
🕉️ अंधकासुर की कहानी | Andhakasur Ki Katha
प्रस्तावना
हिन्दू धर्मग्रंथों में असुर और देवताओं के बीच युद्ध की अनेक कथाएँ मिलती हैं। उन्हीं में से एक है अंधकासुर की कथा। अंधकासुर (Andhakasur) हिरण्याक्ष का पुत्र था और वह भगवान शिव का परम भक्त बन गया। लेकिन अहंकार और वरदान के कारण वह देवताओं और ऋषियों को सताने लगा। उसकी शक्ति इतनी प्रबल थी कि सभी देवता भी उससे भयभीत हो गए।
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जन्म कथा
अंधकासुर का जन्म हिरण्याक्ष और कद्रु के पुत्र के रूप में हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार वह जन्म से ही अंधा था, इसी कारण उसका नाम “अंधक” पड़ा।
बचपन से ही उसमें असीम शक्ति और साहस था।
कहते हैं कि हिरण्याक्ष की मृत्यु के बाद अंधकासुर को महर्षि शुक्राचार्य ने शिक्षा दी और तपस्या का मार्ग दिखाया।
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तपस्या और वरदान
अंधकासुर ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। वह जंगल में खड़ा होकर, अग्नि के बीच बैठकर और वर्षों तक बिना भोजन-पानी के तप करता रहा।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
अंधकासुर ने कहा:
👉 “हे प्रभु! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि कोई देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, दानव या राक्षस मुझे न मार सके। केवल शिवजी ही मुझे वध कर सकें।”
ब्रह्माजी ने वरदान दे दिया। अब अंधकासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गया।
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अहंकार और अत्याचार
वरदान मिलने के बाद अंधकासुर का स्वभाव बदल गया।
उसने देवताओं को हराना शुरू किया
इन्द्रलोक और स्वर्गलोक पर अधिकार करना चाहा
ऋषियों के यज्ञ और तप को बाधित करने लगा
साधुओं और भक्तों को सताने लगा
यह देखकर सभी देवता भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की।
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देवी पार्वती पर दृष्टि
कथा में आता है कि एक दिन अंधकासुर ने कैलाश पर्वत पर जाकर माता पार्वती को देखा।
वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उन्हें पाने की इच्छा करने लगा।
उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि उसने माता पार्वती का हरण करने की योजना बनाई।
यह सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे।
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शिव और अंधकासुर का युद्ध
अंधकासुर ने अपनी विशाल सेना के साथ कैलाश पर्वत पर आक्रमण कर दिया।
उसकी सेना में असंख्य दैत्य और असुर थे।
भगवान शिव ने अपने गणों और वीर भूत-प्रेतों को युद्ध में उतारा।
भीषण युद्ध छिड़ा, जिसमें रक्त की नदियाँ बहने लगीं।
हर बार जब शिवजी के त्रिशूल से अंधकासुर घायल होता, उसके शरीर से रक्त की बूँदें गिरकर नए-नए असुर जन्म ले लेते।
स्थिति गंभीर हो गई।
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देवी का प्रकट होना
तब देवी पार्वती ने योगमाया शक्ति का रूप धारण किया।
उन्होंने एक दिव्य शक्ति बनाई — योगेश्वरी माताएँ (मातृगण)।
इन माताओं ने अंधकासुर के रक्त की हर बूँद को पी लिया ताकि उससे नए असुर पैदा न हों।
अब अंधकासुर अकेला रह गया।
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अंधकासुर का वध
अंत में भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से अंधकासुर को भेद दिया।
अंधकासुर लहूलुहान होकर शिवजी के चरणों में गिर पड़ा।
मृत्यु के समय उसका मोह भंग हुआ और उसने प्रार्थना की:
👉 “हे भोलेनाथ! मुझे क्षमा करें, मैं आपके चरणों का दास बनना चाहता हूँ।”
भगवान शिव ने उसकी भक्ति और प्रायश्चित देखकर उसे गणों में स्थान दे दिया।
कहते हैं, मृत्यु के बाद अंधकासुर शिवगण बनकर कैलाश पर्वत की सेवा करता है।
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शिक्षा
अहंकार और अत्याचार अंत में विनाश की ओर ले जाते हैं।
भक्ति में भी यदि अभिमान आ जाए तो वह विनाशकारी बन जाता है।
भगवान शिव करुणामयी हैं, वे शरण में आए हुए को क्षमा कर देते हैं।
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अंधकासुर की कहानी -5 memorable lession
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