
गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
परिचय
हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में से एक है विष्णु पुराण। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, उनके अवतारों, भक्तों की रक्षा और धर्म की स्थापना का विस्तार से वर्णन है। इन्हीं कथाओं में एक अत्यंत प्रसिद्ध कथा है – गजेंद्र मोक्ष।
यह कथा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि जीवन दर्शन के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें यह संदेश छिपा है कि जब जीवन के संघर्ष हमें तोड़ देते हैं और सब ओर से हार माननी पड़ती है, तब केवल ईश्वर की शरण ही मुक्ति का मार्ग होती है।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
गजेंद्र कौन था?
त्रिकूट पर्वत की तलहटी में एक सुंदर तालाब था। हरे-भरे वृक्ष, कमल से भरा सरोवर और शांति से भरा वातावरण। वहीं एक विशाल हाथी रहता था, जिसका नाम था गजेंद्र।
गजेंद्र केवल एक साधारण हाथी नहीं था। वह अपने झुंड का राजा था। उसके साथ असंख्य हाथी, हाथिनियां और उनके शावक रहते थे। सभी उसकी ताकत, शौर्य और नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा करते थे।
वह दिन में झुंड को लेकर जंगल में जाता, भोजन करता और शाम को तालाब के पास लौट आता। उसका जीवन शाही और सुखमय था।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
गर्मी का दिन और तालाब की ओर प्रस्थान
एक बार बहुत गर्मी का दिन था। गजेंद्र अपने परिवार और झुंड को लेकर तालाब की ओर गया। सभी हाथियों ने तालाब में प्रवेश किया और जलक्रीड़ा करने लगे।
गजेंद्र ने अपनी सूंड से कमल तोड़े, हाथिनियों पर पानी डाला, और अपने बच्चों के साथ खेला। पूरा वातावरण आनंद और उल्लास से भर गया।
लेकिन किसे पता था कि यह दिन गजेंद्र के जीवन का सबसे कठिन दिन बनने वाला है।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
मगरमच्छ का आक्रमण
जब गजेंद्र तालाब में गहराई तक गया, तभी अचानक उसकी एक टांग पर किसी ने भीषण पकड़ बना ली।
वह था तालाब में छिपा मगरमच्छ।
मगरमच्छ ने गजेंद्र की टांग को जोर से पकड़ लिया और उसे पानी के भीतर खींचने लगा।
गजेंद्र ने पूरी शक्ति लगाई और मगरमच्छ को पानी से बाहर खींचने की कोशिश की।
एक ओर विशालकाय हाथी,
दूसरी ओर जल का राजा मगरमच्छ।
संघर्ष प्रारंभ हुआ।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
हजार वर्षों का संघर्ष
विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है कि यह संघर्ष केवल कुछ क्षणों का नहीं, बल्कि हजार वर्षों तक चलता रहा।
गजेंद्र ने अपनी समस्त शक्ति झोंक दी। कभी वह मगरमच्छ को जमीन की ओर खींचता, कभी बाहर निकालने की कोशिश करता। मगरमच्छ पानी का जीव था। उसे जल में अधिक बल मिलता था। धीरे-धीरे गजेंद्र की शक्ति क्षीण होने लगी।
झुंड के अन्य हाथियों ने भी सहायता करनी चाही, किंतु मगरमच्छ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि कोई भी उसे छुड़ा नहीं पाया।
गजेंद्र थकने लगा। उसका विशाल शरीर कमजोर पड़ गया। उसका बल, सामर्थ्य और शौर्य सब व्यर्थ हो गए।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
गजेंद्र की करुण पुकार
जब गजेंद्र ने समझ लिया कि अब अपनी शक्ति से वह बच नहीं पाएगा, तब उसके हृदय में भक्ति की ज्योति प्रज्वलित हुई।
उसने कमल की ओर देखा, अपनी सूंड से एक कमल का फूल तोड़ा और आकाश की ओर उठाकर प्रार्थना की –
“हे भगवान! मैं आपकी शरण में हूँ। मेरी रक्षा कीजिए। अब मेरे पास और कोई उपाय नहीं है। केवल आप ही मुझे इस संकट से मुक्त कर सकते हैं।”
यह प्रार्थना मात्र शब्द नहीं थी, बल्कि हृदय से निकली करुण पुकार थी।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
भगवान विष्णु का प्रकट होना
भक्त की सच्ची पुकार सुनकर भगवान कभी विलंब नहीं करते।
गरुड़ पर सवार भगवान विष्णु हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर क्षीरसागर से प्रकट हुए और गजेंद्र की ओर बढ़े।
क्षण भर में भगवान गजेंद्र के पास पहुंचे। उन्होंने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया।
गजेंद्र की टांग छूट गई। वह मुक्त हो गया।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
मगरमच्छ का पूर्व जन्म
विष्णु पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि वह मगरमच्छ वास्तव में एक गंधर्व था। किसी शाप के कारण उसने मगरमच्छ योनि धारण की थी।
भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के स्पर्श से उसे शापमुक्ति मिली और वह अपने गंधर्व रूप में स्वर्ग चला गया।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
गजेंद्र का धन्यवाद
गजेंद्र ने भगवान विष्णु के चरणों में प्रणाम किया और कहा –
“प्रभु, आज मैंने अनुभव किया कि शक्ति, धन और बल सब व्यर्थ है। जब तक मनुष्य आपके शरणागत नहीं होता, तब तक जीवन में शांति नहीं मिल सकती।”
भगवान विष्णु ने गजेंद्र को आशीर्वाद दिया और कहा –
“भक्त, जब भी कोई संकटग्रस्त होकर मुझे पुकारेगा, मैं उसी प्रकार उसकी रक्षा करूंगा जैसे आज मैंने तुम्हारी की।”
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
गजेंद्र मोक्ष कथा का महत्व
यह कथा केवल एक पुरानी पौराणिक गाथा नहीं, बल्कि जीवन की सच्चाई है।
1. अहंकार का अंत
गजेंद्र अपने बल और सामर्थ्य पर गर्व करता था। मगर जब संकट आया, तब उसकी सारी शक्ति व्यर्थ हो गई। यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार हमेशा पतन का कारण होता है।
2. ईश्वर की शरण ही सच्ची मुक्ति
जब मनुष्य जीवन के दुखों और कठिनाइयों से थक जाता है, तब केवल ईश्वर ही उसकी शरणस्थली हैं।
3. भक्त की पुकार अवश्य सुनी जाती है
गजेंद्र की पुकार को सुनकर भगवान विष्णु तुरंत प्रकट हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
4. कर्म और भाग्य का संगम
मगरमच्छ का भी पूर्व जन्म का शाप था। भगवान विष्णु ने उसे भी मुक्ति दी। इसका अर्थ है कि ईश्वर केवल भक्त की ही नहीं, बल्कि शापित जीवों की भी रक्षा करते हैं।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
आधुनिक जीवन में संदेश
गजेंद्र मोक्ष कथा आज भी हमें बहुत कुछ सिखाती है –
जब हम जीवन के संघर्षों में फंस जाते हैं, तब केवल ईश्वर पर विश्वास ही हमें बाहर निकालता है।
चाहे कितनी भी शक्ति और संपत्ति क्यों न हो, संकट में केवल विश्वास और भक्ति ही सहारा बनते हैं।
यह कथा हमें विनम्र, धैर्यवान और ईश्वर-निष्ठ बनने की प्रेरणा देती है।
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गजेंद्र मोक्ष कथा – विष्णु पुराण की अमर कहानी
निष्कर्ष
गजेंद्र मोक्ष कथा विष्णु पुराण की अमर कहानियों में से एक है। इसमें भक्त और भगवान के अद्भुत संबंध का वर्णन मिलता है।
गजेंद्र ने अपने अहंकार को त्यागकर जब ईश्वर की शरण ली, तब ही उसे मुक्ति मिली। यही संदेश इस कथा का सार है –
👉 “जब भी जीवन में संकट आए, तब अपने समस्त बल और अहंकार को त्यागकर ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। वे सदैव अपने भक्त की रक्षा करते हैं।”