
क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
प्रस्तावना
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को पालनहार कहा गया है। वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में से वह शक्ति हैं जो सृष्टि के संचालन और पालन का दायित्व निभाते हैं। विष्णु पुराण और अन्य पवित्र ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में निवास करते हैं और वहाँ वे अनंत शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में विराजमान रहते हैं।
यह स्वरूप शेषशायी विष्णु के नाम से प्रसिद्ध है। यह केवल धार्मिक कथा ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय रहस्यों, आध्यात्मिक शिक्षाओं और जीवन के गहरे सत्य को दर्शाने वाली गाथा है।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
क्षीरसागर क्या है?
क्षीरसागर, यानी “दूध का सागर”, पौराणिक ग्रंथों में एक दिव्य लोक के रूप में वर्णित है। कहा जाता है कि ब्रह्मांड के मध्य में यह समुद्र स्थित है। इसके जल दूध की भांति श्वेत, पवित्र और प्रकाशमान हैं।
यह सागर सिर्फ जल का नहीं बल्कि ऊर्जा और शक्ति का स्रोत है। इसमें अमरता का अमृत, दिव्य रत्न और अनगिनत रहस्य छिपे हुए हैं। इसी क्षीरसागर में भगवान विष्णु का दिव्य आसन है।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
शेषनाग की शैया
भगवान विष्णु के विश्राम का आधार अनंत शेषनाग हैं।
शेषनाग के हजारों फन हैं।
प्रत्येक फन पर अद्भुत रत्न जड़े हैं जो पूरे ब्रह्मांड को आलोकित करते हैं।
शेषनाग केवल एक सर्प नहीं बल्कि अनंत ऊर्जा और समय का प्रतीक हैं।
कहा जाता है कि जब ब्रह्मांड की सृष्टि और विनाश का चक्र चलता है, तब भी शेषनाग अनंत काल तक भगवान विष्णु की शय्या बने रहते हैं। उनका नाम ही “अनंत” इसीलिए है।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
लक्ष्मीजी का दिव्य संग
क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी विराजमान रहती हैं।
वे भगवान के चरणों की सेवा करती हैं।
उनका यह स्वरूप भक्ति, समर्पण और सेवा का प्रतीक है।
जिस प्रकार समुद्र की गहराई में अनगिनत रत्न छिपे होते हैं, उसी प्रकार लक्ष्मीजी संसार के सुख-समृद्धि और सौंदर्य का आधार हैं।
लक्ष्मीजी का यह संदेश है कि समृद्धि और शांति सदैव ईश्वर के चरणों में समर्पित रहकर ही प्राप्त की जा सकती है।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
योगनिद्रा और सृष्टि का रहस्य
विष्णु पुराण के अनुसार जब एक कल्प (युग चक्र) समाप्त होता है, तब संपूर्ण सृष्टि प्रलय में लीन हो जाती है। उस समय भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में विराजमान होते हैं।
उनकी नाभि से एक कमल पुष्प प्रकट होता है।
उस कमल पर ब्रह्मा जी का प्राकट्य होता है।
ब्रह्मा जी आगे सृष्टि की रचना करते हैं।
इस प्रकार भगवान विष्णु का विश्राम केवल आराम नहीं बल्कि अगले सृजन की तैयारी है। इसे “योगनिद्रा” कहा जाता है, जिसमें भगवान अपने भीतर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को धारण करते हैं।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
क्षीरसागर और समुद्र मंथन
क्षीरसागर का उल्लेख समुद्र मंथन की कथा में भी आता है। देवताओं और असुरों ने जब अमृत प्राप्ति के लिए मंथन किया, तो यह मंथन क्षीरसागर में ही हुआ था।
मंथन से चंद्रमा, देवी लक्ष्मी, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अमृत प्रकट हुए।
इसी समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत का वितरण किया।
लक्ष्मीजी ने इसी समुद्र से प्रकट होकर विष्णु जी को पति रूप में स्वीकार किया।
इस प्रकार क्षीरसागर केवल विश्राम का स्थल नहीं, बल्कि सृष्टि और अमरत्व का स्रोत भी है।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
आध्यात्मिक महत्व
क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु का स्वरूप हमें कई गहरे संदेश देता है—
1. अनंत शेषनाग → समय और शाश्वतता का प्रतीक।
2. क्षीरसागर → मन की शुद्धता और आत्मा की शांति का प्रतीक।
3. योगनिद्रा → यह सिखाती है कि विश्राम भी सृजन की प्रक्रिया का हिस्सा है।
4. लक्ष्मीजी का संग → जीवन में सेवा, समर्पण और प्रेम का महत्व।
5. कमल से ब्रह्मा का जन्म → यह दर्शाता है कि सृष्टि सदैव शांति और ध्यान की स्थिति से ही उत्पन्न होती है।
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भक्तों के लिए प्रेरणा
भगवान विष्णु की यह छवि भक्तों के लिए कई प्रेरणाएँ देती है—
जब जीवन में उथल-पुथल हो, तो हमें अपने मन रूपी क्षीरसागर को शांत करना चाहिए।
विष्णु जी की तरह धैर्य और संतुलन बनाए रखना चाहिए।
लक्ष्मीजी का यह संदेश है कि बिना समर्पण और सेवा भाव के कोई जीवन सफल नहीं होता।
शेषनाग यह बताते हैं कि समय चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, ईश्वर की शरण में रहकर हम सुरक्षित रहते हैं।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ विद्वान इसे ब्रह्मांडीय प्रतीक के रूप में भी देखते हैं—
क्षीरसागर → आकाशगंगा (Milky Way) का प्रतीक।
शेषनाग → अनंत ऊर्जा और समय का प्रतीक।
विष्णु का योगनिद्रा → ब्रह्मांड के Big Bang और Big Crunch जैसी अवधारणा से जुड़ा।
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क्षीरसागर में शेषशायी भगवान विष्णु की दिव्य कथा
निष्कर्ष
विष्णु पुराण में वर्णित “क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु” की कथा केवल पौराणिक प्रसंग नहीं है, बल्कि यह जीवन, ब्रह्मांड और अध्यात्म के गहरे सत्य को दर्शाती है।
भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना और लक्ष्मीजी का चरण सेवा में रहना हमें संतुलन, समर्पण और धैर्य की शिक्षा देता है।
यह कथा हमें बताती है कि सृष्टि का संचालन केवल शक्ति से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम से होता है।
जब भी जीवन में कठिनाइयाँ आएं, हमें भगवान विष्णु की इस दिव्य छवि को स्मरण कर धैर्य और भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए।