
📖 महाभारत के बाद श्रीकृष्ण का क्या हुआ
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🟢 महाभारत के बाद का समय और गांधारी का शाप
महाभारत के बाद शांति
कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद जब कौरव वंश का नाश हो गया, तो युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया।
पांडवों ने राज्य संभाला और धर्म की स्थापना की। युद्ध के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को समझाया कि धर्मपालन ही अब उनका सबसे बड़ा कर्तव्य है।
लेकिन युद्ध ने सबको भीतर से तोड़ दिया था।
भीष्म पितामह शरशैया पर थे।
द्रोण, कर्ण, अभिमन्यु और लाखों वीरों का अंत हो चुका था।
कौरवों की माता गांधारी के सौ पुत्र मारे जा चुके थे।
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गांधारी का शाप
जब गांधारी ने देखा कि उनके सारे पुत्र युद्ध में नष्ट हो गए हैं, तो उन्होंने श्रीकृष्ण पर क्रोध जताया।
गांधारी ने कहा –
“हे माधव! आप भगवान होते हुए भी युद्ध को रोक सकते थे, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। आपने निष्पक्ष रहते हुए भी पांडवों की सहायता की।”
इस दुःख और क्रोध में उन्होंने कृष्ण को शाप दिया –
“जैसे मेरे कुल का नाश हुआ है, वैसे ही आपके यादव वंश का भी नाश होगा।”
कृष्ण मुस्कुराए और शांत भाव से बोले –
“माता, आप जो कह रही हैं, वह सत्य है। यादव वंश भी अपने अहंकार और कलह से नष्ट होगा। यह ईश्वर की ही योजना है।”
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द्वारका की समृद्धि और धीरे-धीरे पतन
युद्ध के बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट आए।
द्वारका उस समय स्वर्ण नगरी कहलाती थी — समुद्र के बीच बसी, अद्भुत महलों और समृद्धि से भरी हुई।
लेकिन समय के साथ यादव वंश में अहंकार और मद बढ़ता गया।
वे अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर गर्व करने लगे।
धर्म और मर्यादा कमजोर होने लगी।
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मूसल पर्व की भूमिका
एक समय नारद ऋषि और कुछ महर्षि द्वारका आए।
यादव युवकों ने मज़ाक करते हुए एक लड़के को स्त्री के वेश में सजाकर ऋषियों से पूछा –
“बताइए, यह स्त्री किसको जन्म देगी?”
ऋषियों ने क्रोधित होकर कहा –
“यह तुम्हें लोहे का मूसल (गदा) जन्म देगी, जिससे पूरा यादव वंश नष्ट होगा।”
वास्तव में उस लड़के के गर्भ से एक लोहे का मूसल निकला।
राजा उग्रसेन ने उसे पीसकर समुद्र में फेंक दिया।
लेकिन समुद्र ने उस लोहे को तिनके की तरह बाहर फेंक दिया।
बाद में उन्हीं तिनकों से यादवों का विनाश हुआ।
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🟢 यादव वंश का अंत और बलराम जी का प्रस्थान
यादवों में कलह
समय बीतता गया और यादवों में कलह बढ़ने लगी।
एक दिन प्रभास क्षेत्र में सभी यादव एक उत्सव के लिए एकत्र हुए।
वहाँ मदिरा पान और व्यर्थ की बहस होने लगी।
नशे में चूर होकर यादव आपस में भिड़ गए।
छोटे-छोटे तिनके (जो समुद्र ने बाहर फेंके थे) लोहे में बदल गए और वे तिनके ही उनके हाथों में हथियार बन गए।
उन्होंने एक-दूसरे पर हमला कर दिया।
सारी द्वारका रणभूमि में बदल गई।
भाई ने भाई को मारा, पिता ने पुत्र को और पुत्र ने पिता को।
अंततः पूरा यादव वंश उसी शाप के अनुसार नष्ट हो गया।
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बलराम जी का प्रस्थान
यादवों के अंत के बाद बलराम जी (शेषनाग का अवतार) भी तपस्या में लीन हो गए।
उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और एक दिव्य श्वेत नाग का रूप लेकर समुद्र में विलीन हो गए।
इस प्रकार शेषनाग अपने धाम लौट गए।
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श्रीकृष्ण का अंतिम समय
अब केवल भगवान श्रीकृष्ण ही शेष रह गए।
उन्होंने भी प्रभास क्षेत्र में जाकर ध्यान लगाया।
तभी जरा नामक एक शिकारी ने उन्हें दूर से हिरण समझकर तीर चला दिया।
वह तीर श्रीकृष्ण के चरण में लगा।
शिकारी जब पास आया और पहचान पाया कि यह तो स्वयं द्वारकाधीश कृष्ण हैं, तो वह भयभीत हो गया।
लेकिन श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा –
“मत डरो, यह सब नियति का खेल है। तुम मेरे हाथों नारायण के लोक में स्थान पाओगे।”
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अवतार का समापन किया और अपने वास्तविक स्वरूप में विष्णुलोक प्रकट हो गए।
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🟢: द्वारका का डूबना और कलियुग की शुरुआत
द्वारका का डूबना
भगवान कृष्ण के प्रस्थान के बाद समुद्र ने धीरे-धीरे द्वारका नगरी को डूबोना शुरू कर दिया।
स्वर्ण महल, राजमार्ग और मंदिर सब जलमग्न हो गए।
केवल श्रीकृष्ण की कीर्ति और नाम ही शेष रह गया।
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अर्जुन का द्वारका आगमन
जब अर्जुन को श्रीकृष्ण के देहांत का समाचार मिला, तो वे द्वारका पहुँचे।
वहाँ उन्होंने द्वारका को वीरान पाया।
कृष्ण के परिवार की स्त्रियाँ और बच्चे भयभीत थे।
अर्जुन उन्हें लेकर हस्तिनापुर चल पड़े।
लेकिन रास्ते में डाकुओं ने हमला कर दिया।
उस समय अर्जुन ने पाया कि उनकी गाण्डीव धनुष की शक्ति अब समाप्त हो चुकी है।
वे कृष्ण के बिना असहाय हो गए।
कई यादव स्त्रियाँ और बच्चे डाकुओं के हाथों मारे गए या बंदी बना लिए गए।
अर्जुन किसी तरह शेष जनों को लेकर इन्द्रप्रस्थ पहुँचे।
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पांडवों का महाप्रस्थान
जब युधिष्ठिर और पांडवों को यह ज्ञात हुआ कि कृष्ण नहीं रहे और द्वारका डूब चुकी है, तो उन्होंने भी समझ लिया कि अब कलियुग की शुरुआत हो चुकी है।
उन्होंने राज्य त्याग दिया और महाप्रस्थान की ओर बढ़े।
अंततः हिमालय की ओर जाते हुए वे एक-एक कर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।
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कलियुग का आरंभ
भगवान कृष्ण के देहांत और द्वारका के डूबने के साथ ही कलियुग का आरंभ हुआ।
ऋषियों ने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब भगवान पुनः अवतार लेकर धर्म की रक्षा करेंगे।
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निष्कर्ष
महाभारत के बाद कृष्ण की कहानी हमें यह सिखाती है कि संसार में अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।
भगवान कृष्ण ने स्वयं अपने वंश के विनाश की योजना को स्वीकार किया, ताकि पृथ्वी बोझमुक्त हो सके।
उनका प्रस्थान एक नए युग — कलियुग — की शुरुआत था।
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