
सती से पार्वती तक – देवी शक्ति का अद्भुत पुनर्जन्म
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1. प्रारंभिक परिचय
हिंदू पुराणों में देवी शक्ति को सृष्टि की आधारशिला माना गया है। ब्रह्मा सृजन करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और महेश (शिव) संहार करते हैं, परंतु इन तीनों में शक्ति का संचार स्वयं आदि शक्ति से ही होता है।
यह कथा है – माता सती के जन्म से लेकर उनके पुनर्जन्म पार्वती के रूप में होने तक की। इसमें भक्ति, प्रेम, त्याग और पुनर्जन्म का रहस्य छिपा है।
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सती से पार्वती तक – देवी शक्ति का अद्भुत पुनर्जन्म
2. दक्ष प्रजापति की पुत्री – सती
सृष्टि के प्रारंभिक काल में दक्ष प्रजापति का वर्चस्व था। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और उनकी कन्याएँ अत्यंत तेजस्विनी एवं दिव्य गुणों से युक्त थीं। उन्हीं में से एक थीं सती।
सती का जन्म केवल संयोग नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय योजना का एक अंग था। वे स्वयं आदि शक्ति का अवतार थीं, जिन्हें भगवान शिव के संग विवाह करना था ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे।
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सती से पार्वती तक – देवी शक्ति का अद्भुत पुनर्जन्म
3. शिव से विवाह
सती बचपन से ही महादेव की भक्ति में लीन रहती थीं। उन्होंने संकल्प किया कि वे शिव को ही अपने पति के रूप में चुनेंगी। जब शिव ने उनके प्रेम और तपस्या को स्वीकार किया, तो दोनों का विवाह दिव्य रूप से संपन्न हुआ।
देवगण, ऋषि-मुनि और समस्त लोक इस विवाह में सम्मिलित हुए। यह एक ऐसा मिलन था जिसने सृष्टि की धारा को संतुलन प्रदान किया।
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4. दक्ष का यज्ञ और सती का अपमान
किंतु यहीं से कहानी में मोड़ आया। दक्ष प्रजापति शिव को पसंद नहीं करते थे। वे शिव को तपस्वी, भस्मधारी और “अघोरी” मानकर उनका तिरस्कार करते थे।
एक दिन दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। इसमें सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया गया, परंतु जान-बूझकर शिव और सती को आमंत्रण नहीं भेजा गया।
सती ने जब यह जाना, तो उन्हें बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने सोचा—
“मैं दक्ष की पुत्री हूँ, पिता के यज्ञ में जाना मेरा अधिकार है।”
वे बिना शिव की अनुमति के यज्ञ में पहुँच गईं।
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5. यज्ञ में हुआ भीषण अपमान
जब सती वहाँ पहुँचीं, तो दक्ष ने शिव का खुलेआम अपमान किया। उन्होंने महादेव को “अयोग्य, असभ्य और भस्मासुरों के स्वामी” कहकर गालियाँ दीं।
सती यह अपमान सहन न कर सकीं। वे गर्व से बोलीं—
“जिस शिव का अपमान तुम कर रहे हो, वही समस्त जगत के स्वामी हैं। तुम्हारा यह व्यवहार अधर्म है।”
लेकिन जब अपमान रुकने का नाम नहीं लिया, तो सती ने क्रोध और दुख में अपने शरीर का अग्नि में त्याग कर दिया।
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6. वीरभद्र और महाक्रोध
सती के प्राण त्याग की खबर जब शिव तक पहुँची, तो वे क्रोध से विकराल हो उठे। उन्होंने अपनी जटा से एक भयंकर योद्धा उत्पन्न किया—वीरभद्र।
वीरभद्र ने यज्ञ मंडप में प्रवेश किया और वहाँ हाहाकार मचा दिया। देवगण भाग खड़े हुए, यज्ञ की सामग्री नष्ट हो गई और दक्ष का सिर काट दिया गया।
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7. सती का विछोह और तांडव
सती के शरीर को लेकर शिव शोक में डूब गए। उन्होंने उनका मृत शरीर अपने कंधे पर उठा लिया और समस्त लोकों में भटकने लगे।
उनका यह प्रलय तांडव समस्त सृष्टि को डिगा रहा था। तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ 51 शक्तिपीठ प्रकट हुए।
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सती से पार्वती तक – देवी शक्ति का अद्भुत पुनर्जन्म
8. पार्वती के रूप में पुनर्जन्म
सती ने वचन दिया था कि वे शिव को ही अपना पति बनाएँगी। उसी वचन को पूर्ण करने के लिए उन्होंने राजा हिमवान और रानी मेनावती के यहाँ पुनर्जन्म लिया।
इस बार उनका नाम पड़ा—पार्वती।
बाल्यकाल से ही वे तपस्विनी रहीं। वे शिव को ही अपना पति मानकर कठोर तपस्या करने लगीं।
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सती से पार्वती तक – देवी शक्ति का अद्भुत पुनर्जन्म
9. पार्वती की तपस्या और शिव का पुनर्मिलन
पार्वती ने वर्षों तक कठिन तप किया। उन्होंने भोजन त्याग दिया, केवल पत्ते खाए, फिर जल पर रहीं और अंत में केवल वायु पर।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें स्वीकार किया। पुनः दोनों का दिव्य विवाह हुआ और देवताओं ने हर्षोल्लास से इसका उत्सव मनाया।
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10. उपसंहार
इस प्रकार सती से पार्वती तक की कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाते।
देवी शक्ति ने अपने वचन को पूर्ण किया और सृष्टि को यह संदेश दिया कि सच्चा प्रेम मृत्यु, अपमान और विछोह से भी परे होता है।
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