
राजा जनक और याज्ञवल्क्य का संवाद – आत्मज्ञान की अमूल्य खोज
भूमिका
प्राचीन भारत में मिथिला के प्रसिद्ध राजा जनक केवल अपने साम्राज्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपने गहन आध्यात्मिक ज्ञान और सत्य के प्रति जिज्ञासा के लिए भी जाने जाते थे। वे न्यायप्रिय, तपस्वी स्वभाव के और विद्वानों के संरक्षक थे।
एक बार उन्होंने घोषणा की —
> “जो भी मुझे वह ज्ञान देगा जो अमरता की ओर ले जाए, मैं उसे स्वर्ण और रत्नों से भर दूँगा।”
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याज्ञवल्क्य का आगमन
राजा की सभा में कई ऋषि-मुनि आए, लेकिन अंत में पहुँचे ऋषि याज्ञवल्क्य। वे तेजस्वी, गंभीर और शांतचित्त थे। उन्होंने राजा को प्रणाम किया।
राजा जनक ने पूछा:
> “मुझे वह ज्ञान चाहिए जिससे मृत्यु का भय समाप्त हो जाए।”
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया:
> “राजन, इसके लिए पहले आपको त्याग की अग्नि से गुजरना होगा।”
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पहली शिक्षा – आत्मा का स्वरूप
याज्ञवल्क्य ने कहा:
> “राजन, यह शरीर मिट्टी के पात्र जैसा है। जैसे पात्र टूटने पर उसमें रखा जल बाहर आता है, वैसे ही मृत्यु के समय शरीर नष्ट होता है और आत्मा अपनी यात्रा जारी रखती है। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है — वह शुद्ध चेतना है।”
राजा ने प्रश्न किया:
> “यदि आत्मा अमर है, तो हम भय और दुख क्यों अनुभव करते हैं?”
याज्ञवल्क्य बोले:
> “भय केवल अज्ञान से जन्मता है। जो अपने को केवल शरीर और मन मानता है, वह भयभीत रहता है। लेकिन जो जान लेता है कि वह आत्मा है — अजर, अमर, अविनाशी — उसका भय समाप्त हो जाता है।”
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दूसरी शिक्षा – ब्रह्म का अनुभव
कुछ दिन बाद, याज्ञवल्क्य ने राजा को मिथिला के महल से बाहर ले जाकर शांत वन में बैठाया।
उन्होंने पूछा:
> “राजन, जब आप सोते हैं, तब आपका राज्य, आपका नाम, और आपका शरीर — सब कहाँ चला जाता है?”
राजा ने कहा:
> “मैं कुछ नहीं जानता, जैसे गहरी नींद में शून्य हो जाता हूँ।”
याज्ञवल्क्य ने समझाया:
> “वही शून्यता, वह गहरी शांति — वही तुम्हारा असली स्वरूप है। वह नष्ट नहीं होती, केवल अनुभव से ओझल हो जाती है।”
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तीसरी शिक्षा – त्याग की परीक्षा
याज्ञवल्क्य ने कहा:
> “राजन, आत्मज्ञान पाने के लिए धन, पद, और मोह छोड़ना पड़ता है।”
राजा जनक ने मुस्कुराकर अपना मुकुट उतारकर कहा:
> “ऋषिवर, मेरा राज्य आपका है, मुझे केवल सत्य चाहिए।”
याज्ञवल्क्य ने कहा:
> “सत्य का अर्थ है — न मैं राजा हूँ, न तुम ऋषि; हम दोनों एक ही ब्रह्म के अंश हैं।”
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चौथी शिक्षा – मृत्यु पर विजय
याज्ञवल्क्य ने अंतिम उपदेश दिया:
> “राजन, मृत्यु शरीर की है, आत्मा की नहीं। जब तुम इसे अनुभव कर लोगे, तब मृत्यु तुम्हारे लिए केवल एक वस्त्र बदलने जैसी होगी।”
राजा जनक समाधि में चले गए और कुछ समय बाद जब लौटे तो उनकी आँखों में अद्भुत शांति थी। उन्होंने कहा:
> “अब मैं जान गया कि मैं अमर हूँ।”
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जीवन से जुड़ी सीख
1. सच्चा ज्ञान त्याग और सत्य से मिलता है।
2. भय केवल अज्ञान का परिणाम है।
3. आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
4. मृत्यु अंत नहीं, केवल एक परिवर्तन है।
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