
अघोरी शिव
अनसुनी कहानी: जब भगवान शिव ने एक अघोरी का रूप लिया
परिचय – जब ईश्वर साधारण रूप में प्रकट होते हैं
हिंदू धर्म में भगवान केवल मंदिरों तक सीमित नहीं हैं। वे समय-समय पर अनेक रूपों में प्रकट होते हैं, ताकि अपने भक्तों की परीक्षा ले सकें, उन्हें मार्ग दिखा सकें या दंभ को तोड़ सकें। ऐसी ही एक अनसुनी कथा है भगवान शिव की — जब उन्होंने एक अघोरी का रूप लेकर एक संत की कठोर परीक्षा ली।
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संत चैतन्यनाथ की कथा
बहुत समय पहले की बात है। हिमालय की तलहटी में एक संत रहते थे — चैतन्यनाथ। वे परम वैरागी, ब्रह्मचारी और शिव के अनन्य भक्त थे। वे दिन-रात शिव की आराधना करते, भस्म लगाए रखते, और किसी से कोई व्यवहार नहीं रखते थे।
लोग उन्हें बहुत मानते थे, पर धीरे-धीरे उनमें अहंकार आ गया। उन्हें लगने लगा कि वे ही शिव के सबसे बड़े भक्त हैं और भगवान उनसे प्रसन्न हैं।
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भगवान शिव ने ली परीक्षा लेने की ठानी
भगवान शिव सब देख रहे थे। उन्हें अपने प्रिय संत का अहंकार अच्छा नहीं लगा। उन्होंने सोचा, “अब समय है कि चैतन्यनाथ को सच्ची भक्ति का अर्थ समझाया जाए।”
एक रात भगवान शिव एक अघोरी साधु के रूप में उनके आश्रम के सामने प्रकट हुए — गंदे वस्त्र, उलझे बाल, शरीर पर राख, और हाथ में एक खोपड़ी का प्याला।
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अघोरी का आगमन
सुबह-सुबह जब चैतन्यनाथ स्नान करके पूजा की तैयारी कर रहे थे, तभी अघोरी वहां आ पहुँचा और बोला:
> “भोला नाथ की जय हो! मुझे बहुत भूख लगी है, कुछ भिक्षा दो।”
चैतन्यनाथ ने उसे घृणा से देखा और बोले:
> “भाग जा यहां से! अपवित्र प्राणी! तू मेरे शिव-मंदिर को अशुद्ध कर रहा है!”
अघोरी हँसा और बोला:
> “तू जिस शिव की पूजा करता है, वो खुद अघोरी हैं। क्या तू इतना भी नहीं जानता?”
यह सुनकर चैतन्यनाथ क्रोधित हो गया:
> “तू भगवान शिव को जानता है? तू एक अपवित्र, मांस खाने वाला, शराब पीने वाला अघोरी! तू शिव की तुलना अपने से करता है?”
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भगवान ने खोला अपना रूप
अघोरी मुस्कराया। फिर उसकी आँखों से तेज़ प्रकाश निकला। उसके शरीर से दिव्य आभा निकलने लगी। धीरे-धीरे वह अघोरी रूप बदलने लगा, और सामने प्रकट हुए — स्वयं महादेव शिव।
चैतन्यनाथ अवाक रह गए। उन्होंने चरणों में गिरकर क्षमा मांगी।
भगवान शिव बोले:
> “हे संत! तू अच्छा तपस्वी है, परंतु अभी भी तुझमें भेदभाव है। जो सच्चा भक्त होता है, वह हर प्राणी में भगवान को देखता है — चाहे वह अघोरी हो या ब्राह्मण। भक्ति का मतलब केवल पूजा-पाठ नहीं, विनम्रता और समभाव भी है।”
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चैतन्यनाथ का परिवर्तन
इस घटना ने चैतन्यनाथ की आंखें खोल दीं। उन्होंने अपने सारे बाहरी आडंबर छोड़ दिए और जीवन को समर्पण और समभाव से जीने लगे। वे अब हर व्यक्ति में भगवान को देखने लगे — चाहे वह गरीब हो, अपवित्र हो या अज्ञानी।
उनका आश्रम एक पवित्र स्थल बन गया, जहाँ हर जाति, धर्म और अवस्था के लोग सम्मान से आते और ज्ञान प्राप्त करते।
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इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
अहंकार भक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है।
भगवान केवल मंदिरों में नहीं, हर रूप में मौजूद हैं।
सच्ची भक्ति में भेदभाव की कोई जगह नहीं होती।
विनम्रता और करुणा ही ईश्वर तक पहुँचने का सच्चा मार्ग है।
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यह कथा क्यों है अनसुनी?
यह कथा पुरानी तांत्रिक परंपराओं और लोककथाओं में छिपी हुई है। इसे मुख्यधारा के ग्रंथों में बहुत कम जगह मिली है, लेकिन संतों और अघोरी परंपरा में यह कहानी अक्सर सुनाई जाती है — एक चेतावनी के रूप में कि “ईश्वर की परीक्षा को कभी छोटा मत समझो।”
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निष्कर्ष
भगवान शिव की यह लीला आज भी हमें यह सिखाती है कि ईश्वर केवल भव्यता में नहीं, बल्कि सादगी और सरल
ता में भी होते हैं। अगर हम आंखें खोलें, तो हर व्यक्ति, हर परिस्थिति और हर चुनौती में भगवान का ही रूप नज़र आएगा।
जानिए कैसे लिया अघोरी का रूप शिव ने https://www.youtube.com/watch?v=KpD7ilkHxm0