
सती–पार्वती और भगवान शिव का मिलन” की कथा
(एक विस्तृत, भक्तिमय और रोमांचकारी वृतांत)
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1. हिमालय की कन्या का जन्म
प्राचीन काल में राजा दक्ष प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। सती बचपन से ही शिव की अनन्य भक्त थीं। लेकिन समय बीतने पर एक घटना ने सम्पूर्ण सृष्टि को हिला दिया।
दक्ष को शिव का वरण पसंद नहीं था। उसने एक यज्ञ किया, जिसमें सारे देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन शिव और सती को नहीं।
सती ने पिता के घर जाकर जब यह अपमान देखा, तो व्यथित होकर योगाग्नि में अपने शरीर का परित्याग कर दिया।
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2. शिव का विरह और तप
सती के देह त्याग के बाद शिव गहन समाधि में चले गए। उन्होंने संसार से मुँह मोड़ लिया।
देवता संकट में पड़ गए, क्योंकि शिव के बिना सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।
उधर, हिमालय की पुत्री पार्वती का जन्म हुआ। माता मेना और पिता हिमवान ने उसे देवी का स्वरूप मानकर पाला। बचपन से ही पार्वती को शिव के प्रति गहरी आस्था थी।
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3. नारद मुनि का भविष्यवचन
एक दिन नारद जी पार्वती के पास आए। उन्होंने कहा –
“हे कन्ये! तुम पूर्वजन्म में सती थीं और भगवान शिव तुम्हारे पति थे। इस जन्म में भी तुम्हारा भाग्य शिव से ही बंधा है। यदि तुम कठोर तप करोगी, तो शिव स्वयं तुम्हें वरण करेंगे।”
यह सुनकर पार्वती का हृदय शिव–भक्ति से और प्रज्वलित हो उठा।
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4. पार्वती का तपस्या–प्रारम्भ
पार्वती ने अपने पिता से अनुमति लेकर घोर तपस्या आरंभ की।
पहले वे केवल फल खाती रहीं।
फिर केवल पत्तों पर निर्वाह किया।
अंत में निर्जल उपवास करने लगीं।
उनकी तपस्या से पूरी प्रकृति कांप उठी। देवता भी चकित हो गए कि एक राजकन्या इतनी कठोर साधना कैसे कर सकती है।
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5. देवताओं की योजना
देवताओं ने सोचा कि शिव का विवाह होना आवश्यक है, तभी तारकासुर जैसे राक्षस का वध संभव होगा। उन्होंने शिव को पार्वती की ओर आकृष्ट करने के उपाय खोजे।
कामदेव को भेजा गया कि वे शिव की समाधि भंग करें।
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6. कामदेव का अंत
जब शिव गहन ध्यान में बैठे थे, कामदेव ने अपना पुष्प बाण छोड़ दिया।
शिव ने आँख खोली और तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया।
देवता भयभीत हो गए। पार्वती भी इस घटना की साक्षी बनीं। उन्होंने समझ लिया कि शिव को केवल भक्ति और समर्पण से ही प्रसन्न किया जा सकता है।
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7. शिव का पार्वती की परीक्षा लेना
भगवान शिव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और पार्वती के पास गए।
उन्होंने कहा –
“कन्ये, तुम जिस शिव के लिए इतनी कठोर तप कर रही हो, वे तो श्मशानवासी, भूतों के स्वामी, गजचर्मधारी हैं। उनके पास न राजसी वैभव है न सुख। क्यों व्यर्थ कष्ट उठा रही हो?”
पार्वती मुस्कुराईं और बोलीं –
“महाराज, आप चाहे जो कहें, पर मेरे लिए तो शिव ही सर्वस्व हैं। उनके चरणों की धूल भी राजमहलों से श्रेष्ठ है।”
यह सुनकर शिव प्रसन्न हो गए और अपने असली रूप में प्रकट हो गए।
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8. शिव–पार्वती विवाह की तैयारी
देवताओं ने हर्ष मनाया। हिमालय पर्वत को आकाश से आभूषण मिले। समस्त लोकों ने इस विवाह की तैयारी की।
स्वयं विष्णु जी बारात में सम्मिलित हुए, ब्रह्मा जी ने यज्ञ कराया। नारद जी ने मंगल गीत गाए।
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9. शिव बारात का अद्भुत स्वरूप
शिव बारात में भूत–प्रेत, योगी, गण, गंधर्व सब शामिल हुए। बारात अद्भुत लेकिन भयानक लग रही थी।
मेना माता (पार्वती की माँ) भयभीत हो गईं। उन्होंने कहा – “क्या मेरी कन्या ऐसे भूतों के बीच जाएगी?”
तब भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि यह सब शिव की लीला है।
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10. दिव्य मिलन
आखिरकार शुभ मुहूर्त में हिमालय पर भव्य विवाह संपन्न हुआ।
सारे लोकों ने देखा कि कैसे सती ने पार्वती रूप में जन्म लेकर अपने शिव से पुनः मिलन किया।
यह केवल विवाह नहीं था, बल्कि भक्ति, तपस्या और प्रेम की विजय थी।
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11. संदेश
इस कथा से हमें तीन बातें मिलती हैं –
1. सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।
2. त्याग और तपस्या से असंभव भी संभव हो जाता है।
3. शिव और शक्ति का मिलन ही संसार की सृष्टि और संहार का संतुलन है।
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