
🕉️ भगवान गणेश की अनसुनी कथा: “श्रापित गजमुख और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति”
🟠 भगवान गणेश और श्रापित गजमुख की कथा
🟢 : भूमिका – वह समय जब ज्ञान ही शक्ति था
सनातन धर्म के अनुसार जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, तब ज्ञान, शक्ति और कर्म तीन मुख्य स्तंभ बने। देवताओं और असुरों के बीच सिर्फ अस्त्रों का नहीं, बल्कि ज्ञान का युद्ध भी होता था। ऐसे ही एक युग में, एक रहस्यमय प्राणी था — गजमुख, जो कभी अत्यंत बुद्धिमान ऋषि हुआ करता था।
गजमुख को अपने ज्ञान पर अभिमान था। उसने वर्षों तक ब्रह्मा की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि कोई भी देवता या दानव उसे ज्ञान में पराजित नहीं कर सकता। लेकिन अभिमान अंततः पतन का कारण बनता है।
🟢 ऋषि गजमुख का पतन और श्राप
गजमुख, अब एक महान ज्ञानी बन चुका था, लेकिन वह धीरे-धीरे अपने ज्ञान का दुरुपयोग करने लगा। वह साधारण लोगों को मूर्ख समझता और देवताओं के निर्णयों को चुनौती देने लगा।
एक बार उसने स्वयं भगवान विष्णु के निर्णय को ‘अज्ञान’ कह दिया। क्रोधित होकर देवी सरस्वती ने उसे श्राप दिया:
> “हे गजमुख! तूने ज्ञान का दुरुपयोग किया है। अब तू उस स्वरूप को धारण करेगा जो तेरे अभिमान का प्रतीक होगा — हाथी का सिर। तू गजमुख कहलाएगा और ब्रह्मज्ञान से वंचित रहेगा, जब तक तुझे असली ज्ञान ना प्राप्त हो।”
वह ऋषि एक विशाल हाथीमुखी राक्षस में बदल गया। लोग उससे डरने लगे और वह जंगलों में भटकने लगा।
🟢श्रापित गजमुख का आतंक और देवताओं की चिंता
श्रापित गजमुख, अब अपनी स्थिति से व्यथित था लेकिन अभिमान छोड़ने को तैयार नहीं था। वह जंगलों में तप कर अपनी शक्ति बढ़ाता गया। एक समय ऐसा आया जब उसने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। इंद्र, वरुण, अग्नि सभी देवता मिलकर भी उसे पराजित नहीं कर सके।
देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव से मदद मांगी। शिवजी ने कहा, “अब समय है कि गणेश इस युद्ध को समाप्त करें। ज्ञान और विनय का असली मेल वही है।”
🟢 भगवान गणेश का प्रकट होना
भगवान गणेश, जो बालरूप में थे, माता पार्वती के साथ कैलाश पर रहते थे। शिवजी ने उन्हें बुलाया और कहा:
> “गणेश, आज तुझे एक ऐसे प्राणी से सामना करना है जो ज्ञान में तुझसे भी आगे था, पर अब पतित हो चुका है। याद रखो, असली ज्ञान वही है जो विनय और करुणा के साथ जुड़ा हो।”
गणेश मुस्कुराए और अपने मूषक वाहन पर सवार होकर गजमुख की ओर चल पड़े।
🟢 गणेश और गजमुख की पहली भेंट
गजमुख ने जैसे ही गणेश को देखा, वह हँस पड़ा।
> “तू बच्चा है, मैं हजारों वर्षों का तपस्वी! तू मुझे क्या हरा पाएगा?”
गणेश बोले, “जीतने की बात नहीं है गजमुख, तुम्हें स्वयं से जीतना है।”
यह सुनकर गजमुख ने आक्रमण कर दिया। मूषक इधर-उधर भागा, और गणेश अपने परशु से युद्ध करते रहे। यह युद्ध कई दिनों तक चला।
🟢 गणेश की चालाकी और विनय
गणेश जानते थे कि गजमुख को बल से नहीं, बुद्धि से हराया जा सकता है। उन्होंने एक रणनीति बनाई। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव से आशीर्वाद लिया और एक पहेली तैयार की।
गणेश ने गजमुख से कहा, “अगर तू इतना ज्ञानी है, तो मेरी यह पहेली सुलझा दे:
> ‘जो ज्ञानी होकर भी मौन रहे, जो विजयी होकर भी विनीत रहे — वही ब्रह्म है। बताओ मैं किसकी बात कर रहा हूँ?’”
गजमुख चकरा गया। उसने हजारों ग्रंथ पढ़े थे, लेकिन इस प्रश्न का उत्तर उसके अभिमान के आवरण से बाहर था।
🟢 गजमुख का हृदय परिवर्तन
उसने उत्तर न दे पाने पर क्रोध में आकर फिर आक्रमण किया, लेकिन गणेश ने उसे अपने दंत से घायल कर दिया। तभी गजमुख को असली ज्ञान की अनुभूति हुई।
वह गणेश के चरणों में गिर पड़ा।
> “हे विनायक! अब मैं समझा कि ज्ञान में विनम्रता सबसे आवश्यक है। मुझे क्षमा करें। आपने मेरी आँखें खोल दीं।”
🟢 गणेश का वरदान
गणेश बोले, “हे गजमुख, तूने अंततः असली ज्ञान को पहचान लिया। अब तू मेरे वाहन रूप में रहेगा और संसार को यह शिक्षा देगा कि अहंकार से बड़ा कोई अंधकार नहीं।”
इस प्रकार गजमुख, जो पहले अहंकार में डूबा हुआ था, भगवान गणेश का मूषक वाहन बन गया।
🟠 इस कथा का गूढ़ रहस्य
यह कथा केवल एक युद्ध की नहीं, आत्मज्ञान की है। श्रापित गजमुख जैसे कई लोग हममें भी होते हैं — जो ज्ञान तो पाते हैं, लेकिन उसे दिखावे और अभिमान के लिए उपयोग करते हैं।
गणेश यह सिखाते हैं कि वास्तविक बुद्धिमत्ता वह है जो:
प्रश्न कर सके
मौन रह सके
हार स्वीकार कर सके
दूसरों को ज्ञान बाँट सके, ना कि छोटा महसूस कराए
🟢 कथा से जुड़ा प्रतीकवाद
तत्व अर्थ
श्रापित गजमुख अभिमान में डूबा ज्ञान
गणेश विनय और विवेक का मेल
मूषक अहंकार पर नियंत्रण
दंत बलिदान और आत्म-नियंत्रण
पहेली आत्मचिंतन की चुनौती
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