
शिव और भस्मासुर की कहानी – अहंकार, शक्ति और बुद्धि का संगम
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Meta Description:
शिव और भस्मासुर की कहानी , जिसमें अहंकारी असुर को भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप से परास्त किया। पढ़ें पूरी कहानी
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भूमिका – क्यों यह कथा अमर है
भारत की प्राचीन कथाओं में शिव और भस्मासुर की कथा एक अनूठा स्थान रखती है।
यह कहानी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक गहरी शिक्षा भी देती है —
“शक्ति का दुरुपयोग विनाश लाता है, और बुद्धि सबसे बड़ी ताकत है।”
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भस्मासुर का जन्म और महत्वाकांक्षा
भस्मासुर एक दैत्यकुल में जन्मा। बचपन से ही उसने अपने पूर्वजों की वीरता और देवताओं के साथ उनकी लड़ाइयों की कहानियाँ सुनी थीं।
उसके भीतर शक्ति और प्रभुत्व की तीव्र इच्छा थी।
दृश्य वर्णन:
रात का समय, आकाश में तारे चमक रहे हैं।
दैत्यग्राम में अग्नि के चारों ओर बैठे बुजुर्ग वीरगाथाएँ सुना रहे हैं।
एक बालक भस्मासुर, चमकती आँखों से उन कहानियों को सुन रहा है।
भस्मासुर का मन:
> “मैं ऐसा वरदान प्राप्त करूंगा कि मुझे कोई हरा न सके।”
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शिवजी को प्रसन्न करने की ठान
भस्मासुर ने सुना था कि भगवान शिव अत्यंत भोले हैं और सच्ची तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान देते हैं।
उसने तय किया कि वह अपनी पूरी शक्ति से शिवजी को प्रसन्न करेगा।
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कठिन तपस्या की शुरुआत
भस्मासुर हिमालय की ओर निकल पड़ा।
वह एक बर्फीली गुफा में बैठ गया और कठोर तपस्या करने लगा।
दृश्य:
बर्फ़ की मोटी चादर गुफा के मुहाने पर जमी है।
ठंडी हवाएँ अस्थियों को कंपा रही हैं।
भस्मासुर बिना वस्त्र, केवल ध्यान में लीन।
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मौसम का असर
गर्मी में: तेज धूप में अंगारों पर बैठना।
सर्दी में: बर्फ़ में खड़े होकर ध्यान करना।
बरसात में: लगातार जलधारा के नीचे खड़े रहना।
उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन गया, लेकिन तपस्या का तेज और भी प्रबल हो गया।
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देवताओं की चिंता
देवलोक में इंद्र, अग्निदेव और वरुणदेव चर्चा कर रहे थे।
इंद्र:
> “यह दैत्य अगर खतरनाक वरदान माँग ले, तो हम सबके लिए संकट है।”
अग्निदेव:
> “शिवजी को पहले ही चेतावनी देनी चाहिए, लेकिन शायद अब देर हो चुकी है।”
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शिवजी का प्रकट होना
वर्षों बाद, भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए।
उनका गले में नाग, जटाओं में गंगा, और माथे पर चंद्रमा।
शिवजी:
> “भस्मासुर, तुम्हारी तपस्या ने मुझे प्रसन्न किया है। वर माँगो।”
भस्मासुर:
> “मुझे यह शक्ति दीजिए कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूँ, वह तुरंत भस्म हो जाए।”
भोलेनाथ ने, अपनी भोली प्रवृत्ति के कारण, तुरंत कहा—
> “तथास्तु।”
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वरदान का दुरुपयोग
शक्ति पाते ही भस्मासुर ने उसका परीक्षण शुरू कर दिया।
पहले उसने एक छोटे दैत्य को छुआ — वह भस्म हो गया।
फिर एक योद्धा — वह भी भस्म हो गया।
उसका अहंकार बढ़ने लगा।
— शिवजी को ही भस्म करने की योजना
भस्मासुर ने सोचा—
> “अगर मैं शिवजी को ही भस्म कर दूँ, तो मैं सबसे बड़ा देव बन जाऊँगा।”
वह कैलाश पर्वत की ओर चल पड़ा।
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शिवजी का बचाव और भागना
भस्मासुर को आते देख शिवजी समझ गए कि मामला गंभीर है।
वे वहाँ से भागे और तीनों लोकों में दौड़ते रहे।
दृश्य:
बर्फ़ीले पर्वत, घने जंगल, नदियों का पार करना।
पीछे-पीछे भस्मासुर, हाथ उठाए, जैसे बस छूने ही वाला हो।
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विष्णुजी से सहायता
थके और चिंतित शिवजी अंततः वैकुण्ठ पहुँचे।
शिवजी:
> “नारायण, मैंने गलती कर दी है। अब केवल आप ही मदद कर सकते हैं।”
विष्णुजी:
> “यह काम बल से नहीं, बुद्धि से होगा। मैं इसका उपाय करता हूँ।”
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मोहिनी अवतार का रूप
विष्णुजी ने मोहिनी का रूप धारण किया।
केशों में फूलों की मालाएँ।
चंद्रमा जैसा मुख।
मोरपंखी वस्त्र।
मधुर हँसी की ध्वनि।
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भस्मासुर और मोहिनी की मुलाकात
भस्मासुर मोहिनी को देखकर मोहित हो गया।
> “हे सुंदरी, तुम कौन हो?”
मोहिनी:
> “मैं एक नर्तकी हूँ। परंतु जो मेरे संग नृत्य करना चाहता है, उसे मेरी हर मुद्रा की हूबहू नकल करनी होगी।”
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नृत्य का जाल
नृत्य शुरू हुआ—
मोहिनी ने एक हाथ ऊपर उठाया, भस्मासुर ने भी उठाया।
उसने कमर पर हाथ रखा, उसने भी रखा।
वह घूमी, वह भी घूम गया।
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अंत का क्षण
अंत में मोहिनी ने अपने हाथ को सिर पर रखा।
भस्मासुर ने भी नकल की — और जैसे ही उसका हाथ सिर पर पड़ा, वह भस्म हो गया।
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शिक्षा
अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग विनाश लाता है।
बुद्धि और संयम से बड़ी कोई ताकत नहीं।
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FAQs
Q1: भस्मासुर को वरदान किसने दिया?
भगवान शिव ने।
Q2: मोहिनी कौन थीं?
भगवान विष्णु का मोहक अवतार।
Q3: भस्मासुर की मृत्यु कैसे हुई?
मोहिनी के नृत्य की नकल करते हुए उसने अपना हाथ सिर पर रखा और स्वयं भस्म हो गया।
—youtube पर देखे भस्मासुर और शिव की कथा
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