
श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत लीला — जब ईश्वर ने पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया
पृष्ठभूमि — गोकुल की दिनचर्या
ब्रजधाम, गोकुल और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल्यकाल में ग्वालों के साथ गौ चराते थे।
गाँव में हर कोई श्रीकृष्ण को बहुत प्रेम करता था। हर दिन वह अपनी माँ यशोदा, पिता नंद बाबा और ग्वालबालों के साथ प्राकृतिक जीवन में लीन रहते थे।
गोकुल की एक प्रमुख परंपरा थी — देव इंद्र की पूजा।
हर साल गाँव वाले मिलकर इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ, पूजा और उत्सव मनाते थे ताकि वर्षा ठीक से हो और उनकी खेती सुरक्षित रहे।
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श्रीकृष्ण का प्रश्न और विचार
जब कृष्ण थोड़े बड़े हुए (लगभग 7 वर्ष की उम्र), उन्होंने गाँव में हो रही इंद्र पूजा को देखा और अपनी माँ यशोदा और नंद बाबा से पूछा:
> “मैया, ये पूजा क्यों होती है?”
“क्या इंद्रदेव ही वर्षा करते हैं?”
“क्या हमारा जीवन सिर्फ उनके रहमोकरम पर है?”
नंद बाबा बोले:
> “हां लाला, वर्षा के बिना खेती नहीं होती। इसीलिए हम हर साल इंद्र की पूजा करते हैं।”
कृष्ण मुस्कुराए और बोले:
> “पिता जी! हमें वर्षा से नहीं, प्रकृति से, गोवर्धन पर्वत, गायें और मेहनत से जीवन मिलता है।”
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गोवर्धन पर्वत की पूजा का प्रस्ताव
कृष्ण ने गाँववालों से आग्रह किया कि इस वर्ष वे इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करें, क्योंकि वही उनकी गायों को चरने की जगह देता है, जल देता है, हरियाली देता है।
गाँववाले पहले चकित हुए, लेकिन श्रीकृष्ण की बातों में तत्वज्ञान और सच्चाई थी।
उन्होंने इस वर्ष गोवर्धन पर्वत की ही पूजा करने का निर्णय लिया — हर्षोल्लास से पूजा, अन्नकूट भोज, भजन और कीर्तन का आयोजन हुआ।
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इंद्र का क्रोध
इंद्रदेव को जब यह समाचार मिला कि गोकुल में उनकी पूजा नहीं हुई, तो उनका अहंकार जाग उठा।
वह बोले:
> “ये छोटे-छोटे मनुष्य मेरे बिना वर्षा के जीवन जीने की सोच रहे हैं?
और एक बालक — कृष्ण — मेरी पूजा रोक रहा है?”
इंद्र ने अपने सभी मेघों को आदेश दिया कि गोकुल पर भारी वर्षा बरसाओ — बाढ़ ला दो, बिजली गिराओ और गाँव को नष्ट कर दो!
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गोकुल पर विपत्ति
अगले ही दिन आकाश में अंधकार छा गया।
तेज़ हवाएँ, मूसलाधार बारिश, गर्जना, बर्फ और तूफान ने गोकुल को घेर लिया।
गायें भागने लगीं, घर ढहने लगे, और लोग डरे-सहमे भगवान को पुकारने लगे।
“हे कृष्ण! हमें बचाओ”
गोकुलवासी श्रीकृष्ण के पास पहुँचे और बोले:
> “लाला, तुम्हारी बात मानकर हमने इंद्र की पूजा नहीं की। अब वह नाराज़ है। हमें बचा लो।”
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श्रीकृष्ण का चमत्कार
बालक कृष्ण का धैर्य
कृष्ण ने सभी को शांत किया और मुस्कराकर बोले:
> “डरो मत। गोवर्धन पर्वत हमें बचाएगा। चलो मेरे साथ।”
पर्वत को उठाना
श्रीकृष्ण गोकुलवासियों को साथ लेकर गोवर्धन पर्वत के पास पहुँचे और एक आश्चर्यजनक चमत्कार हुआ:
> उन्होंने अपनी छोटी अंगुली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया।
सभी गाँववासी, पशु, पक्षी, गौएँ, वृक्ष — सब पर्वत के नीचे सुरक्षित हो गए।
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सात दिन और सात रातें
बारिश लगातार होती रही।
इंद्र के मेघ थक गए, लेकिन श्रीकृष्ण की उंगली नहीं थकी।
पूरा ब्रजधाम एकत्र हो गया — किसी को कोई भय नहीं था।
बलराम, सुदामा, राधा, यशोदा मैया — सब कृष्ण को आश्चर्य से निहारते रहे।
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इंद्र का अहंकार टूटना
सातवें दिन इंद्र को अहसास हुआ कि यह कोई साधारण बालक नहीं, स्वयं भगवान विष्णु हैं।
उनका घमंड चूर-चूर हो गया। वे नीचे आए, श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगी।
कृष्ण ने कहा:
> “इंद्र, तुम्हारा कर्तव्य है रक्षा करना, भय फैलाना नहीं। अहंकार देवों के लिए भी विनाशकारी होता है।”
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गोवर्धन पर्वत लीला का महत्व
यह लीला आज भी जन्माष्टमी के बाद गोवर्धन पूजा के रूप में मनाई जाती है।
लोग गोबर से गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं और अन्नकूट का भोग लगाते हैं।
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आध्यात्मिक संदेश
1. अहंकार चाहे देव का हो या मानव का — भगवान उसे तोड़ते हैं।
2. सच्ची भक्ति में तर्क और ज्ञान दोनों होते हैं।
3. प्रकृति, पृथ्वी, पशु-पक्षी — सभी की पूजा होनी चाहिए।
4. ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा हर परिस्थिति में करते हैं।
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H2: श्रीकृष्ण की यह लीला आज भी जीवित है
गोवर्धन पर्वत आज भी मथुरा के पास मौजूद है।
हर साल लाखों श्रद्धालु ‘गोवर्धन परिक्रमा’ करते हैं — 21 किलोमीटर की पैदल यात्रा।
यह परिक्रमा श्रीकृष्ण की भक्ति, चमत्कार और करुणा का जीवंत प्रमाण है।
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H3: निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला न केवल एक चमत्कारी घटना है, बल्कि यह मानवता, प्रकृति प्रेम और ईश्वरीय संरक्षण का अद्भुत संदेश देती है।
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