
प्रस्तावना
लंका विजय के बाद की एक अनसुनी यात्रा
रामायण में हनुमान जी की भूमिका सबसे अद्भुत और अद्वितीय है। लेकिन लंका विजय और रामराज्य की स्थापना के बाद उनका क्या हुआ? क्या वे सिर्फ कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ हो गए? या फिर उन्होंने किसी रहस्यमयी स्थान पर चमत्कारी लीला रची? इस कहानी में हम जानेंगे एक ऐसी कथा जो मुख्य रामायण और पुराणों में कम वर्णित है — हनुमान जी की अज्ञात यात्रा।
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1. रामराज्य की स्थापना के बाद
लंका दहन, विभीषण का राज्याभिषेक और श्रीराम का अयोध्या लौटना — ये सारे प्रसंग तो आपने सुने ही होंगे। रामराज्य की स्थापना के बाद श्रीराम ने हनुमान जी से कहा:
> “हे महाबली! अब मेरी सेवा का समय समाप्त हो चला है, अब तुम स्वयं का मार्ग चुन सकते हो।”
हनुमान जी विनम्रता से बोले:
> “प्रभु! जब तक यह पृथ्वी रहेगी, मैं आपकी कीर्ति का गान करता रहूँगा।”
यहीं से शुरू होती है एक अद्भुत लीला — हनुमान जी की अदृश्य यात्रा।
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2. हिमालय की गुफा में 100 वर्षों की तपस्या
हनुमान जी कैलाश पर्वत के उत्तर दिशा में स्थित गंधमादन पर्वत के समीप एक गुफा में प्रविष्ट हुए। वहां उन्होंने 100 वर्षों तक मौन तपस्या की। न कोई भोजन, न कोई जल। केवल “राम राम” का जप।
इस तप के दौरान उन्हें कई दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हुईं —
जल पर चलने की क्षमता
एक ही समय में अनेक स्थानों पर रहने की शक्ति
भविष्य की घटनाओं को देख सकने की दृष्टि
एक बार हिमालय में एक तेजस्वी ऋषि उनकी तपस्या से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा:
> “हे वानर श्रेष्ठ! तुम्हारे भीतर अद्वितीय प्रकाश है। तुम्हारा यह रूप तो त्रिकालदर्शी सिद्धों जैसा है।”
हनुमान जी ने विनम्रता से उत्तर दिया —
> “मेरा बल, मेरा ध्यान — सब श्रीराम की कृपा है।”
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3. प्राचीन नागलोक की रक्षा
तपस्या पूरी होने के बाद हनुमान जी को एक दिव्य प्रेरणा मिली। उन्होंने नागलोक की ओर प्रस्थान किया, जो पाताल लोक में स्थित था। वहाँ पर तक्षक नाग की एक संकटपूर्ण स्थिति थी — असुरों ने नागलोक को हड़पने का षड्यंत्र रचा था।
हनुमान जी ने वहाँ जाकर अकेले ही हजारों असुरों से युद्ध किया।
उनका युद्ध तीन दिनों तक चला।
तीसरे दिन एक रहस्यमयी शक्ति प्रकट हुई — नारकीय अग्नि, जो असुरों ने रची थी।
हनुमान जी ने उस अग्नि को अपनी पूंछ पर समेटकर समुद्र में विसर्जित कर दिया।
नागराज तक्षक ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा:
> “हे हनुमंत! आपने तो आज नागवंश को नया जीवन दिया है।”
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4. यक्षलोक की परीक्षा
नागलोक से लौटते समय हनुमान जी कुबेर के निवास स्थान — अलका पुरी पहुँचे। वहां यक्षों ने उन्हें पहचानने से मना कर दिया, क्योंकि हनुमान जी ने साधारण योगी का रूप धारण कर रखा था।
यक्षराज ने उनसे प्रश्न किया:
> “हे तपस्वी! तुम कौन हो जो बिना निमंत्रण अलका पुरी आए हो?”
हनुमान जी मुस्कराए और उत्तर दिया:
> “जब तुम सच्चे सेवक को पहचान नहीं सकते, तब मैं क्या उत्तर दूँ?”
फिर उन्होंने अपनी विराट रूप का दर्शन कराया —
आकार इतना बड़ा कि आकाश छिप गया
आँखों से ज्वाला निकल रही थी
उनका शरीर सूर्य के समान तेजस्वी हो गया
यक्षराज दंग रह गए और उन्होंने तुरंत चरणों में नमन किया।
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5. कलियुग के लिए भविष्यवाणी
हनुमान जी यक्षों से विदा लेकर नर्मदा नदी के तट पर पहुंचे। वहां एक योगी (वास्तव में भगवान शिव का अंश) ने उनसे कहा:
> “हे हनुमंत! एक दिन ऐसा आएगा जब कलियुग में तुम्हारा नाम ही लोगों को संकट से बचाएगा।”
हनुमान जी ने तब यह वचन दिया:
> “जहाँ राम कथा होगी, वहाँ मैं अदृश्य रूप में रहूँगा। जो मेरा स्मरण करेगा, उसकी रक्षा मैं स्वयं करूँगा।”
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6. आधुनिक युग में हनुमान जी के दर्शन
कई साधकों ने अपने अनुभव में कहा है कि उन्हें संकट के समय एक लाल वस्त्रधारी वानर ने बचाया।
1857 की क्रांति में कई सैनिकों ने एक दिव्य शक्ति को देखा
1962 के भारत-चीन युद्ध में तवांग क्षेत्र में कई जवानों ने महसूस किया कि किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें बचाया
एक संत ने अपने अनुभव में बताया कि उन्हें एक अज्ञात वानर योगी ने हिमालय में भोजन कराया
इन सभी घटनाओं को जोड़ें तो समझ में आता है —
हनुमान जी आज भी जीवित हैं, सक्रिय हैं और संकट के समय प्रकट होते हैं।
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7. अमरत्व और चिरंजीव भाव
पुराणों में उल्लेख है कि हनुमान जी अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं।
उनका वचन है:
> “राम नाम का जहां उच्चारण होगा, वहां मैं रहूँगा।”
आज भी अनेक तीर्थों, पर्वतों, मंदिरों में साधक उन्हें अनुभव करते हैं।
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8. निष्कर्ष
हनुमान जी केवल राम भक्त नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के संरक्षक हैं।
उनकी अज्ञात यात्राएं, रहस्यमयी लीलाएं, और चमत्कारी उपस्थिति उन्हें मानव इतिहास का अद्वितीय पात्र बनाती है।
यह कथा हमें यह संदेश देती है —
> “भक्ति, सेवा और बल का सही प्रयोग करने वाला व्यक्ति युगों तक जीवित रहता है — जैसे श्री हनुमान।”
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