
🕉️ भगवान गणेश और चूहे की कथा: अहंकार से आज्ञाकारिता तक का अद्भुत रूपांतरण
🔶 भूमिका – जब वाहन नहीं था, लेकिन कार्य था महान
प्राचीन समय की बात है। कैलाश पर्वत की गुफाओं में भगवान शिव, माता पार्वती और बाल गणेश एक शांत जीवन जीते थे। गणेश, अत्यंत बुद्धिमान, नटखट और भोले स्वभाव के थे। शिव-पार्वती के लाडले थे और ज्ञान में किसी से कम नहीं।
भगवान गणेश का यह स्वरूप विशेष रूप से अहंकार और विनम्रता का प्रतीक है।
लेकिन एक दिन जब सारे देवताओं को अपने-अपने वाहनों पर सवार देखा, तो गणेशजी ने माता से पूछा—
> “माँ, सब देवताओं के पास वाहन हैं। इंद्र के पास ऐरावत, विष्णु के पास गरुड़, शिव के पास नंदी — मेरा वाहन कौन?”
माँ मुस्कुराईं, पर उत्तर नहीं दिया। उन्हें पता था, समय आने पर गणेश को स्वयं अपना वाहन चुनना होगा — और वह वाहन कोई साधारण नहीं, बल्कि अहंकारी चूहा होगा।
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🟢 पाताललोक में जन्मी समस्या
पाताल लोक में कौत्स ऋषि का एक शिष्य था — कपिच्छल। वह अत्यंत ज्ञानी और तपस्वी था, लेकिन उसमें एक दोष था — अहंकार।
एक दिन उसने अपने गुरु से कहा—
> “गुरुदेव! मुझे ऐसा कोई ज्ञान दीजिए जिससे मैं पृथ्वी, आकाश और पाताल को एक साथ जीत सकूं।”
गुरु ने उसे चेताया —
> “अभिमान से ज्ञान अंधा हो जाता है। पहले अहंकार त्यागो, फिर शक्तिशाली बनो।”
पर कपिच्छल नहीं माना। वह पाताल के राक्षसों के साथ मिल गया और वहाँ एक यंत्र का निर्माण किया जिससे वह किसी भी रूप में बदल सकता था। एक दिन वह विशाल चूहे के रूप में बदल गया और देवताओं के यज्ञ, ऋषियों के आश्रम और खेत-खलिहानों को तहस-नहस करने लगा।
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🟢 देवलोक में मचा हाहाकार
वह चूहा इतना बड़ा और शक्तिशाली हो गया कि उसके सामने हाथी भी छोटा लगने लगे। उसके पंजों से पर्वत खिसकते, दांतों से वह मंदिरों की दीवारें चबाने लगा।
ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा से विनती की:
> “हे पितामह! इस दैत्य चूहे से हमें बचाइए!”
ब्रह्मा ने कहा — “अब केवल एक ही देवता हैं जो इस समस्या को सुलझा सकते हैं — गणपति। उनके बुद्धि और युक्ति से ही इसका समाधान होगा।”
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🟢 भगवान गणेश का संकल्प
जब भगवान गणेश को इस बात का पता चला, तो उन्होंने पाताल लोक की यात्रा करने का निश्चय किया। वे नंदी पर नहीं गए, ना ही शिव की सवारी माँगी — वे नंगे पाँव, अपने परशु (कुल्हाड़ी) और एक रस्सी के साथ निकले।
उन्होंने जंगलों और गुफाओं में उस चूहे को ढूंढा, और अंत में उसे एक नदी किनारे मचलते देखा। वह चूहा किसी हाथी जितना विशाल था, और उसकी आँखों में चमक थी — अहंकार की।
गणेश बोले—
> “हे मूषक! तू चाहे जितना बलवान हो, पर तेरा बल निर्दोष नहीं। तूने धर्म का मार्ग छोड़ा है।”
मूषक हँसा और बोला—
> “गणेश! मैं तुझसे नहीं डरता। मैं अब कोई साधारण चूहा नहीं, पाताल का शासक हूँ!”
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🟢 युद्ध और बुद्धि का संग्राम
गणेश ने कहा — “तो युद्ध कर। लेकिन ध्यान रहे, मैं बल से नहीं, बुद्धि से लड़ता हूँ।”
मूषक ने हमला किया, उसकी गति वज्र की तरह थी। लेकिन गणेश भी खेल जानते थे। उन्होंने अपने रस्सी को हवा में घुमाया और एक क्षण में उस चूहे के ऊपर फेंक दी।
वह रस्सी कोई साधारण नहीं थी — उसमें ब्रह्मा के मंत्रों का बल था। जैसे ही वह चूहे को बाँधने लगी, उसका शरीर छोटा होने लगा। उसकी दंभ भरी आँखें शांत हो गईं। उसके पिछले जन्म की स्मृति लौट आई।
वह वही कपिच्छल था — जो ज्ञान से अहंकार की ओर मुड़ा था।
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🟢 कपिच्छल की पश्चाताप और रूपांतरण
वह चूहा, अब मूषक, गणेश के सामने नतमस्तक हो गया।
> “हे विनायक! मैंने अपने ज्ञान का दुरुपयोग किया। मुझे क्षमा करें। मुझे स्वीकार करें, मार्ग दिखाएं।”
गणेश मुस्कुराए और बोले—
> “हर जीव में उपयोगिता है — अहंकार से आज्ञाकारिता में रूपांतरण ही सच्चा परिवर्तन है। मैं तुझे अपना वाहन बनाता हूँ।”
मूषक बोला — “परन्तु मैं तो अत्यंत छोटा हूँ, आप जैसे महान देवता का वाहन कैसे बनूँगा?”
गणेश बोले —
> “वाहन का आकार नहीं, उसका समर्पण मायने रखता है।”
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🟢 पहली यात्रा – पृथ्वी पर धर्म स्थापन
अब मूषक, जो कभी राक्षस रूपी चूहा था, अब भगवान गणेश का वाहन बन गया।
गणेश ने उसे पवित्र किया और प्रथम बार पृथ्वी पर ब्राह्मणों के यज्ञ में गए।
वहाँ देवताओं ने पूछा —
> “हे गणपति! आपने चूहे को वाहन क्यों बनाया? वह तो अपवित्र माना जाता है!”
गणेश ने उत्तर दिया —
> “जिसमें पश्चाताप की आग होती है, वह स्वयं को पवित्र कर लेता है।
जो नीचे गिरा हो, वह ऊपर उठ भी सकता है — यह मूषक इसका प्रतीक है।”
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🟢 प्रतीकात्मकता – क्यों चूहा बना गणेश का वाहन?
🔸 1. चूहा = इच्छाओं का प्रतीक
चूहा हर जगह घुसता है, कुछ भी चबाता है — ठीक वैसे ही जैसे हमारी इंद्रियाँ और इच्छाएँ। गणेश उस पर सवार होकर दर्शाते हैं कि बुद्धि ही इच्छाओं पर नियंत्रण पा सकती है।
🔸 2. मूषक का छोटा आकार = विनम्रता
गणेश इतने विशाल हैं, फिर भी एक छोटे मूषक पर सवार होते हैं। यह विनम्रता का संदेश है।
🔸 3. मूषक का अंधकार में रहना = अज्ञानता
गणेश प्रकाश हैं, मूषक अंधकार। जब प्रकाश अंधकार पर सवार हो जाए — ज्ञान की जीत होती है।
—यह भी पढ़े क्यों भगवान गणेश ने बनाया मूषक को अपना वाहनhttps://divyakatha.com/2500-2-भगवान-गणेश-और-मूषक-की-कहा/
🔶 आधुनिक सन्दर्भ – मूषक हमारे भीतर है
हम सभी के भीतर एक मूषक है — इच्छाओं, अहंकार, लालच और आवेगों का। लेकिन अगर हम गणेश की तरह विवेक और धैर्य से उसे साध लें, तो वह हमारा वाहन बन सकता है, न कि बाधा।
गणेश हमें सिखाते हैं—
जो छोटा है, वह तुच्छ नहीं।
जो बड़ा है, वह हमेशा श्रेष्ठ नहीं।
परिश्रम, पश्चाताप और समर्पण — यही जीवन को महान बनाते हैं।
भगवान गणेश और मूषक कथा देखे youtube पर https://www.youtube.com/watch?v=uix_WURMHVg