
ध्रुव की तपस्या – वायु पुराण की ध्रुव कथा
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पढ़ें वायु पुराण की ध्रुव कथा में वर्णित ध्रुव की तपस्या , जिसमें एक बालक ने कठिन तपस्या करके भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाया और अमर ध्रुव तारा बना।-
भूमिका – पुराणों में अमरता की अद्भुत गाथा
भारत के प्राचीन पुराण, केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि जीवन की गहन सच्चाइयों का खजाना हैं।
वायु पुराण इन पुराणों में विशेष स्थान रखता है, क्योंकि इसमें सृष्टि, देवताओं, ऋषियों और महान व्यक्तित्वों की कहानियाँ विस्तार से मिलती हैं।
इन कहानियों में एक कथा है—ध्रुव की तपस्या और ध्रुव तारा बनने की—जो यह सिखाती है कि दृढ़ निश्चय, भक्ति और आत्मबल से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
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अध्याय 1 – उत्तानपाद का राजमहल
बहुत समय पहले उत्तानपाद नामक राजा हुआ, जिसकी दो पत्नियाँ थीं—
सुनिति – बड़ी रानी, शांत और धर्मपरायण
सुरुचि – छोटी रानी, सुंदर और चतुर, परंतु अहंकारी
सुरुचि राजा की प्रिय थी। सुनिति, जो धर्मपरायण थी, को महल में कम सम्मान मिलता था।
सुनिति के पुत्र का नाम ध्रुव था और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम।
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अध्याय 2 – अपमान का वह दिन
एक दिन राजदरबार में, राजा उत्तानपाद अपने पुत्र उत्तम को गोद में बैठाए थे।
ध्रुव, मासूम हृदय से, अपने पिता की गोद में बैठने दौड़ा।
तभी सुरुचि ने कड़क आवाज में कहा—
सुरुचि (क्रोधित स्वर में):
> “ध्रुव! तुम्हें इस सिंहासन या गोद में बैठने का अधिकार नहीं। अगर यह स्थान पाना चाहते हो, तो पहले भगवान विष्णु की कठोर भक्ति करो, तभी अगला जन्म लेकर मेरा पुत्र बन सकते हो।”
इन शब्दों ने पाँच साल के ध्रुव के हृदय को तोड़ दिया। उनकी आँखों में आँसू थे, परंतु भीतर एक ज्वाला जल चुकी थी।
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अध्याय 3 – माँ की सलाह
ध्रुव रोते हुए अपनी माँ सुनिति के पास पहुँचे।
ध्रुव:
> “माँ, क्या सचमुच मैं पिता की गोद में बैठने लायक नहीं?”
सुनिति (गंभीरता से):
> “बेटा, मनुष्य का असली सहारा केवल भगवान हैं। अगर तुम विष्णु की आराधना करोगे, तो वे तुम्हें ऐसा स्थान देंगे जो किसी ने कभी न पाया हो।”
ध्रुव ने निर्णय लिया—
> “मैं अभी से भगवान विष्णु को पाने के लिए तपस्या करूंगा, चाहे कितना भी समय लगे।”
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अध्याय 4 – वन की ओर यात्रा
पाँच वर्ष का बालक, बिना डर, अकेले महल छोड़कर जंगल की ओर चल पड़ा।
रास्ता कठिन था—
कांटेदार झाड़ियाँ
जंगली जानवरों की आवाजें
ठंडी हवाएँ
फिर भी ध्रुव का मन अडिग था।
रास्ते में उन्हें देवर्षि नारद मिले।
नारद:
> “वत्स, इतनी छोटी उम्र में यह कठिन मार्ग क्यों चुन रहे हो?”
ध्रुव:
> “मैं ऐसा स्थान चाहता हूँ जो सदा अटल हो और किसी से छीना न जा सके।”
नारद ने ध्रुव को मंत्र दिया—
> “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
और उन्हें यमुना के तट पर तपस्या करने की सलाह दी।
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अध्याय 5 – तपस्या का प्रारंभ
यमुना तट पर ध्रुव ने ध्यानमग्न होकर विष्णु का स्मरण शुरू किया।
तपस्या के क्रम में—
पहले 1 माह तक केवल फल खाए
अगले 1 माह में केवल पत्ते
फिर केवल जल
अंत में केवल प्राणवायु पर टिके रहे
जंगल में उनकी तपस्या की ऊर्जा से वातावरण बदलने लगा।
जानवर शांत हो गए, नदियाँ जैसे ठहर गईं, और आकाश में अद्भुत प्रकाश छा गया।
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अध्याय 6 – देवताओं की चिंता
देवताओं ने देखा कि इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी शक्ति संचित हो रही है।
इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की—
इंद्र:
> “प्रभु, यह बालक असाधारण शक्ति प्राप्त कर सकता है। कृपया इसे दर्शन दें।”
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अध्याय 7 – विष्णु का प्रकट होना
छह महीने की तपस्या के बाद, अचानक दिव्य शंखध्वनि गूँजी।
सामने चार भुजाओं वाले, पीताम्बर धारण किए, मुकुटमणि से सुशोभित भगवान विष्णु प्रकट हुए।
विष्णु (मृदु स्वर में):
> “वत्स ध्रुव, तुम्हारी अडिग भक्ति ने मुझे प्रसन्न कर दिया है। वर माँगो।”
ध्रुव:
> “प्रभु, मुझे ऐसा स्थान दीजिए जो कभी न हिले, जिसे कोई छीन न सके।”
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अध्याय 8 – ध्रुव तारा का वरदान
भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले—
> “तुम आकाश में ‘ध्रुव तारा’ बनोगे। सभी ग्रह-नक्षत्र तुम्हारे चारों ओर परिक्रमा करेंगे। तुम्हारा स्थान अमर रहेगा।”
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अध्याय 9 – महल में वापसी
ध्रुव लौटकर महल आए।
राजा उत्तानपाद ने उन्हें गले लगाया।
सुरुचि भी उनकी भक्ति और वैभव से प्रभावित होकर उनसे क्षमा माँगने लगी।
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अध्याय 10 – शिक्षा
अपमान को बदले से नहीं, आत्मबल से जीतना चाहिए।
दृढ़ निश्चय और सच्ची भक्ति से असंभव भी संभव है।
भक्ति में उम्र, समय या परिस्थिति बाधा नहीं बनते।
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