
अनसुनी भक्ति कहानी: गौरी की माँ अन्नपूर्णा में अद्भुत आस्था
प्रस्तावना
भारत के हृदय में बसे गाँवों में आज भी ऐसे असंख्य किस्से छुपे हैं, जो भक्ति, आस्था और चमत्कार का प्रमाण देते हैं। यह कहानी है गौरी नाम की एक स्त्री की, जिसकी भक्ति और माँ अन्नपूर्णा का चमत्कार न केवल उसके जीवन को, बल्कि पूरे गाँव को बदल गया।
पहला अध्याय – गरीबी और संघर्ष
गौरी अपने छोटे गाँव संतनगर में अपने पति रामलाल और दो बच्चों के साथ रहती थी। उसका पति मजदूरी करता था, गौरी दूसरों के घर में काम करके दो वक़्त की रोटी जुटा पाती थी। गाँव में अकाल पड़ा, तो मजदूरी मिलना कम हो गया। घर में अक्सर दो-दो दिन खाना नहीं बनता, बच्चे भूख से रोते रहते।
गौरी हमेशा अपनी माँ अन्नपूर्णा की छोटी सी तस्वीर के आगे दीपक जलाती, कुछ टूटे-फूटे फूल चढ़ाती और विनती करती –
“माँ, मेरे बच्चों की भूख मुझसे देखी नहीं जाती। तू ही इनका पेट भर सकती है।”
दूसरा अध्याय – गाँव वालों की उपेक्षा
गाँव के लोग अक्सर गौरी से कहते-
“भक्तिभाव से पेट नहीं भरता, काम करो, मेहनत करो।”
गौरी चुपचाप सुन लेती और ईश्वर की जयकार करती। वह मानती थी कि माँ अन्नपूर्णा एक न एक दिन उसकी पुकार जरूर सुनेंगी।
तीसरा अध्याय – प्रार्थना की शक्ति
एक रात जब बारिश आई, गौरी ने अपनी माँ अन्नपूर्णा के सामने घुटनों के बल बैठ कर बेसुध होकर विनती करी –
“माँ, अगर सच्ची भक्ति में शक्ति है तो आज मेरी परीक्षा ले। मेरे बच्चों के लिए कुछ कर।”
इसी रात उसे स्वप्न में माँ अन्नपूर्णा ने दर्शन दिए। माँ ने मुस्कुराकर कहा –
“बेटी, दिल से जो माँगा जाए, वह हमेशा मिलता है। नदी के किनारे सुबह जाइयो।”
चौथा अध्याय – माँ अन्नपूर्णा का चमत्कार
सुबह-सुबह गौरी नदी किनारे पहुँची। एक चमकता कलश रेत में दबा मिला। गौरी के हाथ काँप उठे। जैसे ही उसने कलश उठाया, उसके अंदर से ताज़े अनाज की खुशबू आई। उसने कलश घर लाकर उसमें से थोड़ा चावल निकाला और बच्चों को खिलाया।
अगले दिन फिर कलश में अनाज मिल गया। गौरी ने जरूरत के मुताबिक केवल तक निकालती, बाकी को नहीं छूती। उसका नियम था – “केवल भूख मिटाने भर अनाज लेना, लोभ न करना।”
पाँचवाँ अध्याय – गाँव की बदली तस्वीर
धीरे-धीरे गाँव वालों को इस कलश की खबर लग गई। कुछ लोग चकित थे, कुछ ने इसे चमत्कार मान लिया, कुछ ने इसे बहाना समझा।
लेकिन गौरी ने लोभियों को कलश छूने नहीं दिया। उसने केवल उन्हींगरीब परिवारों को कलश से अनाज बांटना शुरू किया जिन्हें सचमुच जरूरत थी।
गाँव में न कोई भूखा सोता, न कोई अपमानित महसूस करता। गाँव की महिलाओं ने गौरी से भक्ति, त्याग और संयम की सीख ली। हर दिन शाम को गाँव की महिलाएँ इकट्ठी होकर माँ अन्नपूर्णा का भजन करतीं और दीप जलातीं।
छठा अध्याय – कलश की परीक्षा और शिक्षा
एक बार गाँव के कुछ लालची लोग चोरी-छुपे कलश पूरा उठाकर भागने लगे। अगले ही क्षण कलश में से अनाज निकलना बंद हो गया।
गौरी ने खूब दुखी होकर माँ अन्नपूर्णा से प्रार्थना की –
“माँ, अगर मेरी नीयत में कमी थी तो माफ कर, मैं तुझे कभी नहीं भूलूँगी।”
अचानक कलश में फिर से थोड़ा सा अनाज प्रकट हुआ। एक आवाज़ आई –
“गौरी, जब तक सेवा, भक्ति और त्याग रहेगा, मेरी कृपा तेरे ऊपर बनी रहेगी। लोभ आया, तो चमत्कार चला जाएगा।”
गाँव का उत्थान और गौरी की भक्ति
अब गाँव की महिलाएँ मिलकर हर हफ्ते एक दिन खास माँ अन्नपूर्णा के भजन-कीर्तन करतीं, अन्न गरीबों में बांटा जाता। लोग जान गए कि सच्ची भक्ति सेवा और त्याग में ही है।
गौरी अब गाँव की देवी जैसी दिखने लगी थी। उसके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े अफसर बने, और मुसीबत के समय कभी भी उनकी माँ की भक्ति, साहस और सेवा को नहीं भूले।
निष्कर्ष और शिक्षा
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सच्ची भक्ति केवल भगवान के नाम जपने में नहीं, दूसरों के लिए निःस्वार्थ सेवा में है।
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लोभ, स्वार्थ और अभिमान कभी भी चमत्कार को ख़त्म कर देते हैं।
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सच्चे मन और श्रद्धा से की गई प्रार्थना का उत्तर अवश्य ही मिलता है।
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