
ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
परिचय
भारतीय धर्मग्रंथों में अनेक ऋषि-मुनियों का वर्णन मिलता है। इनमें से एक नाम है ऋषि दुर्वासा, जिन्हें उनके क्रोध और श्रापों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। कहा जाता है कि उनके श्राप से देवता और दानव तक भयभीत रहते थे। किंतु ऋषि दुर्वासा केवल क्रोधी ही नहीं, बल्कि महान तपस्वी और सिद्ध योगी भी थे।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
जन्म और उत्पत्ति
ऋषि दुर्वासा महर्षि अत्रि और माता अनसूया के पुत्र थे। वे भगवान शिव के अंशावतार माने जाते हैं। “दुर्वासा” नाम का अर्थ है – “जिसका वास कठिन हो”, अर्थात जिनके साथ रहना कठिन है, क्योंकि वे तुरंत क्रोधित हो जाते थे।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
क्रोध का प्रभाव
ऋषि दुर्वासा का क्रोध इतना तीव्र था कि उनसे देवता भी भयभीत रहते थे।
कहा जाता है कि एक बार इंद्र ने उनका अपमान कर दिया। इससे क्रोधित होकर दुर्वासा ने इंद्र को श्राप दिया कि उसका ऐश्वर्य और वैभव नष्ट हो जाएगा।
इसी श्राप के कारण देवताओं की शक्ति घट गई और असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया।
बाद में भगवान विष्णु के मार्गदर्शन में समुद्र मंथन हुआ, जिससे अमृत प्राप्त हुआ और देवताओं को शक्ति लौटी।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
तपस्या और ज्ञान
हालाँकि उनका क्रोध प्रसिद्ध था, लेकिन ऋषि दुर्वासा गहन तपस्या और योग साधना में निपुण थे।
वे धर्म, योग और अध्यात्म के गहरे ज्ञाता थे।
उनका जीवन यह दर्शाता है कि ऋषि केवल शांत स्वभाव के ही नहीं, बल्कि कठोर और उग्र भी हो सकते हैं।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
महाभारत में प्रसंग
महाभारत में भी ऋषि दुर्वासा का उल्लेख मिलता है।
वनवास के समय वे पांडवों के आश्रम में पहुँचे।
उस समय द्रौपदी के पास अक्षय पात्र था, जिससे असीमित भोजन निकलता था।
लेकिन जब ऋषि पहुँचे, तब द्रौपदी ने भोजन कर लिया था और पात्र खाली हो चुका था।
द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने लगीं।
कृष्ण ने पात्र से एक चावल का दाना खाया और उसी से ऋषि दुर्वासा तथा उनके शिष्यों का पेट तृप्त हो गया। इस प्रकार पांडव संकट से बच गए।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
श्राप और आशीर्वाद
ऋषि दुर्वासा के श्रापों से लोग डरते थे, लेकिन वे आशीर्वाद भी देते थे।
उनकी कठोरता में भी लोककल्याण छिपा रहता था।
कई बार उनके श्राप के पीछे बड़ा उद्देश्य होता था, जो आगे चलकर मानवता के लिए हितकारी साबित होता था।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
प्रेरणा और शिक्षा
ऋषि दुर्वासा की कथा हमें यह सिखाती है कि:
1. क्रोध एक महान शक्ति है, लेकिन इसे संयम में रखना आवश्यक है।
2. ऋषि दुर्वासा का जीवन दर्शाता है कि संत और ऋषि भी मानवीय भावनाओं से परे नहीं होते।
3. विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और भक्ति से संकट टाला जा सकता है।
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ऋषि दुर्वासा की कथा – क्रोध, श्राप और तपस्या
निष्कर्ष
ऋषि दुर्वासा केवल क्रोध और श्राप के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी साधना और योगबल के लिए भी स्मरणीय हैं। उनकी कथा हमें संयम, भक्ति और आत्मबल की शक्ति का महत्व बताती है।
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