
भगीरथ और गंगा अवतरण की दिव्य कथा
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भाग 1 – राजा सगर का यज्ञ और शापित साठ हज़ार पुत्र
त्रेतायुग में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश में राजा सगर का जन्म हुआ। वे पराक्रमी, सत्यवादी और धर्मनिष्ठ राजा थे। सगर की दो रानियाँ थीं – एक से उन्हें एक पुत्र असमनज प्राप्त हुआ और दूसरी से साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ।
राजा सगर ने एक बार अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के लिए छोड़ा गया घोड़ा इंद्रदेव के भय से कहीं और नहीं, बल्कि ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में जाकर ठहर गया। जब सगर के साठ हज़ार पुत्र घोड़े की खोज में पहुँचे तो उन्होंने बिना सोचे-विचारे कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया।
कपिल मुनि, जो योगबल से समाधि में लीन थे, उन अपमानजनक वचनों से क्रोधित हुए। उनके क्रोध की अग्नि से सगर के सारे पुत्र वहीं भस्म हो गए। उनके शव वहीं धरती में समा गए और उनकी आत्माएँ मोक्ष के बिना प्रेत योनि में भटकने लगीं।
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भाग 2 – भगीरथ का संकल्प
सगर वंश के बाद कई पीढ़ियाँ बीतीं। अंततः राजा भगीरथ का जन्म हुआ। वे अत्यंत पराक्रमी, तपस्वी और धर्मपरायण थे। उन्होंने सुना कि उनके पूर्वजों की आत्माएँ कपिल मुनि के शाप के कारण प्रेत योनि में तड़प रही हैं।
भगीरथ ने निश्चय किया –
“मैं अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाकर ही रहूँगा। इसके लिए मुझे गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाना होगा। गंगा के पवित्र जल से मेरे पूर्वजों की आत्माएँ शुद्ध होकर मुक्त हो जाएँगी।”
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भाग 3 – गंगा को धरती पर लाने का प्रयास
भगीरथ तपस्या करने हिमालय की गुफाओं में चले गए। वर्षों तक कठोर तप करते रहे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गंगा देवी प्रकट हुईं।
गंगा ने कहा –
“हे राजकुमार! मैं अवश्य पृथ्वी पर उतरूँगी, परंतु मेरी धाराएँ इतनी प्रचंड हैं कि यदि मुझे रोकने वाला कोई न हुआ तो पूरी पृथ्वी बह जाएगी।”
भगीरथ ने उत्तर दिया –
“हे देवी, आप चिंता न करें। मैं स्वयं कोई उपाय खोजूँगा।”
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भाग 4 – भगवान शिव का आवाहन
गंगा की तीव्र धारा को नियंत्रित करने वाला कोई और नहीं, केवल महादेव ही हो सकते थे।
इसलिए भगीरथ ने हिमालय में जाकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। वर्षों तक वे निर्जल, निराहार रहकर केवल “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते रहे।
अंततः भोलेनाथ प्रकट हुए और बोले –
“वत्स भगीरथ, मैं प्रसन्न हूँ। गंगा को मैं अपनी जटाओं में धारण करूँगा। उसकी प्रचंड धारा मेरी जटाओं से होकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरेगी।”
भगीरथ ने कृतज्ञ होकर भगवान शिव को प्रणाम किया।
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भाग 5 – गंगा का धरती पर अवतरण
निर्धारित समय पर स्वर्गलोक से गंगा देवी प्रचंड वेग से पृथ्वी की ओर उतरीं। उनकी गर्जना से तीनों लोक कांप उठे।
लेकिन भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया।
गंगा देवी क्रोधित हो उठीं – “मुझे बंदी बना लिया गया है!”
किन्तु जब शिव ने धीरे-धीरे अपनी जटाएँ खोलीं तो गंगा की धाराएँ पवित्र रूप में पृथ्वी पर उतर आईं।
उस क्षण से गंगा को भागीरथी भी कहा जाने लगा, क्योंकि वे भगीरथ की तपस्या से धरती पर आईं।
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भाग 6 – पूर्वजों की मुक्ति
भगीरथ ने रथ चलाकर गंगा की धारा को उस स्थान तक पहुँचाया जहाँ उनके साठ हज़ार पूर्वज भस्म होकर पड़े थे।
गंगा का पावन जल उनके अस्थि-पंजरों पर गिरते ही उनकी आत्माएँ शुद्ध हो गईं और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
स्वर्गलोक में आनंद छा गया। देवताओं ने पुष्पवर्षा की और गंगा के पृथ्वी पर आगमन का उत्सव मनाया।
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भाग 7 – गंगा का महत्व
गंगा के अवतरण से केवल सगर वंश ही नहीं, सम्पूर्ण मानवजाति को लाभ हुआ।
गंगा को “त्रिपथगा” कहा जाता है –
1. स्वर्ग में – मंदाकिनी
2. पृथ्वी पर – गंगा
3. पाताल में – भागीरथी
गंगा स्नान और गंगा जल से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि आज भी गंगा मैया को मुक्तिदायिनी, मोक्षदायिनी कहा जाता है।
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उपसंहार
यह कथा हमें सिखाती है कि –
भक्ति, तप और संकल्प से असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं।
भगवान की कृपा और धैर्य से ही लोक-कल्याण होता है।
गंगा केवल नदी नहीं, बल्कि जीवों की रक्षक माँ हैं।
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