर असत्य का प्रचार करना सबसे बड़ा अधर्म है।”
शिव जी ने ब्रह्मा जी को शाप दिया –
“आज से तुम्हारी पूजा इस पृथ्वी पर कोई नहीं करेगा।”
यही कारण है कि आज भी विष्णु और शिव की पूजा सर्वत्र होती है, परंतु ब्रह्मा जी के मंदिर बहुत दुर्लभ हैं (भारत में केवल पुष्कर, राजस्थान में ही प्रमुख ब्रह्मा मंदिर है)।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
केतकी पुष्प को शाप
भगवान शिव ने केतकी पुष्प की ओर देखकर कहा –
“तुमने असत्य का साथ दिया। इसलिए अब से तुम्हारा प्रयोग मेरी पूजा में वर्जित रहेगा।”
आज भी शिवलिंग की पूजा में बेलपत्र, धतूरा, जल, दूध आदि चढ़ाया जाता है, लेकिन केतकी पुष्प निषिद्ध माना जाता है।
—
“सत्यमेव जयते” का संदेश
इस कथा से यह स्पष्ट हुआ कि –
सत्य ही परम धर्म है।
असत्य चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।
भगवान स्वयं सत्य के पक्षधर हैं।
इसी शिक्षा को बाद में ऋषि-मुनियों ने वेदों और उपनिषदों में स्थापित किया।
मुण्डकोपनिषद् (3.1.6) में लिखा है –
👉 “सत्यमेव जयते नानृतं।”
अर्थात् – सत्य की ही सदा विजय होती है, असत्य की नहीं।
इसी मंत्र को भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में स्वीकार किया।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
कथा से मिलने वाले मुख्य संदेश
1. सत्य सर्वोपरि है – चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, असत्य से बचना चाहिए।
2. अहंकार का त्याग करें – ब्रह्मा और विष्णु का विवाद अहंकार से उत्पन्न हुआ था।
3. भगवान शिव सत्य के प्रतीक हैं – वे सदैव धर्म और सत्य की रक्षा करते हैं।
4. झूठ के परिणाम घातक होते हैं – ब्रह्मा जी ने असत्य कहा, फलस्वरूप उन्हें शाप मिला।
5. सत्यमेव जयते – यही हिंदू धर्म का सार और भारत की पहचान बन गया।
—
सत्यमेव जयते कथा शिव पुराण से
निष्कर्ष
“सत्यमेव जयते कथा” हमें यह सिखाती है कि धर्म का वास्तविक आधार सत्य है।
भगवान शिव ने असत्य का नाश कर सत्य की स्थापना की।
इसलिए जीवन में चाहे कैसी भी स्थिति आए, हमें हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए।
आज जब हम भारतीय मुद्रा, सरकारी भवनों और न्यायालयों में “सत्यमेव जयते” अंकित देखते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि इसका मूल शिव पुराण की यह कथा ही है।