
महाभारत और अभिमन्यु

पौराणिक ग्रंथ महाभारत की हर कहानी में अद्भुत शिक्षा छुपी है। महाभारत की सबसे भावुक और प्रेरणादायक कथा है अभिमन्यु और चक्रव्यूह की।
यह कथा एक युवा योद्धा की वीरता, कर्तव्य और बलिदान का अनोखा उदाहरण है।– अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र थे। वह भगवान श्रीकृष्ण के भांजे भी थे। बचपन से ही उनमें वीरता, साहस और अद्भुत युद्ध कौशल दिखाई देता था। श्रीकृष्ण स्वयं उन्हें एक महान योद्धा बनाना चाहते थे।कहा जाता है कि जब वह माँ सुभद्रा के गर्भ में थे, तब अर्जुन उन्हें युद्ध कला और चक्रव्यूह में प्रवेश करने की रणनीति समझा रहे थे। दुर्भाग्यवश, कथा पूरी होने से पहले ही सुभद्रा सो गईं और अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला तो सीख ली, लेकिन बाहर निकलने का तरीका नहीं जान पाए।—महाभारत का 13 वा दिनकुरुक्षेत्र युद्ध के तेरहवें दिन कौरवों ने एक खतरनाक योजना बनाई। गुरु द्रोणाचार्य के नेतृत्व में पद्मव्यूह (चक्रव्यूह) रचना की गई। यह एक ऐसी युद्ध संरचना थी जिसे तोड़ना बहुत कठिन था।पांडवों की तरफ से अर्जुन को इस चक्रव्यूह को तोड़ने का कार्य करना था, लेकिन उस समय वह दूर किसी अन्य मोर्चे पर व्यस्त थे। युधिष्ठिर को चिंता हुई कि अगर कोई इस चक्रव्यूह को नहीं तोड़ेगा, तो भारी नुकसान होगा।—अभिमन्यु की प्रतिज्ञातभी युवा अभिमन्यु ने आगे बढ़कर कहा —> “पिताश्री ने मुझे चक्रव्यूह में घुसने की कला सिखाई है। मैं इस रचना में प्रवेश करूंगा और अपना कर्तव्य निभाऊंगा।”युधिष्ठिर और अन्य पांडव जानते थे कि अभिमन्यु को बाहर निकलने का तरीका नहीं पता, लेकिन फिर भी वह उनकी एकमात्र उम्मीद थे।—अभिमन्यु का युद्ध अभिमन्यु ने अपने धनुष-बाण और युद्ध कौशल से चक्रव्यूह की शुरुआती परतों को तोड़ दिया। वह एक-एक कर कौरव योद्धाओं से भिड़ते रहे। दुर्योधन, कर्ण, अश्वत्थामा और दुशासन जैसे महारथियों को उन्होंने अकेले ही चुनौती दी।उनकी वीरता देखकर कौरव पक्ष के योद्धा हैरान रह गए। कहा जाता है कि उन्होंने अकेले ही कौरव सेना की पहली छह परतों को भेद दिया।—
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