
—
अश्वत्थामा की अमरता: एक अनसुनी गाथा
(Ashwatthama Ki Amar Kahani – The Immortal Warrior of Mahabharat)
—
भूमिका: कौन था अस्वस्थामा?
महाभारत का नाम लेते ही अर्जुन, भीष्म, द्रौपदी, कर्ण जैसे वीरों की छवि हमारे मन में उभरती है। परंतु एक ऐसा पात्र भी है, जो नायक नहीं था, पर उसकी भूमिका महाभारत के युद्ध में निर्णायक रही — वो था अश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र।
अस्वस्थामा को वरदान मिला था कि वह जीवन भर मरेगा नहीं। लेकिन यह वरदान उसके लिए श्राप बन गया। इस कहानी में हम जानेंगे कैसे अस्वस्थामाबना महाभारत का सबसे रहस्यमयी और त्रासदीपूर्ण पात्र।
—
अस्वस्थामाका जन्म और बाल्यकाल
अस्वस्थामा का जन्म ब्रह्मर्षि द्रोण और कृपि के पुत्र के रूप में हुआ था। वह एक दिव्य रत्न के साथ पैदा हुआ था, जो उसकी मस्तक पर स्थित था। यह रत्न उसे रोग, शस्त्र, भूख और भय से मुक्त रखता था।
अश्वत्थामा का पालन-पोषण गरीबी में हुआ, लेकिन उसके भीतर अद्भुत साहस और क्रोध की ज्वाला थी। बचपन में उसने देखा कि उसके पिता, राजा द्रुपद से अपमानित होकर बदले की आग में जल रहे थे। इस कारण उसका हृदय हमेशा युद्ध और प्रतिशोध की भावना से भरा रहा।
—
महाभारत में अश्वत्थामा की भूमिका
अश्वत्थामा ने पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरव पक्ष का साथ दिया। उसने अपने पिता की तरह धर्म और नीति का पालन नहीं किया, बल्कि भावनाओं और बदले की भावना से प्रेरित होकर अनेक अमानवीय कार्य किए।
गुरु द्रोण की मृत्यु
जब युद्ध चरम पर था, पांडवों को यह एहसास हुआ कि गुरु द्रोण को जीवित रहते हुए हराया नहीं जा सकता। श्रीकृष्ण की युक्ति से युधिष्ठिर ने झूठ बोलते हुए कहा कि “अश्वत्थामा मारा गया।”
यह सुनकर द्रोण ने अपने शस्त्र त्याग दिए और धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया।
जब अश्वत्थामा को यह पता चला कि उसके पिता को छल से मारा गया है, तब उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला जल उठी।
—
रात्रि का नरसंहार: अश्वत्थामा का क्रूर पक्ष
युद्ध समाप्ति की ओर था। अधिकांश कौरव वीर मारे जा चुके थे। परंतु अश्वत्थामा ने रात के अंधेरे में ऐसा घातक कार्य किया जिसने उसके पूरे जीवन को बदल दिया।
पांडवों के पुत्रों का वध
अश्वत्थामा ने रात्रि में चुपके से पांडवों के शिविर में घुसकर द्रौपदी और पांडवों के पांच पुत्रों — उपपांडवों — को सोते समय ही निर्ममता से मार डाला।
यह कृत्य उस योध्दा के लिए कलंक बन गया, जिसे ब्राह्मण कुल में जन्म मिला था। उसने धर्म की मर्यादा को तोड़कर रात्रि में सोए हुए मासूमों का संहार किया।
—
श्रीकृष्ण का श्राप: अश्वत्थामा बना अमर
जब पांडवों को यह जानकारी मिली कि उनके पुत्रों की हत्या कर दी गई है, तब द्रौपदी विलाप करने लगीं और बदला लेने की मांग की। भीम, अर्जुन और कृष्ण ने अश्वत्थामा का पीछा किया।
दिव्य अस्त्र: ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
अश्वत्थामा ने जान बचाने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तब ब्रह्मा के आदेश से दोनों को अस्त्र वापस लेने को कहा गया, लेकिन अश्वत्थामा अस्त्र वापस नहीं ले सका क्योंकि उसमें वो योगबल नहीं था।
उसने ब्रह्मास्त्र को उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र (परीक्षित) की ओर मोड़ दिया।
तब श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य तेज से गर्भस्थ शिशु को बचा लिया।
श्राप
इस घोर अधर्म के लिए श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को यह श्राप दिया:
> “तू हजारों वर्षों तक धरती पर जीवित रहेगा। तेरा शरीर सड़ता रहेगा, लेकिन तू मरेगा नहीं। तुझसे तेरा रत्न छीन लिया जाएगा, जिससे तू हर प्रकार की बीमारी, दुर्गंध और पीड़ा से ग्रसित रहेगा। तू एकाकी, घृणित और भटकता रहेगा, जब तक समय का अंत न हो जाए।”
—
श्राप का परिणाम: अमरता या अभिशाप?
अश्वत्थामा अमर हो गया, लेकिन यह अमरता उसे कभी शांति नहीं दे सकी। वह जंगलों में भटकता रहा, उसका शरीर सड़ता गया। सिर से रत्न निकलने के बाद उसका माथा हमेशा रिसता रहा और उसे कोई स्थान नहीं मिला।
यह श्राप एक संदेश है — अमरता तभी सुखद है जब वह धर्म के पथ पर हो।
—
क्या अश्वत्थामा आज भी जीवित है?
भारतवर्ष के कई हिस्सों में यह मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है।
कुछ प्रमुख दावे:
1. मध्य प्रदेश का बुरहानपुर: यहां के किले में लोगों का मानना है कि अश्वत्थामा हर सुबह मंदिर में फूल चढ़ाने आता है।
2. गुजरात का जुनागढ़: यहाँ के कुछ ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने एक वृद्ध को देखा है जिसके माथे से हमेशा रक्त रिसता रहता है।
3. उत्तराखंड के जंगल: कई साधुओं ने दावा किया है कि उन्होंने एक दिव्य प्राणी को देखा है जो अजीब भाषा में बातें करता है और जिसके माथे पर घाव है।
हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से ये प्रमाणित नहीं है, लेकिन लोककथाओं और विश्वासों में यह कहानी जीवित है।
—
अश्वत्थामा की कहानी का आध्यात्मिक संदेश
क्रोध और प्रतिशोध से धर्म का विनाश होता है।
अमरता का वरदान भी श्राप बन सकता है, यदि वह अधर्म के साथ जुड़ा हो।
एक योद्धा की सबसे बड़ी जीत तभी होती है जब वह अपने क्रोध पर विजय पाए।
धर्म की मर्यादा का पालन न करने पर दिव्य शक्ति भी आपको नहीं बचा सकती।
—
निष्कर्ष: एक अमर योद्धा की सबसे बड़ी हार
अश्वत्थामा की कहानी सिर्फ एक योद्धा की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने पिता के वध का प्रतिशोध लेने की धुन में अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा।
वह अमर हुआ, लेकिन उसकी आत्मा हमेशा रोती रही। उसका जीवन आज भी हमें यह सिखाता है कि सिर्फ शक्ति ही नहीं, बल्कि धर्म और संयम भी आवश्यक है।
—
—यह भी पढ़े भीष्म की प्रतिज्ञा जिसके कारण हुआ महाभारत का युद्ध https://divyakatha.com/भीष्म-पितामह-की-कहानी-त्य/
यह भी देख एक ऐसा मंदिर जहाँ आज भी आते है अस्व्थामा https://www.youtube.com/watch?v=tos1S5hMpBk