
कहानी शीर्षक: श्रीकृष्ण और मृकतृष्णा: एक चमत्कारी लीला
कृष्ण की मृगतृष्णा लीला की अनसुनी कहानी
🟡 भूमिका: माया की परतों के पार
द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण का राज्य स्थापित हो चुका था। चारों ओर सुख, समृद्धि और शांति थी। लेकिन एक दिन एक विचित्र घटना घटी — राजमहल के आंगन में अचानक एक स्वर्णिम हिरण प्रकट हुआ, जिसकी आँखों में चमक और चाल में मायाजाल था। यह कोई साधारण हिरण नहीं था, बल्कि एक चमत्कारी संकेत था – ब्रह्मांड की गहराई से आती हुई एक अदृश्य चुनौती।
🔵 हिरण का पीछा और रुक्मिणी की चिंता
श्रीकृष्ण उस हिरण को देखकर मुस्कुराए, परंतु रुक्मिणी माता का मन विचलित हुआ। उन्होंने कहा,
“प्रभु! यह हिरण कोई साधारण नहीं, मृगतृष्णा जान पड़ता है। कृपा कर इसे अनदेखा करें।”
कृष्ण बोले, “प्रिये, यह माया की परीक्षा है। जब तक सत्य स्वयं माया को न समझे, वह पूर्ण नहीं कहलाता।”
यह कहकर श्रीकृष्ण उस हिरण के पीछे जंगलों की ओर चल पड़े।
🔴 वन में भ्रम और माया का जाल
जैसे ही श्रीकृष्ण जंगल में पहुंचे, हिरण ने एक दिव्य गुफा में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण भी भीतर गए। वहां वातावरण बदल गया — चारों ओर स्वर्णिम प्रकाश, हवा में मंत्रों की गूंज, और अचानक एक दिव्य स्वर गूंजा:
> “हे योगेश्वर! क्या आप भी माया के इस जाल में फँस सकते हैं?”
कृष्ण मुस्कुराए और बोले, “जहाँ माया है, वहाँ लीला है। और जहाँ लीला है, वहाँ कृष्ण अवश्य होते हैं।”
तभी हिरण ने अपना असली रूप लिया — वह एक प्राचीन यक्ष था, जिसे एक शाप के कारण मृग का रूप मिला था।
🟢 यक्ष की पीड़ा और श्रीकृष्ण का वरदान
यक्ष ने कहा, “हे प्रभु! मैं एक ऋषि का पुत्र हूँ। एक बार मैंने ज्ञान के अभिमान में एक तपस्वी को तुच्छ समझा और उन्हें भ्रमित किया। उन्होंने मुझे मृग बनने का शाप दिया और कहा कि जब स्वयं श्रीकृष्ण मेरे पीछे चलेंगे, तब मेरा उद्धार होगा।”
कृष्ण बोले, “तुम्हारा समय पूर्ण हुआ। अब तुम ज्ञान के साथ विनम्रता भी सीख चुके हो।”
कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया, और यक्ष का शरीर ज्योति में विलीन हो गया।
🟣 रुक्मिणी का व्रत और लीला का समापन
इधर रुक्मिणी जी ने श्रीकृष्ण की रक्षा हेतु एक दिव्य व्रत का संकल्प लिया — “अगर मेरा प्रेम शुद्ध है और मेरा विश्वास अडिग, तो मेरे प्रभु सकुशल लौटें।”
जैसे ही व्रत पूर्ण हुआ, कृष्ण वापस लौटे और कहा:
> “प्रिये, तुम्हारे विश्वास ने ही माया की लीला को समाप्त किया।”
⚫ इस लीला का संदेश
यह लीला केवल एक चमत्कारी घटना नहीं थी, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक संकेत थी:
हिरण = मन की चंचलता और माया।
वन = आत्मा की खोज की कठिन यात्रा।
रुक्मिणी का प्रेम = श्रद्धा, विश्वास और अडिग समर्पण।
कृष्ण का पीछा = सत्य का स्वयं भ्रम का सामना करना।
youtube पर देखे कृष्ण की चम्ताकारिक कहानिया
—
ये भी पढ़ो राधा कृष्ण की अनसुनी कहानी https://divyakatha.com/राधा-कृष्ण-की-अनसुनी-चमत्/