
कहानी का शीर्षक:
“भगवान शिव और मृत्युलोक की परीक्षा: एक रहस्यमयी रात का रहस्य”
🕉️ भगवान शिव और मृत्युलोक की परीक्षा
“जानिए भगवान शिव की उस रहस्यमयी रात की चमत्कारी कथा, जब वे स्वयं मृत्युलोक में एक सामान्य गृहस्थ बनकर उतरे।
🕉️ प्रारंभ — कैलाश पर एक विचित्र मौन
कैलाश पर्वत पर एक दिन गहन मौन था। नंदी, भृंगी और गणों ने देखा कि आज भगवान शिव ध्यान में नहीं हैं। उनकी आँखें खुली थीं, लेकिन चेहरा चिंतनशील था। पार्वती जी ने पूछा –
“नाथ, क्या कुछ अनर्थ होने वाला है?”
शिव मुस्कराए और बोले –
“देवी, आज मैं मृत्युलोक की परीक्षा लेने जा रहा हूँ।”
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🕉️ अवतार — एक निर्धन ब्राह्मण का वेश
भगवान शिव ने अपने त्रिनेत्र को बंद किया और पल भर में वे एक साधारण वृद्ध ब्राह्मण के रूप में एक गाँव में प्रकट हो गए। शरीर पर फटे-पुराने कपड़े, हाथ में लकड़ी की एक पुरानी लाठी, और मुख पर वैराग्य का तेज।
वे उत्तर भारत के एक गाँव “शमशानपुर” पहुँचे। यह गाँव अक्सर आपसी कलह, लालच और पाखंड से ग्रसित रहता था।
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🕉️ गाँव की पहली परीक्षा — सत्य बनाम लालच
ब्राह्मण वेशधारी शिव एक अमीर साहूकार के घर पहुँचे और कहा —
“हे गृहस्वामी, मुझे भोजन चाहिए।”
साहूकार ने तिरस्कार से देखा —
“जा बाबा, तेरे लिए मेरे पास समय नहीं।”
पर शिव वहीं बैठ गए।
शाम तक गाँव के कई लोगों ने उन्हें अपशब्द कहे, कोई भोजन न दिया।
तभी गाँव की एक गरीब विधवा “गोमती” आई। उसके पास एक ही रोटी थी, पर उसने प्रेम से शिव को खिला दी।
शिव मुस्कराए, पर कुछ बोले नहीं। यही पहली परीक्षा थी — और गोमती उत्तीर्ण हुई।
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🕉️ मृत शरीर और चमत्कार
अगले दिन गाँव के सरपंच का बेटा एक दुर्घटना में मारा गया। सारा गाँव दुख में डूब गया।
तभी एक बालक चिल्लाया —
“वही बाबा, जो कल भिक्षा माँग रहे थे, वे कोई सिद्ध पुरुष लगते हैं!”
सभी गाँववाले दौड़कर उनके पास पहुँचे और निवेदन करने लगे —
“महाराज, हमारे पुत्र को जीवन दे दीजिए।”
शिव ने कहा —
“कल मैंने भूख में तड़पते हुए माँगा था। किसी ने नहीं सुना। अब क्यों?”
सबने क्षमा माँगी।
शिव ने मृत बालक के शव पर जल छिड़का और मंत्र फूंका — बालक उठ खड़ा हुआ।
पूरे गाँव में शिव का नाम गूंज उठा।
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🕉️ गाँव की दूसरी परीक्षा — अहंकार बनाम सेवा
अब गाँव का पुरोहित, जो सदैव पूजा और तंत्र-मंत्र में लिप्त रहता था, शिव से ईर्ष्या करने लगा।
उसने कहा —
“यह कोई ढोंगी है। इसके पीछे कोई माया है। मैं सच्चा ब्राह्मण हूँ।”
शिव ने मुस्करा कर कहा —
“यदि तुम सत्य हो, तो एक कार्य कर दो। उस कुएँ में गिरा बच्चा निकलवा दो।”
पुरोहित ने बहुत तंत्र-मंत्र किए, लेकिन असफल रहा।
शिव ने गोमती को बुलाया।
उसने प्रार्थना की — “हे प्रभु, कृपा करो।”
शिव ने केवल हाथ बढ़ाया और बालक जल से बाहर आ गया।
लोगों को समझ आ गया कि सच्चा ब्राह्मण सेवा में है, ना कि दिखावे में।
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🕉️ भगवान शिव का वास्तविक रूप
जब पूरे गाँव ने नतमस्तक होकर उनसे नाम पूछा —
शिव ने त्रिशूल प्रकट किया, गंगा उनकी जटाओं से बह निकली, और उनके तीसरे नेत्र से प्रकाश निकल पड़ा।
सारा गाँव काँप उठा।
भगवान शिव ने कहा —
“मैं कोई भिक्षुक नहीं, मैं स्वयं नीलकंठ हूँ। मैं आया था देखने — क्या तुम अब भी दान, सेवा और करुणा में जीवित हो या नहीं।”
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🕉️ शिव का आशीर्वाद और गाँव का कायाकल्प
भगवान शिव ने पूरे गाँव को आशीर्वाद दिया —
“इस गाँव का नाम अब ‘कृपापुर’ होगा। यहाँ कभी भी अकाल, रोग या मृत्यु जल्दी नहीं आएगी। जो सेवा करेगा, वह सदा आनंदित रहेगा।”
वे आकाश में विलीन हो गए।
गाँव के लोग बदल गए। गोमती को गाँव की माता का दर्जा मिला, और पुरोहित भी सेवा में लग गया।
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🕉️ निष्कर्ष — शिव केवल पूजने योग्य नहीं, जीने योग्य हैं
भगवान शिव की यह परीक्षा हमें यह सिखाती है कि —
दिखावा, अहंकार और धन नहीं,
सेवा, करुणा और प्रेम ही शिव की सच्ची पूजा है।
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