
भगवान शिव की भूले-बिसरी चमत्कारी कथा | अनसुनी कहानी जो रुला देगी
🧿 कहानी का सार
पढ़िए एक वृद्ध भिखारी और भगवान शिव की भक्ति की वो अनसुनी कहानी जो आज भी सबक देती है। यह चमत्कारी कथा बताती है कि सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।
🔱 प्रस्तावना (Introduction)
भारतवर्ष की मिट्टी में हजारों सालों से ईश्वर की भक्ति और चमत्कारों की कहानियाँ गूंजती आ रही हैं। चाहे वो संत हों या साधु, आमजन हों या राजा—भगवान शिव के चमत्कारों से हर कोई प्रभावित रहा है। आज हम आपको ऐसी ही एक भूले-बिसरे भक्त और भगवान शिव की कृपा से जुड़ी कहानी सुना रहे हैं, जो न तो किसी पुराण में विस्तार से लिखी गई है और न ही बहुतों ने सुनी है।
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🧓🏼 एक वृद्ध भिखारी की कथा की शुरुआत
बहुत समय पहले की बात है, उत्तराखंड की हिमालयी वादियों के पास स्थित एक छोटे से गांव “त्रिलोकपुर” में एक बूढ़ा भिखारी रहा करता था। उसका नाम था — धरमदास। जीवनभर कोई संतान नहीं, न कोई परिवार। केवल एक लाठी, एक फटी कमली और उसके होंठों पर भगवान शिव का नाम।
धरमदास रोज़ गांव-गांव घूमकर “भोलेनाथ की जय” कहता और जो कुछ मिल जाता, उसी से पेट भर लेता। कई लोग उसे पागल कहते, कई दया करते, और कई तो पत्थर तक मारते।
लेकिन वो चुपचाप केवल एक ही बात कहता —
“भोले बाबा मेरे संग हैं, वो कभी अकेला नहीं छोड़ते।”
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🕉️ मंदिर और धरमदास का नाता
गांव के किनारे एक प्राचीन और टूटा-फूटा शिव मंदिर था। वहाँ कोई पूजा नहीं करता था। लेकिन धरमदास वहाँ हर सुबह आता, मंदिर की सफाई करता, बेलपत्र चढ़ाता और घंटी बजा कर कहता:
> “भोलेनाथ, आज भी तुझसे मिलने आया हूं, तेरी सेवा की है, तेरी जय हो।”
लोग हँसते थे कि भगवान उस टूटे मंदिर में कैसे होंगे? पर धरमदास को विश्वास था।
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🙏🏻 एक दिन की करुण कथा
एक रात तेज बारिश हुई। धरमदास मंदिर में ही था, छत से पानी टपक रहा था, लेकिन वो लाठी के सहारे खड़ा होकर भगवान शिव के सामने भजन गा रहा था।
उसी वक्त मंदिर में एक नौजवान साधु आया, भीगा हुआ, कांपता हुआ।
धरमदास ने बिना कुछ सोचे अपनी गीली कमली उतार कर उसे दे दी और कहा:
> “बाबा, मेरी उम्र बीत गई है, पर तुम ठंड मत खाओ।”
साधु बोला:
“तुमने मुझे ठंड से बचाया, पर खुद कांप रहे हो।”
धरमदास हँसा और बोला:
“मेरे भोलेनाथ मुझे थाम लेंगे, मैं उनके लिए जीता हूं।”
🕉️ अगली सुबह — चमत्कार
सुबह गाँववालों ने देखा कि टूटे मंदिर पर सफेद कमल खिले हुए हैं, मंदिर में सुगंध फैल रही है और शिवलिंग से दूध बह रहा है।
लोग चकित रह गए।
और तभी धरमदास वहाँ मृत अवस्था में मिला — उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान थी।
पास में वही साधु खड़ा था, लेकिन अब वो कोई और था…
उसने कहा:
> “मैं वही हूं जिसने कमली ली थी। मैं वही हूं जिसे इस वृद्ध ने अपनी सेवा दी… मैं महादेव हूं।”
⚡ भगवान शिव का वरदान
भोलेनाथ बोले:
> “इस वृद्ध ने मुझे शुद्ध भाव से अपनाया, सेवा की, कभी स्वार्थ नहीं रखा। अब मैं इसे अपने लोक में स्थान दे रहा हूं।”
उसके बाद धरमदास का शरीर वहीं जल में समा गया, और वहाँ से एक शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ।
आज भी उस स्थान को “धरमेश्वर धाम” कहा जाता है, और कहा जाता है कि वहाँ सच्चे मन से शिव का नाम लेने वाले को दरिद्रता नहीं सताती।
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📖 इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
1. सच्ची भक्ति किसी मूर्ति या मंदिर की नहीं, भाव की होती है।
2. ईश्वर रूप बदलकर परीक्षा लेते हैं।
3. सेवा, त्याग और प्रेम — यही भगवान को प्रसन्न करते हैं।
4. जो दूसरों की मदद करता है, उसे ईश्वर कभी नहीं छोड़ते।
🪔 निष्कर्ष (Conclusion)
धरमदास की कहानी हमें यह सिखाती है कि भक्ति में दिखावा नहीं, सच्चाई होनी चाहिए। भगवान शिव को अगर कोई चीज प्रिय है तो वो है — निर्मल प्रेम और सेवा भाव। आज के समय में जब लोग स्वार्थ से पूजा करते हैं, धरमदास जैसे भक्त हमें सच्चे मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं।
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