
भगवान श्रीकृष्ण और समुद्र देवता की अद्भुत चमत्कारिक कथा
“श्रीकृष्ण समुद्र चमत्कार”)
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कथा का सार
श्रीकृष्ण और समुद्र देवता की यह अनसुनी चमत्कारिक कथा आपको चकित कर देगी। जानिए कैसे श्रीकृष्ण ने समुद्र से मार्ग बनाया और अद्भुत चमत्कार किए। पढ़िए पूरी कहानी।
भूमिका
श्रीकृष्ण की लीलाएँ अनंत हैं। वे केवल एक राजा या योद्धा ही नहीं, बल्कि साक्षात भगवान हैं। उनकी चमत्कारिक शक्तियाँ समय-समय पर प्रकट होती रही हैं। आज हम आपको श्रीकृष्ण और समुद्र देवता के बीच घटित एक अद्भुत चमत्कारिक कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। यह कथा द्वारका नगरी के निर्माण और समुद्र के सहयोग से जुड़ी हुई है।
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1️⃣ द्वारका नगरी की स्थापना
महाभारत के युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण मथुरा छोड़कर पश्चिम दिशा में समुद्र तट पर पहुँचे। यहाँ उन्हें यदुवंश के लिए एक सुरक्षित और सुंदर नगरी बसानी थी। मथुरा में बार-बार आक्रमणों से परेशान होकर श्रीकृष्ण ने सोचा कि समुद्र के बीच एक अजेय नगरी बनाई जाए।
उन्होंने समुद्र देवता वरुण से प्रार्थना की:
“हे समुद्र देव, कृपया मुझे अपनी भूमि में थोड़ा स्थान दीजिए ताकि मैं वहाँ यदुवंश के लिए एक नई नगरी बसा सकूँ।”
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2️⃣ समुद्र देव की परीक्षा
समुद्र देव पहले तो इस प्रस्ताव से संकोच में पड़ गए। वे बोले:
“हे माधव, यह मेरा अधिकार क्षेत्र है। मैं इसे किसी को नहीं दे सकता। लेकिन यदि आप अपनी शक्ति से मुझे आश्वस्त कर दें कि यह कार्य धर्म और लोकहित में है, तो मैं अवश्य सहायता करूँगा।”
यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराए और अपनी योगमाया से समुद्र की लहरों को शांत कर दिया। समस्त समुद्र क्षेत्र एकदम स्थिर हो गया। देवता, ऋषि-मुनि सब यह अद्भुत दृश्य देखकर चकित रह गए।
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3️⃣ समुद्र का झुकना
श्रीकृष्ण ने समुद्र के बीच में खड़े होकर पुनः वरुण देव से कहा:
“हे वरुण, देखिए, यह सब लोककल्याण के लिए है। यदि आप मुझे यह भूमि देंगे तो यहाँ एक ऐसा नगर बसाऊँगा जो समुद्र से भी अधिक गौरवशाली होगा।”
समुद्र देव श्रीकृष्ण के तेज, शक्ति और विनम्रता से प्रभावित होकर बोले:
“हे श्रीकृष्ण, मैं आपको अपनी भूमि में बारह योजन का स्थान देता हूँ। आप वहाँ अपनी इच्छानुसार नगरी बसाइए।”
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4️⃣ द्वारका नगरी का निर्माण
समुद्र ने जैसे ही भूमि दी, श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा देव को बुलाया। विश्वकर्मा ने अद्भुत शिल्पकला का प्रदर्शन करते हुए कुछ ही महीनों में समुद्र के बीच एक भव्य नगरी का निर्माण कर दिया।
यह नगरी सोने, चाँदी, हीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई थी। महल, मंदिर, उद्यान, जलाशय — सब इतने सुंदर थे कि देवता भी द्वारका को देखने आते थे।
द्वारका नगरी चमत्कारिक रूप से समुद्र के बीच बनी थी, जो सामान्य मनुष्यों के लिए असंभव था।
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5️⃣ अद्भुत चमत्कार — समुद्र मार्ग खुलना
एक बार एक राक्षस द्वारका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र के मार्ग से चला। श्रीकृष्ण को इसका आभास हुआ। उन्होंने समुद्र से आदेश दिया:
“हे समुद्र, इस राक्षस के लिए मार्ग बंद कर दो।”
समुद्र ने उसी क्षण अपने जल को ठोस बना दिया। राक्षस समुद्र में फँस गया और श्रीकृष्ण ने उसे अपने सुदर्शन चक्र से समाप्त कर दिया।
यह देखकर समुद्र देवता पुनः श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए बोले:
“हे प्रभु, आप केवल हमारे स्वामी ही नहीं, सृष्टि के रचयिता हैं। आप जो चाहें वह संभव है।”
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6️⃣ श्रीकृष्ण का आशीर्वाद
समुद्र देव की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया:
“हे वरुण, जब-जब मेरे भक्त संकट में होंगे और आपको पुकारेंगे, आप उनकी सहायता अवश्य करेंगे।”
इसी आशीर्वाद के कारण आज भी समुद्र किनारे बसे कई भक्त श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और समुद्र से रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
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7️⃣ कथा से सीख
विश्वास और विनम्रता से सबसे बड़ा कार्य भी संभव होता है।
प्रकृति भी उस व्यक्ति की सेवा में लग जाती है जो ईमानदारी और धर्म के मार्ग पर चलता है।
श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण से असंभव भी संभव हो जाता है।
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निष्कर्ष
श्रीकृष्ण और समुद्र देवता की यह चमत्कारिक कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान के साथ जब भक्त का समर्पण और संकल्प जुड़ता है तो पूरी प्रकृति भी सहायक बन जाती है। द्वारका नगरी केवल एक वास्तु नहीं थी, बल्कि श्रीकृष्ण के चमत्कार और समुद्र के समर्पण का प्रतीक थी।
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श्रीकृष्ण समुद्र चमत्कार
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